भारत में भूख की समस्या, मोटा अनाज और मोदी सरकार

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-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
कोरोना महामारी के दौर में दुनिया भर के कई गरीब देशों के लिए पेटभर भोजन एक चुनौती के रूप में सामने आया है। भारत की रिपोर्ट भी बहुत अच्छी नहीं है, बावजूद इसके कि आज भारत मोटे अनाज जैसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों की उत्पादकता में अग्रणी पंक्‍ति में खड़ा है । सरकार कुपोषण को दूर करने के लिए बायोफोर्टिफाइड किस्मों को बढ़ावा दे रही है । बायोफोर्टिफाइड किस्मों का मतलब फसलों की उन किस्मों से है, जिनमें अलग-अलग प्रक्रियाओं की मदद से सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ायी जाती है।

यहां ”हंगर इंडेक्स” में भारत की स्थिति को देखें तो वह 107 देशों के बीच 94वें स्थान पर है यानी कि सिर्फ 13 देश ही हैं जोकि भारत से खराब स्थिति में हैं। इसलिए ही उसे 27.2 के स्कोर के साथ गंभीर श्रेणी में रखा गया है । देश में 14% आबादी कुपोषित श्रेणी में आती  है। यह आंकड़ा यदि 2011 की जनगणना के हिसाब से निकालें तो लगभग जनसंख्या 169,427,079 बैठती है। जिसमें की 37.4% बच्चे कुपोषण के कारण बढ़ नहीं सके । पांच साल से कम उम्र के बच्चों की डेथ रेट 3.7% है । हम पिछले चार वर्षों में रखरखाव के अभाव में 11,520 टन अनाज बर्बाद कर चुके हैं ।  संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 कहती है कि भारत में सालाना प्रति व्यक्ति लगभग 50 किलो पका हुआ भोजन बेकार हो जाता है। हालांकि इसमें एक अच्‍छी बात यह है कि दक्षिण एशियाई देशों नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश या अन्‍यों की तुलना में भारत भोज्य पदार्थों की बर्बादी के मामले में सबसे नीचे है।

इस माह आई भारत सरकार की रिपोर्ट कहती है कि आज सालाना 308 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के साथ भारत न केवल खाद्य सुरक्षा के दायरे में हैं, बल्कि अन्य देशों को भी पूर्ति कर रहा है। आज भारत ने वैज्ञानिकों के कुशल अनुसंधान के कारण कृषि उपज के क्षेत्र में क्रांति का अनुभव किया है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों में जीनोमिक्स, डिजिटल कृषि, जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकियों व पद्धतियों, कुशल जल उपयोग उपकरण, उच्च उपज वाली एवं जैव अनुकूल किस्मों के विकास, सुव्‍यवस्‍थित उत्पादन, गुणवत्‍ता तथा सुरक्षा मानकों को लेकर कृषि अनुसंधान में ठोस प्रयास जारी हैं ।  इसके साथ ही कहना होगा कि देश की यह पहली केंद्र की सरकार है, जिसका कि कृषि अनुसंधान पर सबसे ज्यादा फोकस दिखाई देता है । सिर्फ फील्ड और बागवानी फसलें ही नहीं बल्कि पिछले सात सालों के दौरान सभी ओर व्‍यापक ध्‍यान दिया गया है । जहां पिछली सरकार तक कुल छह हजार के करीब नए प्रयास सफल हो सके थे, वहीं, अकेले केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में कृषि शोध के क्षेत्र में मोटे अनाज संबंधी 2,042 नए प्रयोग सफल हो चुके हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) द्वारा विकसित की गई फसलों की नई उच्च पैदावार वाली तकनीक ने देश की खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में मूलभूत भूमिका निभाई है। इसके माध्यम से अकेले ही विभिन्न फील्ड और बागवानी फसलों की 5,500 से अधिक किस्में विकसित की हैं, 70 फील्ड फसलों की 1,575 किस्में विकसित की गई हैं। अकेले अनाजों की 770, तिलहनों की 235, दालों की 236, रेशा फसलों की 170, चारा फसलों की 104, गन्ने की 52 तथा अन्य फसलों की आठ किस्में शामिल हैं। बागवानी फसलों की 288 किस्में भी अब तक विकसित की जा चुकी हैं । भारत सरकार द्वारा बाजरा सहित अन्य पोषक-अनाज, फल-सब्जियों, मछली, डेयरी व जैविक उत्पादों सहित हमारे पारंपरिक खाद्य पदार्थों को फिर से लोगों के आहार में शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है। हाल के वर्षों में इनका उत्पादन भारत में अभूतपूर्व रहा है और आज भारत स्वास्थ्यवर्धक भोज्य पदार्थ का डेस्टिनेशन देश इस रूप में दुनिया के बीच अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ है।

कृषि मंत्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर आज कह भी रहे हैं ”कोविड महामारी के दौरान भी भारतीय कृषि क्षेत्र अप्रभावित रहा, जिससे एक बार फिर इसने अपनी प्रासंगिकता सिद्ध की है। कोविड के दौरान कृषि-आदान सप्लाय चैन के साथ-साथ कृषि-बाजार गतिशील रखने के लिए भारत सरकार के विभिन्न कार्यकलापों से कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन में सहायता मिली है और वर्ष 2020-2021 के दौरान खाद्यान्नों के उत्पादन के साथ निर्यात में भी महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज हुई है। इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी योगदान हुआ है।”

वस्‍तुत: इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार जल संसाधनों का अनुकूल उपयोग बढ़ाने, सिंचाई के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण, उर्वरकों के संतुलित उपयोग के साथ मिट्टी की उर्वरता संरक्षित करने, खेतों से बाजार तक कनेक्टिविटी प्रदान करने, प्रयोगशाला से लेकर भूमि तक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का लिंकेज प्रदान करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाकर इसके प्रतिबद्ध दिखाई देती है। सिंचाई के लिए ‘प्रति बूंद- अधिक फसल’ योजना और जैविक खेती के लिए ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ सफलतापूर्वक चलाई जा रही है। प्रतिकूल मौसम किसानों के उत्पादन व आय को प्रभावित करता हैं, ऐसे में भारत सरकार ने किसानों के लिए बीमा कवर प्रदान करने के लिए ही आज प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना लागू की है।

इसके अतिरिक्‍त किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। सवा दो करोड़ से ज्यादा केसीसी वितरित किए जा चुके हैं, जिनके माध्यम से किसानों को सवा दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा ऋण दिया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि(पीएम-किसान) योजना के माध्यम से किसानों को आय सहायता का बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जिसमें कि अब तक 11.37 करोड़ लाभार्थियों को 1.58 लाख करोड़ रू. दिए जा चुके हैं। कुपोषण समस्या के समाधान के लिए, भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सुरक्षा नेट कार्यक्रम चला रहा है, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ ही मध्याह्न भोजन योजना भी शामिल है। कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय द्वारा 2021-22 के लिए मुख्य खरीफ फसलों के उत्पादन के प्रथम अग्रिम अनुमान जारी कर दिये गये हैं, खरीफ सीजन में 150.50 मिलियन टन रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है। साथ ही रबी सीजन के लिए केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य भी समय से पूर्व घोषित कर दिया गया है, ताकि किसानों को लाभ मिल सकें।

इस सब के बीच ध्‍यान रहे, वर्ष 2030-31 तक भारत की आबादी 150 करोड़ से ज्यादा होने की संभावना है, जिसके पोषण के लिए अनाज की मांग तब लगभग 350 मिलियन टन तक होने का अनुमान लगाया गया है। इसी तरह खाद्य तेलों, दूध व दूध से बने उत्पादों, मांस, अंडे, मछली, सब्जियों, फलों और चीनी की मांग आज की तुलना में बहुत अधिक बढ़ना तय है । इसके मुकाबले प्राकृतिक संसाधन सीमित है और जलवायु परिवर्तन की चुनौती भी है। ऐसे में कहना यही होगा कि भूख की इस समस्या का समाधान जब तक पूरी तरह से ना हो जाए, सरकार के प्रयासों के बीच हमें जनसंख्या संतुलन के सामाजिक प्रयास में भी तेजी लानी होगी । अन्यथा देश के संसाधन सीमित ही रहनेवाले हैं, हम कितने भी नए प्रयोग कर लें । भूख और कुपोषण को भारत में नहीं हरा पाएंगे। फिर केंद्र में कोई भी सरकार क्यों ना आ जाए, आज से बेहतर कितने भी अच्छे प्रयास क्यों नहीं कर लिए जाएं, बिना अपनी जनसंख्‍या संतुलित किए ”हंगर इंडेक्स” में भारत कभी अच्‍छा प्रदर्शन नहीं कर सकता है।

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