दलितों के नाम पर वामपंथियों की घिनौनी राजनीति का सच 

      सुनील आंबेकर

हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी में छात्र रोहित वैमुला द्वारा खुदखुशी की घटना दुखद एवं  चिंताजनक हैं,  परंतु यह किसी भी मायने में दलित व गैर दलितों के बीच की लड़ाई नही है,  जो कि वामपंथी गुटों द्वारा इसे दलित विरोधी रंग देने का प्रयास किया जा रहा है,  वास्तव  में यह वामपंथियों एवं घोर वामपंथियों द्वारा लगातार चलाई जाने वाली राष्ट्रीय व समाज हित विरोधी गतिविधियों के षडयंत्र का हिस्सा है, जो अब समाज के सामने आ गया हैं।

वर्तमान में भी इन वामपंथियों द्वारा अपनी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को चलाने के लिए  प्रमुख शैक्षिक परिसरों को केन्द्र बनाकर नौजवान छात्रों को गुमराह करते हुए उन्हें अपनी  गतिविधियों मे सम्मिलित किया जा रहा है तथा उन्हें राष्ट्र के संविधान व व्यवस्था के खिलाफ  भड़काकर उनका उपयोग अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये किया जा रहा है, इसके  लिये राष्ट्रविरोधी वामपंथी (नक्सल) लगातार राष्ट्रवादी शक्तियों के विरूद्ध षड़यंत्र चला रहे है

और यह षड़यंत्र पिछले कुछ समय से नित नये कलेवर में सामने आ रहा है, लेकिन देश के  युवा भी अब इन षड़यंत्रकारी गतिविधियों के मंसुबो को समझने लगे है।

विभिन्न प्रकार की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का संचालन करने वाले इन वामपंथी एवं  घोर षड़यंत्रकारी नक्सल समर्थक संगठनों का शैक्षणिक परिसरों में  राष्ट्रवादी छात्र संगठन  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लगातार प्रतिकार कर रहा है। अभाविप के राष्ट्रवादी विचारों,  रचनात्मक परिसर सक्रियता व लगातार किये जाने वाले छात्रहित, समाजहित व राष्ट्रहित के  कार्यो के कारण तथाकथित जनवादी व सर्वहारा के खोखले नारों को छात्रों ने समझ लिया है जिससे इन वामपंथियों के पांव शैक्षणिक परिसरों से उखड़ने लगे हैं, जिसके कारण इनकी  बौखलाहट सामने आ रही है। कुल मिलाकर देश में चल रहा यह संघर्ष राष्ट्रवादी एवं राष्ट्रविरोधी विचारधाराओं का संघर्ष है। जिसमें अभाविप राष्ट्रवादी छात्र संगठन होने के नाते  अपनी भूमिका सजग रूप से निभा रही है, जिसके कारण वामपंथियों द्वारा युवाओं को भारत के विरूद्ध भड़काने का कार्य अब लगभग अंतिम अवस्था में पहुंच गया है। जो षड़यंत्रकारी  राष्ट्रविरोधी संगठनों को रास नही आ रहा है।

देश के युवाओं को लोकतंत्र के विरूद्ध उकसाने का क्रम आज से प्रारंभ नही हुआ है,  इसका इतिहास काफी पुराना है, यह क्रम दक्षिण में 1980 से पहले ही प्रारंभ हुआ था,  जब  घोर वामपंथी विचारों के द्वारा देश के युवाओं व ग्रामीण नागरिकों को बहलाकर उन्हें देश  विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित किया गया था, तबसे ही देश में ग्रामीण क्षेत्रों व शैक्षिक परिसरों में घोर वामपंथियों व नक्सलवादी विचारधारा के आधार पर देश को बांटने का प्रयास  इन देशद्रोही तत्वों द्वारा किया जा रहा था। परंतु देश के जनमानस का भारत के संविधान व  व्यवस्था में अटूट विश्वास होने तथा अभाविप द्वारा शैक्षणिक परिसरों में इसका तगड़ा विरोध  करने के कारण षिक्षा परिसरों से नक्सलवादी विचारधारा का साया समाप्त हुआ था, इसके लिये अभाविप के कार्यकर्ताओं ने सदैव अहिंसक प्रणाली का सहारा लिया है,  इन वामपंथियों के हिंसक आंदोलनों का परिसरों में विरोध करने पर हमारे 39 कर्मठ कार्यकर्ताओं की हत्या  भी घोर वामपंथियों द्वारा की गई परंतु फिर भी अभाविप का राष्ट्रवादी आंदोलन कभी भी  हिंसक नही हुआ, क्योंकि अभाविप का भारत के संविधान में दृढ़ विष्वास है।  वर्तमान समय में अभाविप के समतायुक्त, शोषण मुक्त, समरस समाज व परिसरों के केवल नारे ही नही अपितु सतत् सेवा कार्य से बौखलाकर घोर वामपंथियों ने छद्म दलित  चेहरे का घिनौना खेल प्रारंभ करते हुए दलित आंबेडकर आंदोलन के रूप में भारत के दक्षिण खासकर आंध्रप्रदेश व तेलंगाना में पुराने समय से राष्ट्रहित व समानता हेतु चलाये गये  आंबेडकरवादी दलित आंदोलन को अवैध रूप से हथियाने का जबरदस्त प्रयास किया हैं, ताकि मरनासन्न होते जा रहे राष्ट्रविरोधी वामपंथी आंदोलनों को नये स्वरूप मे समाज के सम्मुख ला सकें, परंतु यहां यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है  कि देश में हमेशा आंबेडकरवादी  दलित आंदोलन भारत के संविधान के समर्थन में था तथा उनकी संविधान में गहरी निष्ठा थी,  परंतु इन वामपंथियों का आंदोलन भारतीय संविधान का विरोध करने के लिये किया जा  रहा है। वास्तविक आंबेडकरवादी दलित आंदोलन भारत के राष्ट्रध्वज तिरंगे के सम्मान, भारतीय लोकतंत्र व व्यवस्था में पूर्ण विष्वास के साथ आगे बढ़ा तथा सदैव अहिंसक रहते  हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर कभी समझौता नही किया एवं राष्ट्रप्रेम व भारत के प्रति निष्ठा से परिपूर्ण रहा।

लेकिन इन वामपंथियों द्वारा जबरन कब्जा करते हुए उस राष्ट्रवादी आंदोलन के नाम पर देश में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चलाने का कार्य जिनमें तिरंगे का अपमान करना, लोकतंत्र  व्यवस्था को उखाड़ने का प्रयास तथा राष्ट्रद्रोही याकूब मेनन जैसे लोगों का समर्थन करना  इनका ध्येय बन गया है। इन वामपंथियों ने याकूब की फांसी का विरोध ही नही किया,  बल्कि इन्होने उसके द्वारा की गई राष्ट्रद्रोही गतिविधियों का समर्थन किया है,  यहां बहस का मुद्दा याकूब को फांसी या उम्रकैद नही हैं अपितु यहां मुद्दा यह हैं कि उस देशद्रोही का  समर्थन करते हुए उसे गद्दार की बजाय नायक के रूप में प्रस्तुत करने का कुत्सित षड़यंत्र  इन वामपंथियों द्वारा चलाया गया था, और हैदराबाद केन्द्रीय युनिवर्सिटी को केन्द्र बनाकर चलायी गई इन राष्ट्रद्रोही गतिविधियों एवं अभियानों में यह नारा बुलंद किया गया की ‘‘कितने याकूब मारोगे-यहां हर घर से याकूब निकलेगें’’,

इस प्रकार के राष्ट्रविरोधी आंदोलनों व अभियानों को वामपंथियों (नक्सलवादियों) द्वारा हैदराबाद युनिवर्सिटी परिसर में चलाया गया, इन राष्ट्रविरोधी अभियानों का हिस्सा खुदखुशी  करने वाला छात्र रोहित भी रहा था, ऐसे में यह चिंतन करना आवष्यक हैं कि देश में छात्र की खुदखुशी  के नाम पर हो रही यह राजनीति और अभाविप को इसमें शामिल करना कहां तक जायज हैं। क्योंकि आंबेडकर स्टुडेंट एसोसियेशन (ASS) द्वारा लगातार भारतीय संविधान की मर्यादा के विपरित कार्य वि.वि. परिसर में किये जा रहे है, जिनका प्रतिकार किया जाना  चाहिये।

अभाविप ने सदैव दलितों पर अत्याचारों का विरोध किया हैं तथा प्रारंभ से ही दलितों के हितों के लिये संघर्ष करते हुए उन्हें समान अधिकार एवं सम्मानजनक स्थान दिलाने हेतु अभाविप ने समाज कल्याण छात्रावासों का देशव्यापी सर्वेक्षण, उनमें व्याप्त समस्याओं को व्यापक स्तर पर उठाते हुए केन्द्र एवं सभी प्रदेश सरकारों के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी  खटखटाया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अनुसुचित जाति, जनजाति तथा मंडल आयोग से प्राप्त आरक्षण को समाज की ऐतिहासिक आवश्यकता मानकर पुरजोर तरिके से आरक्षण की पैरवी की हैं तथा निरंतर विभिन्न सहयोगी व सेवा कार्य आज भी जारी है।  यहाँ  यह स्पष्ट करना तर्कसंगत है कि अभाविप का दलित आंदोलन को लेकर कोई  विरोध नही हैं तथा समूचे हिंदू समाज को भेदभाव मुक्त बनाने के डा.  बाबासाहेब आंबेडकर के सपनो को साकार करने के संकल्प को पुरा करने का प्रयास अभाविप निरंतर कर रही है ताकि समाज में कोई सामाजिक असमानता ना रहे तथा समतायुक्त, समरस समाज का निर्माण सुनिष्चित हो सके। डा. बाबासाहेब आम्बेडकर का अभाविप व संघ द्वारा निरंतर प्रातः  स्मरण किया जाता हैं तथा 06 दिसम्बर को सामाजिक समरसता दिवस एवं 14 अप्रेल को  डा. बाबासाहेब की जयंती मनाना हमारे स्वाभाविक कार्यक्रम हैं, इसलिये अभाविप किसी भी  प्र्रकार से दलित विरोधी नही हैं। अपितु अभाविप द्वारा तो व्यापक आंदोलन खड़ा करने के  फलस्वरूप 14 जनवरी 1994 (मकर संक्राति) के दिन महाराष्ट्र के तात्कालीन मुख्यमंत्री श्री सुधाकर नाईक ने श्री शरद पंवार, श्री रामदास आठवले, श्री प्रकाष आंबेडकर की उपस्थिति में अभाविप से चर्चा के बाद आष्वस्त होकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नामकरण डा. बाबासाहेब  आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय किया था, जिससे प्रमाणित होता है कि अभाविप प्रांरभ से

ही डा. बाबासाहेब के विचारों का समय-समय पर अनुसरण करती रही हैं।

यह सर्वविदित है कि डा. बाबासाहेब आंबेडकर जी के विचार कभी भी राष्ट्र को विघटित  करने के समर्थन में नही रहे है, आंबेडकरवादी आंदोलन सदैव देशभक्त आंदोलन व अहिंसक आंदोलन रहा है, इसलिये हैदराबाद केन्द्रीय विश्व विद्यालय परिसर में कार्य करने वाले अन्य  छात्र संगठन दलित स्टूडेंट यूनियन ने भी अपने फेसबुक पोस्ट में के याकूब मेनन  का समर्थन करने वाले कृत्यों की निंदा की थी, वामपंथियों द्वारा डा. बाबासाहेब के नाम का शैक्षिक परिसरों में दुरूपयोग करते हुए झुठा प्रचार किया जा रहा है, अब हमें समाज व  परिसरों में यह बहस उत्पन्न करना पड़ेगी की गरीब व दलित समाज के छात्र व युवा कब  तक इन षड़यंत्रकारी वामपंथी ताकतों का षिकार बनते रहेंगे।

इस प्रचार अभियान में वांमपथियों द्वारा आत्महत्या करने वाले छात्र रोहित को दलित  बताकर भी समाज में भ्रम फैलाया जा रहा है तथा अभाविप के जिस छात्र सुशील पर रोहित व उसके साथियों द्वारा प्राणघातक हमला किया गया था, उसे गैर दलित बताकर इस सम्पूर्ण घटना को दलित व गैर दलित के बीच लड़ाई के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा हैं जो कि सरासर गलत है क्योंकि अभाविप का यह दावा हैं कि रोहित वैडेरा समुदाय से आता है तथा  उसको दलित बताने वाले प्रमाण झूठे है तथा मुनुरू-कापु समुदाय से आने वाल छात्र सुशील  तथा वैडेरा समुदाय से आने वाला रोहित दोनों ही पिछड़े वर्ग से हैं, इसलिये यह वांमपंथियों द्वारा फैलाया जा रहा षड़यंत्र हैं कि दलितों पर गैरदलितों का अत्याचार हो रहा है। वांमपंथियों द्वारा सुनियोजित षड़यंत्र के तहत छात्र की खुदखुषी पर ओछी राजनीति की जा रही है, जो कि शर्मनाक कृत्य हैं।

हम सभी को ज्ञात ही है कि आंबेडकरवादी दलित आंदोलन सदैव अहिंसक रहा है। सदैव लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने का पक्षधर रहा है परंतु वांमपंथियों द्वारा संचालित (आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन) सदैव हिंसक गतिविधियों के मार्ग पर चल रही हैं इसी क्रम में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का विरोध करने पर अभाविप के कार्यकर्ता सुषील के साथ मारपीट की गई तथा रात के 01.30 बजे जबरन कक्ष में घुसकर उसे खेद व्यक्त करने  पर मजबुर किया जाना निंदनीय हैं। यहां प्रष्न यह उठता हैं कि रात 01.30 बजे ही क्यूं जबरन सुशील से माफी लिखवाई गई,  यदि सुरक्षा अधिकारी उसे बुलाकर बात करते तो वह उन्हें  कार्यालयीन समय में अपने कार्यालय में बुलाकर बात करते जो की नही किया गया एवं  सुशील  के साथ बेरहमी से मारपीट कि गई थी जिसके पश्चात उसे अस्पताल में भर्ती होना पडा। आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन के लोगों द्वारा बुरी तरह पीटने व पेट में गंभीर चोट आने पर उसका इलाज एक नीजी अस्पताल (अर्चना हास्पीटल, हैदराबाद) में कराया गया।

इसमें आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन के लोगों द्वारा तथाकथित रूप से यह कहना की वह अस्पताल में  अपेंडिक्स  के आपरेशन हेतु भर्ती हुआ था तो यहा स्पष्ट करना होगा की सुशील को पेट में  मार पडने से उसी समय अपेंडिक्स में डेमेज  भी आ गया था, जिसके कारण इलाज के दौरान उसका अपेंडिक्स का आपरेशन भी किया गया, यह इलाज करने वाले डाक्टर ने टीवी  इन्टरव्यू में बताया है। जो कि अस्पताल द्वारा दिये गये प्रमाणों से भी स्पष्ट पता चलता है।  इस प्रकार बिना वजह मारपीट करने पर सुशील द्वारा विष्वविद्यालय प्रशासन को शिकायत की गई जिस पर विश्वविद्यालय द्वारा दोषी  आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन  के छात्रो को विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया परंतु आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन व वांमपथियों द्वारा दबाव बनाने के कारण जांच में दोषी छात्रों को पूनः बहाल कर दिया गया।

यहां यह स्पष्ट करना अनिवार्य है कि आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन के दोषी छात्रों को छात्रावास से निलंबित करने की कार्यवाही किसी मंत्री के पत्र के कारण नहीं हुई है, क्योंकि संवैधानिक रूप से  जनप्रतिनिधि होने के कारण उनके क्षेत्र में हुई घटना को उनके संज्ञान में लाये जाने पर ऐसे किसी विषय पर संबंधित अधिकृत विभाग को पत्र लिखना उनके संवैधानिक अधिकार के दायरे  में आता हैं, जहां तक राजनेताओं के किसी मुद्दे पर किसी को पत्र लिखने का विषय है यह  लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत उनका सामान्य अधिकार क्षेत्र है इसलिये इसे लेकर किसी भी  राजनेता को दोष दिया जाना हास्यापद हैं। ऐसे गंभीर एवं संवेदनषील मुद्दे पर देश में कई  राजनीतिज्ञों जैसे राहुल गांधी द्वारा तर्कहीन एवं वास्तविकता से परे राजनीति की जा रही है  जो कि अत्यंत शर्मनाक है। क्या कभी राहुल गांधी ने यह जानने का प्रयास किया है कि देश  में नक्सलवादी आंदोलनों में कितने आदिवासियों की हत्याए हुई हैघ् एवं अलीगढ मुस्लिम  विश्वविद्यालय में आज तक SC/ST आरक्षण लागू क्यों नहीं किया गया है और  नक्सलवादियों द्वारा कितने अभाविप कार्यकर्ताओं की हत्याऐं शैक्षिक परिसरों में की गई  और  आज इस मुद्दे पर राजनीति करते हुए आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन को सही बताने का प्रयास कर रहे है  तो क्या  इसका अर्थ यह माना जाये की याकूब का समर्थन करने वाले लोगों का समर्थन करके राहुल   गांधी भी याकूब मेनन के कृत्य का समर्थन कर रहें है यदि ऐसा है तो यह अत्यंत   खेदजनक है।

हैदराबाद सेन्ट्रल युनिवर्सिटी प्रकरण में दोषी छात्रों के बहाल हो जाने पर सुषील की  माताजी द्वारा न्यायालय की शरण ली गई, जिसके पश्चात न्यायालय द्वारा विश्वविद्यालय को  दोषी छात्रों पर की गई कार्यवाही का विवरण प्रस्तुत करने हेतु नोटिस जारी किया गया।  इसके पश्चात विश्वविद्यालय द्वारा दोषी आंबेडकर स्टूडेंट एसोसियेशन के 5 छात्रों को केवल छात्रावास से निष्कासित   किया गया, जिससे उनके शैक्षणिक कैरियर पर किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न नहीं  हुआ था, इसलिये छात्र की आत्महत्या के लिये बेवजह किसी को भी जिम्मेदार मान लेना  जिस तरह से तार्किक नही हैं उसी प्रकार से किसी जनप्रतिनिधि को भी उसके लिये दोषी  ठहराना अव्यवहारिक है।

इसके साथ ही यहां यह ध्यान देने योग्य विशेष तथ्य है कि रोहित ने अपने मृत्युपत्र  में किसी को जिम्मेदार न बताते हूए जिस तरह से पत्र लिखा है उस स्थिति में रोहित के  मित्रों की भूमिका भी संदेहास्पद हो जाती है, क्योकि पूरे समय साथ रहने वाले यह मित्र उस  समय कहा थे, जब रोहित ने आत्महत्या कीघ् इसकी जांच होना चाहिये। यहा यह भी ध्यान  देने योग्य तथ्य हैं कि वामपंथी एवं नक्सलवादियों द्वारा हमेषा से ही अपने आंदोलन को  केन्द्र में लाने हेतु राजनीति करते हुए सामान्य लोगो को बलि का बकरा बनाया जाता रहा  है, इन लोगों द्वारा इस तरह के हथकण्डे अपनाये जाते है। इसके कई उदाहरण मौजूद है,  जिसमें वांमपंथियों ने इस प्रकार की ओछी मानसिकता का प्रदर्शन  किया है और इन्हें बैठे  बिठाये संवेदनषील मुद्दों पर भी घटिया राजनीति करने का अवसर मिल जाता है। वर्तमान  समय में राष्ट्रवादी विचारों व राष्ट्रविरोधी वामपंथियों के बीच वैचारिक लड़ाई चल रही हैं  जिसमें आत्महत्या जैसे कृत्य का कोई स्थान नही हैं यह मात्र विचारों के आधार पर चल रहा  संघर्ष है इसलियें इस पुरे प्रकरण में रोहित के साथियों की संदेहास्पद भूमिका की जांच किया  जाना भी अनिवार्य है।

वांमपंथी व नक्सलवादियों द्वारा चलाई जाने वाली संविधान विरोधी गतिविधियों एवं डा .  बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों को आपस में जोडने का कार्य करते हुए यह भ्रम फैलाने का  प्रयास देश में हो रहा है, लेकिन यह विचारधारा डा. बाबा साहेब के मतों के बिल्कूल विपरीत  है,  इसलिये आंबेडकरवादी आंदोलन का चोला ओढकर कार्य करने वाले ऐसे राष्ट्रविरोधी  संगठनों की सच्चाई देश के सामने आना चाहिये। क्योकि डा. बाबासाहेब आंबेडकर ने 20  नवम्बर 1956 को काडमांडू में आयोजित विश्वबौद्ध सम्मेलन में अपने भाषण में कहा था  की दलितों एवं गरीबों के मन में जब तक भगवान बुद्ध के विचार समाहित है, हमें उन्हें  अंगीकार करते हुए आगे बढना है तथा किसी भी स्थिति में साम्यवाद या माक्र्स की और  आकर्षित होने की आवश्यकता नही है। (यह वक्तव्य इन्टरनेट पर उपलब्ध है) अपने वक्तव्य  में उन्होने साम्यवादी विचारों से अपने अनुयायियों के दुर रहने की सलाह दी थी, जबकी  आज के समय में वामपंथी व नक्सलवादी डा. बाबासाहेब का चेहरा आगे रखकर देश को  भ्रमित करने का कार्य कर रहे है। इन वामपंथियों के मन में भी यह सत्य सामने आने पर  अंर्तद्वन्द्व चलता रहता होगा, क्योंकि नक्सलवाद के संस्थापक माने जाने वाले चारू मजुमदार ने भी इसी द्वन्द्व के साये में आत्महत्या कर ली थी, इसलिये यह कहना कोई अतिष्योक्ति  नहीं होगी की संभवतया रोहित ने भी ऐसी ही परिस्थितीयों में आत्महत्या कर ली हो।

इसलियें देश में चल रहें इस प्रकार के कुत्सित षडयंत्रों को समाज के सामने लाने की  आवष्यकता हैं क्योकि दलितों व पिछडों के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले तथाकथित  राजनेता व सामाजिक नेता कहां थे जब 2007 में उसी हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी में  अभाविप कार्यकर्ता व छात्रसंघ में निर्वाचित सांस्कृतिक सचिव श्री मणिदास (SC समुदाय-  केरल) को व 2010 में शारीरिक रूप से अक्षम तपन, बिल्लोरी सतपाल सिंह बेहरा,  अंजनेयल्लु इन छात्रों को हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी से निष्कासित किया गया था,  तब क्यों किसी ने इनके हित में आंदोलन नही किये व इनके हक की लडाई लडने सामने  नही आये। क्योंकि दलित हित व पिछडों के हितों की बात करने वाले ये वामपंथी अपने  राजनीतिक एजेंडे के तहत कार्य कर रहे है जिसमें शैक्षणिक परिसरो में कार्य करने वाले प्रो.  वरवरा राव (ब्राम्हण), प्रो. कंचेएैलैय्या, प्रो. हरगोपाल (ब्राम्हण), एवं श्रछन् के प्रो.  कमलमित्र चिनाय व उनकी पत्नी प्रो. अनुराधा चिनाय सहित और भी कई प्राध्यापक हैं जो   राष्ट्रविरोधी गतिविधियों व वामपंथी व नक्सलवादी विचारधारा के आधार पर राजनीतिक सत्ता  प्राप्त करने (लोकतंत्र द्वारा नही बल्कि हिंसा द्वारा) के उददेष्य के लिये देश के नौजवानों को  भडकाने व भ्रमित करने का प्रयास कर रहे है। तथा देश के सम्मुख अपने झूठ को प्रसारित  करने के लियें डा. बाबासाहेब के नाम की आड लेकर लगातार षडयंत्र चला रहे हैं। वास्तव में  ऐसे संदिग्ध लोगों की गतिविधियों व उनके विभिन्न लोगों से हित संबंध व उनकी योजनाओं  की विस्तृत जांच किये जाने की आवश्यकता  हैं।

अभाविप का आह्वान- देश के सभी वर्गो के नागरिक विषेषकर नौजवान हमारे देश के  महापुरूषों स्वामी विवेकानंद, डा. बाबासाहेब आंबेडकर आदि के सच्चे विचारों का अनुकरण  करते हुए राष्ट्रहित में समाज के सभी वर्गो खासकर सामाजिक दृष्टी से पिछडे हुए अनुसूचित जाति, जनजाति व गरीबों के उत्थान, विकास व सम्मान को स्थापित करने हेतु आगे आऐं  तथा सभी भ्रामक प्रचारों से मुक्त होकर डा. बाबासाहेब आंबेडकर की 125 वीं जन्म जयंति  को विषेष निमित्त मानकर कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्रहित के कार्य में जुट जाऐं।

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं।)

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