सृष्टि में उत्पन्न सर्वश्रेष्ठ जीवनों में एक मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन एवं चरित्र”
-मनमोहन कुमार आर्य
चैत्र शुक्ल नवमी आर्यों व हिन्दुओं का ही नहीं अपितु संसारस्थ सभी विवेकशील लोगों के लिए आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी का जन्म दिवस पर्व है। इस पर्व को श्री रामचन्द्र जी के भक्त अपनी अपनी तरह से सर्वत्र मनाते हैं। हम वैदिक धर्मी आर्य हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी वैदिक धर्म के साक्षात क्रियात्मक सत्य इतिहास रूप हैं। उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान वेदों द्वारा स्थापित सभी मर्यादाओं का पालन किया और यह सिद्ध किया कि वैदिक शिक्षायें पुस्तकीय ज्ञान न होकर वह पूरा का पूरा जीवन में धारण व पालन करने योग्य है। आज श्री राम का जन्म दिवस पर्व हमें यह अवसर देता है कि हम उनके जीवन के गुणों का चिन्तन व मनन करें और देखें की हममें उनकी तुलना में क्या कमियां हैं। यह मनुष्य जीवन सर्वव्यापक व सर्वज्ञ ईश्वर, जो श्री राम चन्द्र जी के भी उपास्य थे, ने हमें अन्यान्य वा सभी गुणों को धारण करने तथा असत्य व अवगुणों को छोड़ने एवं उन्हें दग्धबीज करने के लिए दिया है। जो ऐसा करते हैं वह ईश्वर के प्रिय बनते हैं और धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होकर जीवन के ध्येय व लक्ष्य को प्रापत करते हैं। आज की आधुनिक संस्कृति खाओं, पीयों, जीओं में विश्वास रखती है। इसको मानने वाले लोक परजन्म में घोर अन्धकार को प्राप्त होकर जन्म व मृत्यु के बन्धन में पड़कर दुःखसागर में जन्म-जन्मान्तर में अपने कर्मों का भोग करते रहते हैं। वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर प्रदत्त वह ज्ञान है जिससे मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम वह आदर्श मनुष्य वा महापुरुष थे जिन्होंने अपने जीवन को वेदमय बनाकर वेद की हर शिक्षा का यथावत् पालन किया था। हम यहां यह भी वर्णन कर दें कि श्री रामचन्द्र जी ईश्वर के अवतार नहीं अपितु ईश्वर के सच्चे भक्त, उपासक, आज्ञापालक, वैदिक गुणों के श्रेष्ठ आदर्श व उदाहरण तथा विश्व के सभी युवाओं व वृद्धों के सबसे बड़े रोल माडल आदर्श महापुरुष हैं। जो भी मनुष्य उनके जीवन को अपनायेगा वह इस संसार रूपी भवसागर में डूबेगा नहीं अपितु तैर कर पार लग सकता है। यह भी बता दें कि राम-राम के नाम का जप करने से लाभ नहीं होगा अपितु श्री रामचन्द्र जी जैसा बनने से ही हमें लाभ होगा।
श्री रामचन्द्र जी का जीवन आदर्श जीवन था। आर्य विद्वान पं. भवानी प्रसाद जी ने उनके विषय में लिखा है कि ‘इस समय भारत के श्रृंखलाबद्ध इतिहास की अप्राप्यता में यदि भारतीय अपना मस्तक समुन्नत जातियों के समक्ष ऊंचा उठा कर चल सकते हैं, तो महात्मा राम के आदर्श चरित की विद्यमानता है। यदि प्राचीनतम ऐतिहासिक जाति होने का गौरव उनको प्राप्त है तो सूर्य कुल-कमल-दिवाकर राम की अनुकरणीय पावनी जीवनी की प्रस्तुति से। यदि भारताभिजनों को धर्मिक सत्यवक्ता, सत्यसन्ध, सभ्य और दृढ़व्रत होने का अभिमान है तो प्राचीन भारत के धर्म प्राण तथा गौरवसर्वस्व श्री राम के पवित्र चरित्र की विराजमानता से।’ पं. भवानी दयाल जी आगे लिखते हैं ‘यदि पूर्ण परिश्रम से संसार के समस्त स्मरणाीय जनों की जीवननियां एकत्र की जायें तो हम को उन में से किसी एक जीवनी में वह सर्वगुणराशि एकत्र न मिल सकेगी, जिस से सर्वगुणागार श्रीराम का जीवन भरपूर है। आज हमारे पास भगवान् रामचन्द्र का ही एक ऐसा आदर्श चरित्र उपस्थित है जो अन्य महात्माओं के बचे बचाये उपलब्ध चरित्रों से सर्वश्रेष्ठ और सब से बढ़कर शिक्षाप्रद है। वस्तुतः श्रीराम का जीवन सर्वमर्यादाओं का ऐसा उत्तम आदर्श है कि मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि केवल उन के लिए रूढ़ हो गई है। जब किसी को सुराज्य का उदाहरण देना होता है तो ‘‘रामराज्य” का प्रयोग किया जाता है।’ इसके बाद पंडित जी श्री रामचन्द्र जी के गुण, कर्म व स्वभाव का वर्णन करते हुए जो लिखा है वह स्मरण व कण्ठ करने योग्य है। इसके अनुरूप ही उनके सभी भक्तों व अनुयायियों का जीवन होना चाहिये। यदि ऐसा नहीं है तो हमें लगता है कि उनका रामचन्द्र जी की भक्ति करना व उन्हें अपना आदर्श मानना उपयोगी व सार्थक नहीं है।
पण्डित जी लिखते हैं ‘केवल लोक मर्यादा की अक्षुण्ण स्थिति बनाये रखने के लिए निष्काम कर्म करते रहने के वैदिक धर्म के सिद्धान्त का पूर्ण रूप से पालन करके प्रातःस्मरणीय श्रीरामचन्द्र ने ही दिखलाया था। ‘आहूतस्याभिषेकाय विसृष्टस्य वनाय च। न मया लक्षितस्तस्य स्वल्पोऽप्याकारविभ्रमः।। (बाल्मीकि रामयण)।’ इस श्लोक का अर्थ है कि राज्य अभिषेक के लिए बुलाये हुए और वन के लिए विदा किए हुए रामचन्द्र के मुख के आकार मे मैने (ऋषि बाल्मीकि ने) कुछ भी अन्तर नहीं देखा। आदिकवि वाल्मीकि का यह शब्द-चित्र निष्काम कर्मवीर श्री रामचन्द्र जी का ही यथार्थ चित्र था। वास्तव में वह स्वकुलदीप, मातृमोदवर्द्धक तथा पितृनिर्देशपालक पुत्र, एकपत्नीव्रतनिरत, प्राणप्रियाभार्यासखा, सुहृददुःखविमोचक मित्र, लोकसंग्राहक, प्रजापालक नरेश, सन्तानवत्सलपिता और संसार-मर्यादाव्यवथापक, परोपकारक, पुरुषरत्न का एकत्र एकीकृत सन्निवेश, सूर्यवंश प्रभाकर, कौसल्योल्लासकारक, दशरथानन्दवर्धक, जानकी जीवन, सुग्रीवसुहृद्, अखिलार्यनिषेवितपादपद्म, साकेताधीश्वर महाराजाधिराज, भगवान् रामचन्द्र में ही पाया जाता है।’ श्री रामचन्द्र जी के यह गुण उनके प्रत्येक भक्त में होने चाहिये। यदि ऐसा है तो वह वस्तुत श्रीरामभक्त है अन्यथा नहीं। हमें तो यह कहने में कुछ सन्देह नहीं है कि यह समस्त गुण तो क्या ऐसे कुछ ही गुण हमारे पुजारियों व रामभक्तों में नहीं हंै। यही हमारे धर्म व संस्कृति के प्रसार में बाधक है व हिन्दु आर्य जाति की अवनति का कारण है।
श्री रामचन्द्र जी त्रेतायुग में जन्में थे। त्रेतायुग की अवधि 12.96 लाख वर्ष और द्वापर की 8.64 लाख वर्ष होती है। इस दृष्टि से श्री रामचन्द्र जी का काल न्यूनतम 8.64 वर्ष से लेकर 21.60 लाख वर्ष के बीच होता है। इतने वर्ष पूर्व ही महर्षि बाल्मीकि जी हुए थे जो ऋषि व योगी थे और अपने ऋषित्व व योगबल से अतीत की बातों को प्रत्यक्ष करने की क्षमता रखते थे। संस्कृत में काव्य रचना का गुण उन्हें परमात्मा से प्राप्त हुआ था और श्री रामचन्द्र जी के जीवन पर रामायण की रचना की प्रेरणा भी ईश्वर से ही मिली थी, ऐसा हमारा अनुमान है। उन दिनों देश में एक नारद मुनि होते थे जो अन्य लोकों सहित पूरी पृथिवी का भ्रमण करते रहते थे। सभी देशों के इतिहास का उन्हें ज्ञान था और प्रायः सभी विद्याओं में वह निपुण थे। एक समय ऐसा आया कि नारद जी महर्षि बाल्मीकि जी के आश्रम में पहुंच गये और दोनों के मध्य वार्तालाप हुआ। इस अवसर का लाभ उठाकर महर्षि बाल्मीकि जी ने नारद जी से प्रश्न किये। उन्होंने उनसे पूछा कि हे मुनिवर ! इस समय संसार में गुणवान्, पराक्रमी, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवक्ता और अपने व्रत में दृढ़ पुरुष कौन है? सदाचार से युक्त सब प्राणियों के कल्याण में तत्पर, विद्वान्, सामथ्र्यशाली और देखने में सब से सुन्दर पुरुष कौन है? जो तपस्वी तो हो परन्तु क्रोधी न हो। तेजस्वी तो हो परन्तु ईष्र्यालु न हो और इन सब दया, अक्रोध आदि गुणों से युक्त होते हुए भी जब रोष आ जाये तो जिस के सामने देवजन भी कांपने लगें। हे तपेश्वर ! यदि आप किसी ऐसे महापुरुष को जानते हों तो उस का वृत्तान्त मुझ को बताइये क्योंकि आप त्रिलोक भ्रमण करने वाले हैं।’ बाल्मीकि जी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए नारद जी ने कहा कि बाल्मीकि जी ! अयोध्या में इक्षवाकु वंश मे उत्पन्न हुआ राम नाम से जो प्रसिद्ध राजा राज करता है, वह उन सब गुणों से युक्त है जिनका आपने उल्लेख किया है। नादर मुनि जी ने राम का तब तक का सम्पूर्ण जीवन चरित्र भी संक्षेप में बाल्मीकि जी को सुना वा बता दिया।
श्री रामचन्द्र जी सत्यवक्ता और कर्तव्यों के आदर्श पालक थे। बाल्मीकि रामायण से उनके इन व अन्य सभी गुणों पर व्यापक प्रकाश पड़ता है। अतः पूरी बाल्मीकि रामायण का एक एक शब्द पढ़ने व मनन करने योग्य है। कैकेयी ने जब महाराज दशरथ के वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए राम को वन-गमन की सूचना दी तब राम ने कर्तव्य को ही सर्वोपरि स्थान दिया। जब भरत उन्हें वन से लौटाने के लिए गये और मन्त्रियों तक ने उन्हें अयोध्या लौटने की प्रेरणा की तब भी उन्होंने कर्तव्य को सर्वोपरि रखा। जब जाबाल ने उन के समक्ष पार्थिव प्रलोभन रखकर तर्क वितर्क के द्वारा उन का घर लौटना समुचित सिद्ध करने की चेष्टा की तब उन्होंने जो उत्तर दिए वे धर्म के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे। उन्होंने कहा ‘अपने को वीर कहलाने वाला व्यक्ति कुलीन है या अकुलीन है, पवित्र है या अपवित्र, यह उसके चरित्र से ही विदित हो सकता है। यदि मैं धर्म का ढोंग करूं परन्तु आचरण करूं धर्म के विरूद्ध तो कैसे समझदार पुरुष मेरा मान करेगें? उस दशा में मैं कुल का कलंक ही माना जाउंगा।’ आईये अब रामचन्द्र जी की कृतज्ञता का उदाहरण भी देखते हैं। सुग्रीव और विभीषण ने राम की संकट के समय सहायता की। राम ने उन दोनों का संकट निवारण करके उन दोनों को ही राज्य दिलाकर उस सहायता का जो भव्य बदला दिया, वह राम की कृतज्ञता की भावना का स्पष्ट उदाहरण है। श्री रामचन्द्र जी ने अपनी सत्यवादिता से सत्य को गौरवान्वित किया था, यदि यह कहा जाये तो यह उचित ही है। राम चन्द्र जी सत्य के जीते जागते मूर्तरूप थे। यदि राम कुछ हैं तो वह सत्य को धारण व उसका पालन करने के कारण ही हैं। सत्य कहना और सत्य करना, ये दो राम के मुख्य गुण थे। राम के दो वाक्य ही उन के अपने चरित्र का सांगोपांग चित्रण कर देते हैं। महाराज दशरथ के समक्ष कैकेयी ने जब राम को वनवास जाने का कठोर आदेश देने मे कुछ आनाकानी की तो राम ने कहा था ‘हे देवी (कैकेयी) राजा क्या चाहते हैं, यह मुझे बताइये। मैं उसे पूरा करूंगा, यह मेरी प्रतिज्ञा है। राम किसी बात को दूसरी बार नहीं कहता।’ रामचन्द्र तो इसके आगे कहते हैं ‘न आज तक मैंने कभी झूठ बोला है और न आगे कभी बोलूंगा।’ वस्तुतः सत्य और उस के पालन में दृढ़ता राम के भव्य जीवन के दो प्रधान तत्व है। श्री रामचन्द्र जी का जीवन विश्व के महापुरुषों के जीवन साहित्य में सर्वोत्कृष्ट व सर्वोत्तम है। उनका जीवन परम आदर्श है जिसका अध्ययन, चिन्तन, मनन व आचरण जीवन को सार्थक करने में समर्थ है। यह भी उल्लेख कर दें कि बाल्मीकि रामायण श्रीरामचन्द्र जी की अवतार लेकर लीला करने की कहानी व पुराण के समान काल्पनिक घटनाओं का ग्रन्थ नहीं अपितु सत्य इतिहास का ग्रन्थ है। यह भी तथ्य है कि बाल्मीकि रामायण में मध्यकाल में स्वार्थी व साम्प्रदायिक लोगों ने प्रक्षेप कर इसके स्वरूप को विकृत किया है। राम चन्द्र जी के कार्यों को लीला की उपमा देकर हमारे पौराणिक भाई श्रीरामचन्द्र जी के महान् कार्यों की उपेक्षा व अवमूल्यन करते हैं। यह भी हमारे समाज के पतन का एक कारण है।
रामनवमी के पवित्र पर्व के अवसर पर हमारा यह कर्तव्य है कि हम इसे शिक्षाप्रद रूप से श्रद्धापूर्वक मनायें जिससे सर्वसाधारण का पथप्रदर्शन हो। आज के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र के चरित्र के अध्ययन वा स्वाध्याय के लिए रामायण की कथा को प्रचारित करना चाहिये। यज्ञ और दान का शुभानुष्ठान होना चाहिए और अपने पूर्व पुरुषों के पदचिन्हों पर चलते हुए धर्म के तीनों स्कन्ध यज्ञ, अध्ययन और दान के विशेष आचरण में ही इस व ऐसे अन्य शुभ दिनों को बिताना चाहिये। ऐसा करके ही हम अपनी उन्नति करते हुए दूसरों के उद्धार के कारण बन सकेंगे। ओ३म् शम्।