कोविन्द के वक्तव्य में नये भारत का संकल्प

0
151

ललित गर्ग

भारत के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन नये भारत को निर्मित करने के संकल्प को बल देता है, अपने इस सशक्त एवं जीवंत भाषण में उन्होंने उन मूल्यों एवं आदर्शों की चर्चा की, जिन पर नये भारत के विकास का सफर तय किया जाना है। राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, संविधान, नैतिकता और ईमानदारी को कैसे मजबूत करना है, किस तरह से राजनीतिक शुचिता एवं प्रशासनिक ईमानदारी बल मिले, कैसे घोटाले एवं भ्रष्टाचार मुक्त जीवनशैली विकसित हो, ‘सत्यमेव जयते’ का हमारा राष्ट्रीय घोष कैसे जीवन में दिखाई दे, किस तरह से पिछडे़, आदिवासी एवं दलित लोगों का कल्याण हो- इन महत्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रपति का जागरूक होना और राष्ट्र को जागरूक करना देश के लिये शुभता का सूचक है।
रामनाथ कोविंद का यह पहला स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या का उद्बोधन अनेक विशेषताएं लिये हुए हंै, उन्होंने अपने इस उद्बोधन से यह स्पष्ट कर दिया कि वे एक सशक्त राष्ट्रपति के रूप में देश को नयी दिशा देंगे। उन्होंने अपने भाषण में गांधी, नेहरू, नेताजी, पटेल से पहले क्रांतिकारी नेताओं भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का नाम लिया, और भाषण की शुरुआत महिला वीरांगनाओं से की, निश्चित ही एक नयी परम्परा का सूत्रपात हैं।
रामनाथ कोविंद ने जहां सरकार की प्राथमिकताओं का उजागर किया वहीं सरकार के लिये करणीय कार्यों की नसीहत भी दी है। सरकार का पहला दायित्व होता है कि वह सबसे गरीब आदमी की स्थिति सुधारने के लिए सभी उपाय करे। इसके लिए भारत का शासन किस तरह जनकल्याणकारी शासन होगा, उसकी रूपरेखा भी उन्होंने प्रस्तुत की। उन्होंने सरकार के साथ-साथ नागरिकों के कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों की भी चर्चा की। सरकार ने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान शुरू किया है लेकिन भारत को स्वच्छ बनाना हर एक की जिम्मेदारी है।
राष्ट्रपति ने जिस समय अपना उद्बोधन दिया, उससे कुछ घंटों पहले ही सुखी परिवार अभियान के प्रेरणा एवं आदिवासी जनजीवन के मसीहा गणि राजेन्द्र विजयजी के साथ हम लोग राष्ट्रपतिजी से मिले, सुखी परिवार फाउण्डेशन के माध्यम से आदिवासी क्षे़त्रों में संचालित की जा रही गतिविधियों की जानकारी से कोविन्दजी अभिभूत हुए। उन्होंने अपने उद्बोधन कहा भी है कि अनेक व्यक्ति और संगठन, गरीबों और वंचितों के लिए चुपचाप और पूरी लगन से काम कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। देश को खुले में शौच से मुक्त कराना, विकास के नए अवसर पैदा करना, शिक्षा और सूचना की पहुंच बढ़ाना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के अभियान को बदल देना, बेटियों से भेदभाव न हो, ये किस तरह से सुनिश्चित को इसकी चर्चा राष्ट्रपति के वक्तव्य का हार्द है। दलगत राजनीति से परे राष्ट्रीय विचारधारा वाले व्यक्ति का इस सर्वोच्च पद पर निर्वाचित होना और उनका राष्ट्रीयता के साथ-साथ सामाजिक संदेश देना प्रेरक है। ‘कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’। कोविंदजी का मन्तव्य भी यही है कि आजादी किसी की जागीर नहीं है बल्कि इस मुल्क के लोगों की सामूहिक हिम्मत से हासिल की गई कामयाबी है, इसको नये आयाम देने एवं विकास की नयी इबारत लिखने के लिये हर व्यक्ति आगे आये और देश विकास में सहभागी बने।
एक साधारण परिवार के शख्स का देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होना भारतीय लोकतंत्र की महिमा का बखान है और वे लोकतंत्र को सुदृढ करने की दिशा में उत्साहित भी है। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि राष्ट्रपति के रूप में उनकी जैसी पृष्ठभूमि वाले करोड़ों लोगों को प्रेरणा मिल रही हैं, वे आश्वस्त हो रहे हैं। इससे भारतीय लोकतंत्र को न केवल और बल मिलेगा, बल्कि उसका यश भी बढ़ेगा और यही यश उनके पहले स्वतंत्रता दिवस के उद्बोधन में बढ़ता हुआ दिखाई दिया है। वे भारत को केवल राजनीति, आर्थिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक एवं लोकतांत्रिक दृष्टि से भी समुन्नत बनाना चाहते हैं और इसीलिये उन्होंने अपने भाषण में चरित्र निर्माण, शिक्षा, राष्ट्रीय एकता, अनुशासन, संविधान आदि की चर्चा की। गांधीजी ने समाज और राष्ट्र के चरित्र निर्माण पर बल दिया था। गांधीजी ने जिन सिद्धांतों को अपनाने की बात कही थी, वे आज भी प्रासंगिक हैं और कोविन्दजी उसी को बल दे रहे हैं। नेताजी सुभाषचन्द बोस ने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ का आह्वान किया तो भारतवासियों ने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। नेहरूजी ने सिखाया कि विरासतों और परंपराओं का टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल होना चाहिए है, क्योंकि वे आधुनिक समाज के निर्माण में सहायक हो सकती हैं। सरदार पटेल ने हमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रति जागरूक किया, उन्होंने यह भी समझाया कि अनुशासन-युक्त राष्ट्रीय चरित्र क्या होता है। आंबेडकर ने संविधान के दायरे मे रहकर काम करने तथा ‘कानून के शासन’ की अनिवार्यता के विषय में समझाया। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि कोविन्दजी अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य का निर्माण करने के पक्षधर है और इस हेतु वे तत्पर भी दिखायी दे रहे हैं।
हमने आजाद भारत के विकास में कितना सफर तय किया है, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम अब भारत को कैसा बनाना चाहते हैं। हमारा सफर लोकतन्त्र की व्यवस्था के साये में निश्चित रूप से सन्तोषप्रद रहा है लेकिन अब हमें ऐसा भारत निर्मित करना है जिसमें सबका संतुलित विकास हो। इसी संकल्प को  आजादी के 75 साल पूरे होने तक हासिल करने की बात कोविन्द ने की है। नया इंडिया के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करने के लिये उनके कुछ राष्ट्रीय संकल्प है। नया इंडिया के बड़े स्पष्ट मापदंड भी हैं, जैसे सबके लिए घर, बिजली, बेहतर सड़कें और संचार के माध्यम, शिक्षा, चिकित्सा, आधुनिक रेल नेटवर्क, तेज और सतत विकास। नया इंडिया हमारे डीएनए में रचे-बसे मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे। नया इंडिया का समाज ऐसा हो, जो तेजी से बढ़ते हुए संवेदनशील भी हो। ऐसा संवेदनशील समाज, जहां पारंपरिक रूप से वंचित लोग, देश के विकास प्रक्रिया में सहभागी बनें। उन्होंने अपने दिव्यांग भाई-बहनों पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता व्यक्त है। वे चाहते है ऐसे नया इंडिया का निर्माण हो जहां हर व्यक्ति की पूरी क्षमता उजागर हो सके और वह समाज और राष्ट्र के लिए अपना योगदान कर सके।
भारतीय राजनीति लम्बे समय से घोटालों एवं भ्रष्टाचार के काले अध्याय के रूप में चर्चित रही है, जहां सिद्धान्तों की बजाय अवसरवादिता को प्राथमिकता दी जाती रही है, लेकिन नये भारत में ईमानदारी एवं पारदर्शिता को आधार बनाने की जरूरत पर कोविन्द ने बल दिया है। नोटबंदी के समय जिस तरह कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया गया, उसे उन्होंने जिम्मेदार और संवेदनशील समाज का ही प्रतिबिंब बताया। ईमानदारी की भावना और मजबूत हो, इसके लिए उन्होंने लगातार प्रयास करते रहने की जरूरत व्यक्त की है।
श्री रामनाथ कोविंद ने ‘अप्प दीपो भव’ यानी अपना दीपक स्वयं बनो की प्रेरणा देकर भारत को आध्यात्मिक रूप से विकसित करने की सलाह भी दी है। दीपक जब एक साथ जलेंगे तो सूर्य के प्रकाश के समान वह उजाला सुसंस्कृत और विकसित भारत के मार्ग को आलोकित करेगा। हम सब मिलकर आजादी की लड़ाई के दौरान उमड़े जोश और उमंग की भावना के साथ सवा सौ करोड़ दीपक बन सकते हैं। दीपक बनने की यह प्रेरणा ही उनके वक्तव्य की व्यापकता एवं दूरदर्शिता की भावना की अभिव्यक्ति है, जिसके माध्यम से वे एक सार्थक सन्देश दे रहे हैं।
राजनीति करने वाले स्वार्थी एवं अपरिपक्व नेताओं को भी कोविन्द ने नयी राजनीति-वास्तविक राजनीति का सन्देश दिया है। राजनीति में यदि वे जिन्दा रहना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी। सेवा को, विकास को एवं गुड गवर्नेंस को माध्यम बनाना होगा, आत्म-निरीक्षण करना होगा। मिल-जुलकर कार्य करने का पाठ सीखना होगा। विरोध की राजनीति को त्यागना होगा। विचारधाराविहीन राजनीति, उनकी महत्वाकांक्षाएं, अराजक कार्यशैली और नकारात्मक एवं झूठ की राजनीति के कारण लोकतंत्र कमजोर होता रहा है, लेकिन अब लोकतंत्र को मजबूत करके ही राष्ट्र को सुदृढ़ किया जा सकेगा और यही इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के वक्तव्य का निचोड़, हार्द है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,047 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress