भारत के सन्दर्भ में पाकिस्तान का इतिवृत्त देखें तो हिंसा की आवृत्ति ही दिखाई देती है , पाकिस्तान बार बार सीमा पार आतंकवाद को आश्रय देता रहा है , इसके प्रमाण भारत ने हर बार पाकिस्तान को दिए लेकिन कार्यवाही के नाम पर भारत को हर बार धोखा ही मिला है। हालाँकि अगर गत दशक पर नजर डालें तो आज पाकिस्तान भी आतंकवाद के दंश से अछूता नहीं है। पेशावर जैसे हमलों ने पाकिस्तान के हृदय को भी छलनी किया है, लेकिन फिर भी आतंकवाद को आश्रय देना पाकिस्तान ने नहीं छोड़ा । यदि गौर करें तो इसका कारण पाकिस्तान में दो ध्रुवी शासन होना है , एक ध्रुव है चुनी हुई सरकार जो कि लगभग निष्क्रिय ही है, दूसरा और शक्तिशाली ध्रुव सैन्य शासन है, जो भारत से संबंधों में सहजता नहीं चाहता, शायद यही कारण है कि जब भी भारत पाकिस्तान किसी शांति वार्ता की ओर बढ़ने का प्रयास करते हैं, एक और धमाके की आवाज शांति के आवाज को दबा देती है । अगर भारत पाकिस्तान के संबंधों पर दृष्टि डालें तो कहीं ना कहीं तीसरे धड़े की धमक सुनाई देगी जो नहीं चाहता भारत और पाकिस्तान सहोदर मुल्कों की तरह ग्लोब में स्थापित हों ।
भारत हमेशा से कहता आया है कि वह अपने पड़ोसियों के साथ मधुर और विकास के सम्बन्ध रखना चाहता है। भारत ने २००५ में अपनी पड़ोस नीति की घोषणा करते हुए साफ़ शब्दों में कहा था कि वह पडोसी देशों की सरकारों के साथ कामकाजी सम्बन्ध बनाकर रखेगा, लेकिन साथ ही उन देशों में पल रही लोकतान्त्रिक आकांक्षाओं को भी प्रोत्साहित करता रहेगा ।
“कुछ देश भारत के बड़े आकार से डरते हैं , लेकिन हम कहना चाहते हैं कि भारत एक तेजी से बढती आर्थिक ताकत है, हमारे पडोसी देश इसका लाभ उठा सकते हैं , भारत अपने पडोसी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाना चाहता है” ।
दूसरी तरफ पकिस्तान की नीति सदैव भारत विरोधी ही रही, पकिस्तान की विदेश नीति में एक ही तत्व प्रधान रहा कि जो भारत का मित्र है वो पकिस्तान का शत्रु है और जो भारत का शत्रु है वह पकिस्तान का मित्र है। चीन भारत का विरोधी बन के उभरा तो चीन और पकिस्तान की बढती नजदीकियों का सबसे बड़ा कारण यही था । हैदराबाद विवाद रहा हो, जूनागढ़ विवाद रहा हो, कश्मीर विवाद या फिर सरक्रीक विवाद या आतंकवाद, पाकिस्तान किसी ना किसी बहाने से भारत के साथ एक छद्म युद्ध करता ही रहा है ।
१९४८ के प्रथम युद्ध के बाद तो कश्मीर ने केवल उपद्रवी इतिहास ही देखा है , पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को खेती की तरह विकसित किया है , इस जहरीली खेती का विष कश्मीर को ही नहीं पूरे भारत को झुलसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता ।
१९६५ में भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ परिणाम सुरक्षा परिषद् के दखल के बाद युद्ध विराम हुआ लेकिन अंतिम परिणति “कटु सम्बन्ध” हालाँकि ताशकंद समझौते ने दोनों देशो के रिश्तों को शांतिपूर्ण मोड़ देने का प्रयास किया लेकिन ये शांतिपूर्ण मोड़ अगले ही चौराहे पर धराशाही हो गया ।
१९७१ में बांग्लादेश के नाम पर एक बार फिर दोनों देशों के बीच खुला युद्ध हुआ परिणाम शिमला समझौता भारत ने पकिस्तान से जीता हुआ ५,१३९ वर्ग मील क्षेत्र लौटा दिया हालाँकि आलोचकों ने इस समझौते की निंदा करते हुए यहाँ तक कहा कि भारत ने पाकिस्तान के समक्ष आत्मसमर्पण किया है , लेकिन शांति के अतिरिक्त भारत ने सारे महत्वों को दरकिनार कर दिया। इतने पर भी भारत आज तक पाकिस्तानी आतंकवाद से पीड़ित है ।
भारत अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंधों को विकसित करने का सदैव प्रयास करता रहा है, लेकिन कहीं ना कहीं पाकिस्तान के साथ रिश्तों की गांठें सुलझने का नाम नहीं लेती । भारत और पाकिस्तान हमेशा अघोषित युद्ध की स्थिति में रहते हैं । कुलदीप नैय्यर के शब्दों में भारत और “पाकिस्तान को दूर के पडोसी हैं”, और ये तथ्य समय समय पर सिद्ध भी होते रहते हैं , द्वि पक्षीय मुद्दों को पाकिस्तान अन्तराष्ट्रीय मंचों पर उछलता रहता है ।
नवम्बर १९८६ में पाकिस्तान ने सैनिक अभ्यास के बहाने भारत से लगी सीमा पर भरी संख्या में सेना को तैनात कर दिया था, इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों में तनाव के हालत पैदा हो गये थे , लेकिन १९८७ में समझौता हुआ युद्ध का खतरा टल गया । १९९० में भारत ने विश्वास जगाने का फिर प्रयास किया , लेकिन पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करता रहा पंजाब, कश्मीर आतंकवाद की आग में जलते रहे । १९९९ में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने बस से पाकिस्तान की यात्रा की ताकि सौहार्द की भावना को विकसित किया जा सके लेकिन बदले में पाकिस्तान ने भारत की पीठ पर छुरा घोंपा, कारगिल में भारी घुसपैठ की और भारत को एक और युद्ध की आग में झोंक दिया, हालाँकि भारत ने जीत हासिल की लेकिन इस युद्ध में भारी कीमत भारत को चुकानी पड़ी , ये पूरा इतिहास गवाह है कि हर बार जब भारत पाकिस्तान वार्ता की ओर अग्रसर हुए धमाके ने शांति के क़दमों को ठिठका दिया ।
इसके बाद भारतीय संसद पर हमला, मुंबई, हैदराबाद जैसे ना जाने कितने हमलों के दंश भारत झेलता आ रहा है , और अब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ़ शब्दों में कहा कि बम की आवाजों के बीच शांति वार्ताओं की आवाजें दब जाती हैं, तब फिर पाकिस्तान ने विश्व पटल पर अपनी मासूम छवि बनाने का असफल प्रयास किया, यूएस ने साफ़ शब्दों में पाकिस्तान को चेतावनी दी , इस बीच एक बार फिर संबंधों में सहजता लाने का प्रयास भारत की ओर से हुआ लेकिन फिर पठानकोट मिला जिसका इल्म पूरे देश को था, सात जवान शहीद हुए, फिर देश में रोष है। पाकिस्तान को सबक सीखा ने की मांग जोर पकड़ने लगी है । लेकिन भारत ने युद्धों को भी देखा है और शांति वार्ताओं को भी, ना तो सीधे युद्धों के बाद सीमा पार आतंकवाद रुका है और ना ही शांति वार्ताओं के परिणाम निकले, आज समय की मांग युद्ध की ना होकर मध्यम मार्ग की है जो उस तीसरी ताकत को भी आइना दिखाए जो नहीं चाहती कि भारत पाकिस्तान के रिश्ते सहज हों । अब शायद समय है उस पृथकतावादी शक्ति को उत्तर देने का जो नहीं चाहती कि शांति और सौहार्द सिरमौर बने । आवश्यकता है उस इतिवृत्त को खंगालने की जिसकी उन्नति, अशांति, आतंकवाद और दोनों देशों के शत्रुवत रिश्तों में है । समय को रोष का नहीं बुद्धिमत्ता का अनुगामी होना चाहिए ।
भारत पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों के सन्दर्भ में बहुत ही अच्छा लिखा है आपने?