भरत जोशी

2 अक्टूबर कहने को तो देश मे सिंगल यूजेज पॉलीथिन बन्द हो गई है । किंतु वास्तविकता में आज भी छोटे गावों से लेकर कस्बो छोटे शहरों और माहा नगरों में धड़ले से पॉलीथिन का उपयोग खुले आम हो रहा है ।सिर्फ दिखावे के तौर पर पॉलीथिन बन्द की नोटकी देश मे चल रही है । सरकार अगर देश को प्रदूषण मुक्त करना चाहती है तो जहां पॉलीथिन का निर्माण हो रहा है वही से इस पर रोक लगानी होगी ।और पॉलीथिन के विकल्प के रूप में अन्य कोई थैली को उपयोग में लाना होगा । सरकार के साथ ही आम जन को भी जागरुक होना होगा और आजतक हमने पॉलीथिन के रूप में जो दैत्य पैदा किया उसे खत्म करना बहुत जरूरी है नही तो पर्यावरण को खत्म होने से नही बचाया जा सकता है।पॉलिथीन और प्लास्टिक गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं। इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है। प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही अन्य गम्भीर बीमारियाँ होती हैं।पॉलिथीन का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिये बल्कि भविष्य के लिये भी खतरनाक होता जा रहा है। पॉलिथीन पूरे देश की गम्भीर समस्या है। पहले जब खरीदारी करने जाते थे तो कपड़े का थैला साथ लेकर जाते थे, किन्तु आज खाली हाथ जाकर दुकानदार से पॉलिथीन माँगकर सामान लाते हैं। पहले अखबार के लिफाफे होते थे किन्तु उसके स्थान पर आज पॉलिथीन का उपयोग किया जा रहा है।
स्मरण रहे कि पृथ्वी तल पर जमा पॉलिथीन जमीन का जल सोखने की क्षमता खत्म कर रही है। इससे भूजल स्तर गिर रहा है। सुविधा के लिये बनाई गई पॉलिथीन आज सबसे बड़ी असुविधा का करण बन गई है। प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण यह धरती की उर्वरक क्षमता को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है।
विकास के नाम पर शहरों में पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई हुई है। तरह-तरह के निर्माण के दौरान भी पेड़ काटे गए। रोड चौड़ीकरण के दौरान भी सैकड़ों पेड़ कुर्बान हो गए, पर उतने या उससे ज्यादा पेड़ वापस नहीं लगाए गए। प्लास्टिक का प्रयोग हमारे जीवन में सर्वाधिक होने लगा है। इसका प्रयोग नुकसानदायक है यह जानते हुए भी हम धड़ल्ले से इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। यदि इसके प्रयोग पर रोक लगे तो बात बने। प्लास्टिक को जलाने से भी नुकसान होगा। इसका जहरीला धुआँ स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है।
पॉलिथीन की पन्नियों में लोग कूड़ा भरकर फेंकते हैं। कूड़े के ढेर में खाद्य पदार्थ खोजते हुए पशु पन्नी निगल जाते हैं। ऐसे में पन्नी उनके पेट में चली जाती है। बाद में ये पशु बीमार होकर दम तोड़ देते हैं। प्लास्टिक और पॉलिथीन गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं। इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है।प्लास्टिक और पॉलिथीन का प्रयोग पर्यावरण और मानव की सेहत दोनों के लिये खतरनाक है। कभी न नष्ट होने वाली पॉलिथीन भूजल स्तर को प्रभावित कर रही है। देखा जा रहा है कि कुछ लोग अपनी दुकानों पर चाय प्लास्टिक की पन्नियों में मँगा रहे हैं। गर्म चाय पन्नी में डालने से पन्नी का केमिकल चाय में चला जाता है, जो बाद में लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। चिकित्सकों ने प्लास्टिक के गिलासों और पॉलिथीन में गरम पेय पदार्थों का सेवन न करने की सलाह दी है।कई जगह पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध है, बावजूद इसके दुकानदार चोरी-छिपे पॉलिथीन का प्रयोग करते पाये जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों नहीं सफल होता है पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध? पर्यावरण एवं स्वास्थ्य दोनों के लिये नुकसानदायक 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नुकसानदायक होती है। चूँकि ये पॉलिथीन उपयोग में काफी सस्ती पड़ती हैं, इसलिये इनका उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। लेकिन इन्हें एक बार उपयोग करने के बाद कूड़े में फेंक दिया जाता है, जबकि इससे अच्छे किस्म की खाद बनाई जा सकती है तथा अन्य काम भी किये जा सकते हैं।हिमाचल प्रदेश का भी उदाहरण हमारे सामने है, जहाँ केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से पन्नियों को चक्रित करके सड़क निर्माण में उपयोग में लाया जा रहा है। जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का निर्माण भी किया जा रहा है। इसके अलावा पन्नियों को चक्रित करके खाद भी बनाई जा सकती है। इसलिये यदि सरकारें इस दिशा में गम्भीर हों, तो नुकसानदायक प्लास्टिक के कचरे से लाभ भी कमाया जा सकता है। ऐसे प्रयोग को व्यापक बनाया जा सकता है।कुल मिलाकर पॉलिथीन मनुष्य एवं सभी जीव-जन्तुओं के लिये बहुत हानिकारक है। इसकी रोकथाम से ही इससे निजात पाई जा सकती है। आज समाज के हर व्यक्ति को पॉलिथीन के उपयोग से बचना चाहिए तभी हम इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे। -अशोक पांडे- के शब्दो मे :वक़्त के साथ-साथ भरता गया पापों का घड़ा,
तो प्लास्टिक भी बना टनों के हिसाब से
यहाँ-वहाँ इतना जमा हो गया प्लास्टिक कि दही जैसी चीज़ का स्वाद भी
मिटटी के कुल्हडों से
बेस्वाद होता बंद हो गया घटिया प्लास्टिक की
रबर बैंड लगी थैलियों में
प्लास्टिक लेकर आया भावहीन चेहरे और शातिर दिमाग
और जलने की ऐसी दुर्गन्ध
जो बस समय बीतने पर ही जायेगी
प्लास्टिक आया तो आये अधनंगे आवारा बच्चे
बड़ी-बड़ी गठरियाँ लेकर
दुनिया के चालाक लोगों के लिए
गंद के ढेरों को उलट-पुलट करने
चालाक लोग भूख की मशीन में डाल कर
कूड़े को बदल देंगे
नए प्लास्टिक में ! ——- भरत जोशी