हथौड़े की आखिरी चोट

विपिन किशोर सिन्हा

न्यूटन के गति के दूसरे नियम से कृत कार्य को परिभाषित किया गया, जो निम्नवत है –

कार्य = बल*विस्थापन

(Work done = Force.displacement)

इस नियम के तहत यदि बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के आन्दोलन से प्राप्त परिणाम की समीक्षा की जाय, तो वह शून्य होगा। दोनों आन्दोलनों में बल तो भरपूर लगा, लेकिन विस्थापन शून्य रहा। न तो जनलोकपाल बिल कानून का रूप ले सका और ना ही काले धन की एक चवन्नी भी भारत में वापस आ सकी। भौतिक विज्ञान के अनुसार परिणाम शून्य के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता। आजकल मीडिया भी इसी सिद्धान्त को सही मानकर अन्दोलन की सफलता का आंकलन कर रही है। और तो और, अन्ना के मुख्य सलाहकार अरविन्द केजरीवाल भी तत्काल लाभ न मिल पाने के कारण विक्षिप्त और दिग्भ्रान्त हो, राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। उनकी समझ ही में नहीं आ रहा है कि कौन चोर है और कौन सिपाही। वे सिपाही का भी घेराव कर रहे हैं और चोर का भी। महात्मा गांधी भी अगर अपने आन्दोलनों की सफलता या असफलता से उत्साहित या हतोत्साहित होकर ऐसे कदम उठाते, तो आज़ादी प्राप्त नहीं हो पाती।

कार्य की शून्य अंकगणितीय उपलब्धि के आधार पर लगाए गए बल या ऊर्जा की गणना नहीं की जा सकती। विस्थापन भले ही न हुआ हो, लेकिन ऊर्जा तो लगी ही। एक पत्थर पर जोर से मारे गए हथौड़े के प्रथम या द्वितीय प्रहार का, कोई आवश्यक नहीं कि असर दिखे, परन्तु यह भी सत्य है कि हथौड़े के लगातार प्रहार से ही पत्थर टूटते हैं। यह किसी को नहीं पता कि आखिर वह अन्तिम प्रहार कौन सा होगा जिससे पत्थर टूटेगा — हथौड़ा चलाने वाले को भी नहीं।

भारत की सरकार ने, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और सुपर पी.एम. सोनिया गांधी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को आम आदमी के जीवन का एक अभिन्न अंग बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। बोफ़ोर्स के सिर्फ़ ६५ करोड़ रुपए के कमीशन के कारण राजीव गांधी की कुर्सी चली गई, लेकिन अब हज़ारों/लाखों करोड़ के घोटालों पर भी जनता प्रायः चुप ही रहती है। सरकार ने जनता की मनोदशा बदलने में आंशिक सफलता भी प्राप्त की है। आम जनता ने राजनेताओं से शुचिता, सच्चरित्र और ईमानदारी कि अपेक्षा छोड़ दी है। किसी दूसरे देश में राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, २-जी घोटाला, कोल घोटाला, चारा घोटाला, खनन घोटाला, ताज़ कोरिडोर घोटाला, संसद के अन्दर नोट के बदले वोट घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, विदेशों में जमा काला धन घोटाला ………………….जैसी घटनाएं घटी होतीं, तो सत्ता कब की बदल गई होती। क्या राष्ट्रपति सुकर्णो, सद्दाम हुसेन, कर्नल गद्दाफ़ी या हुस्नी मुबारक के पास स्विस बैंकों में सोनिया गांधी से ज्यादा धन जमा था?

भारत कि जनता में विश्व के अन्य देशों की तुलना में धैर्य की मात्रा अधिक होती है। वह वर्षों खामोशी से प्रतीक्षा करती है। इन्दिरा गांधी की इमर्जेन्सी में गजब की शान्ति थी। विरोध में आवाज़ उठाने वाले को अविलंब जेल में ठूंस दिया जाता था। सारे नेता जेल में बन्द थे। सभी जगह श्मशान की शान्ति थी। इस शान्ति को इन्दिरा जी ने जनता का अपने पक्ष में समर्थन समझा और चुनाव करवाने की भूल कर बैठीं। स्वयं तो पराजित हुई ही, पूरे देश से कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ़ करा बैठीं। विभिन्न घोटालों पर जनता की चुप्पी कुछ इसी तरह की है। अन्ना, रामदेव और भाजपा का हथौड़ा चल रहा है। पत्थर तो टूटना ही है। बस देखना यह है कि वह सन २०१४ में टूटता है या उसके पूर्व।

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