यह न्याय , धर्म और नीति की जीत है

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के ही नहीं अपितु विश्व के सर्वाधिक चर्चित और प्रसिद्ध अयोध्या मामले का निस्तारण करते हुए विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाए जाने का का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले 500 वर्षों से चले आ रहे इस विवाद का जिस विद्वत्तापूर्ण ढंग से निस्तारण किया है , उससे भारत की इस सर्वोच्च न्यायिक संस्था का सम्मान संपूर्ण विश्व में बढ़ा है ।  न्यायालय के इस निर्णय का देश के सभी वर्गों , समुदायों , संप्रदायों और पार्टियों के नेताओं ने स्वागत किया है । यद्यपि कुछ लोगों ने इस मामले पर मीन – मेष निकालने का प्रयास किया है , परंतु उनकी आवाज इस समय देश में बने सकारात्मक परिवेश के भीतर सुनाई नहीं दे रही है । जिसे भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत ही कहा जाएगा ।
न्यायालय के इस ऐतिहासिक निर्णय से अपनी जन्मभूमि पर स्वामित्व का मुकदमा लड़ रहे रामलला विराजमान को जन्मभूमि मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि का अंदरूनी और बाहरी आहाता ट्रस्ट या बोर्ड के माध्यम से मंदिर निर्माण के लिए देने का आदेश दिया है।
लेकिन निर्णय से अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि तीन महीने के भीतर भीतर अयोध्या अधिग्रहण कानून 1993 की धारा 6 और 7 के अंतर्गत एक योजना बनाकर सरकार को न्यास गठित करेगी। न्यायालय ने आदेश दिया है कि जबबतक संपत्ति ट्रस्ट को नहीं सौंप दी जाती तब तक संपत्ति केन्द्र के रिसीवर के ही कब्जे में रहेगी।
सर्वसम्मति से सुनाए गए इस निर्णय में न्यायालय के पांचों जजों ने यह भी स्पष्ट किया है कि गैर-कानूनी ढंग से तोड़ी गई मस्जिद के बदले मुसलमानों को वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ भूमि सरकार उपलब्ध कराएगी । इसके साथ ही
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने सर्व सम्मति से निर्णय सुनाते हुए राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश को भी त्रुटिपूर्ण माना है।
अपने 1045 पृष्ठ के तथ्यात्मक और तर्कपूर्ण आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखने के दृष्टिकोण से व्यवहारिक नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी भी अपने आप में बहुत ही सार्थक व सारगर्भित है कि विवादित भूमि 1500 वर्गगज है , इस भूमि को विभाजित करने से न तो पक्षकारों के हित उद्देश्य पूरे होते हैं और न ही स्थाई शांति और सद्भाव सुनिश्चित होती है। न्यायालय ने विवेकपूर्ण ढंग से निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा समय बाधित घोषित कर निरस्त कर दिया। जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड का मुकदमा समय भीतर दाखिल किया गया माना है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ने दोनों ही के मुकदमें समय बाधित घोषित कर निरस्त कर दिये थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि रामलला का मुकदमा स्वीकार करने योग्य है और वे कानून की दृष्टि में न्यायिक व्यक्ति हैं। न्यायालय ने कहा कि देवकी नंदन अग्रवाल को रामलला की ओर से मुकदमा करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि 1500 वर्गगज की विवादित भूमि रामलला के पक्ष में डिक्री करने के साथ ही सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक जमीन आवंटित करना आवश्यक है। न्यायालय ने कहा कि 1992 में मुसलमानों की मस्जिद गैर-कानूनी ढंग से नष्ट की गई।
न्याय मंदिर में बैठे न्यायमूर्तियों ने यह भी स्पष्ट किया कि संभावनाओं का संतुलन और जमीन पर कब्जे को लेकर हिंदू पक्ष का दावा साक्ष्यों को देखते हुए मुस्लिम पक्ष से अधिक प्रबल है।
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत प्राप्त विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए मुसलमानों को वैकल्पिक स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का आदेश दिया है। न्यायालय ने देश के सभी निवासियों का सम्मान करने की संवैधानिक भावना का सम्मान करते हुए स्पष्ट किया है कि मुसलमानों को 22-23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिद से बेदखल कर दिया गया और अंतत: 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ध्वस्त कर दी गई , जिसे उचित नहीं कहा जा सकता।
निर्णय में कहा कि यह न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुनिश्चित करेगी कि जिसके साथ गलत हुआ है, वह ठीक किया जाए। वास्तव में अनुच्छेद 142 में सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार है कि वह विशेष परिस्थियों में किसी भी प्रकार का आदेश दे सकता है।
न्यायालय ने कहा कि न्यायालय मुसलमानों के अधिकार को उपेक्षित कर देता है तो न्याय नहीं होगा। मुसलमानों को मस्जिद से उस ढंग से वंचित किया गया जिसको कानून के शासन वाले धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नहीं अपनाया जाता। संविधान सभी धर्मो को समान मान्यता देता है। सहिष्णुता सहअस्तित्तव, और धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्र और जनता की प्रतिबद्धता है।
न्यायालय ने निर्देश दिया है कि या तो केंद्र सरकार अयोध्या में अधिग्रहित की गई जमीन से पांच एकड़ भूमि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित करे या फिर उत्तर प्रदेश सरकार अयोध्या में उचित और प्रमुख स्थान पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड को जमीन आवंटित करे। मुसलमानों को जमीन आवंटन में केंद्र वा राज्य आपस में परामर्श करेंगे। न्यायालय ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को उस आवंटित जमीन पर मस्जिद बनाने की छूट होगी।
न्यायालय ने वैसे तो निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा समय बाधित बता कर खारिज कर दिया है, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह निर्मोही अखाड़ा को भी गठित किये जाने वाले ट्रस्ट में उचित प्रतिनिधित्व देगी।
सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद की उपासक के रूप में विवादित स्थल पर पूजा अर्चना के मांगे गए अधिकार को मान्यता दी है। कोर्ट ने कहा है कि विवादित स्थल पर पूजा अर्चना का अधिकार होगा हालांकि यह अधिकार पूजा अर्चना के दौरान शांति और व्यवस्था बनाए रखने की संबंधित प्राधिकारी के नियंत्रण और निर्देश के आधीन होगा।
न्यायालय ने अप्रत्याशित देरी के आधार पर शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की 30 मार्च 1946 के फैजाबाद अदालत के निर्णय के विरुद्ध प्रस्तुत याचिका निरस्त कर दी। न्यायालय ने कहा कि याचिका 24964 दिन की देरी से प्रस्तुत की गई है। न्यायालय ने कहा कि याचिका में देरी के कारण का उचित आधार भी नहीं दिया गया है इसलिए याचिका निरस्त की जाती है।
उपरोक्त ढंग से पारित किए गए निर्णय की यदि समीक्षा की जाए तो न्यायालय ने अपनी नीर क्षीर विवेकशक्ति का पूर्ण परिचय दिया है। हम आशा करते हैं कि इस प्रकार से पारित किए गए आदेश का सभी पक्ष अनुपालन सुनिश्चित करेंगे और भारत प्रगति और विकास की ओर आगे बढ़ेगा ।
प्रधानमंत्री श्री मोदी का यह कथन अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है कि इस निर्णय से देश जीता है और किसी की हार जीत नहीं हुई है । इसके उपरांत भी हम यह अवश्य कहना चाहेंगे कि जिन लोगों ने अयोध्या मामले को तूल देकर भारत की सांप्रदायिक एकता की परंपरागत नीति को तोड़कर देश को तोड़ने के सपने संजोए थे , आज सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से उनके सपनों पर पानी अवश्य फिरा है और वे सारी शक्तियां निराश और हताश हैं जो देश को तोड़ने का कार्य कर रही थीं । आज —
— हमारा इतिहास जीता है ,
– हमारी परंपरा जीती है ,
– हमारी मर्यादा जीती है ,
– न्याय धर्म और नीति की जीत हुई है ,
इन सब चीजों पर विचार कर हम माने कि देश अपने परंपरागत मानवतावाद को त्यागेगा नहीं और इस निर्णय को बहुत शांतभाव से लेकर हम अपने श्री राम जी का मंदिर अयोध्या में बनते देखेंगे। स्मरण रहे कि हम इतिहास को बहुत निकटता से बनते हुए देख रहे हैं , थोड़ी सी असावधानी यदि हमने बरती तो इतिहास पर कोई भी धब्बा लग सकता है , इसलिए पूर्ण संयम और धैर्य के साथ इतिहास को सकारात्मक दिशा देते हुए हम आगे बढ़ें ।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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  1. अयोध्या मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय पर डॉ. राकेश कुमार आर्य जी का विश्लेषणात्मक निबंध प्रशंसनीय तो है ही लेकिन स्वयं मेरा ध्यान उनके आलेख में प्रस्तुत प्रधानमंत्री मोदी जी के कथन, “इस निर्णय से देश जीता है और किसी की हार जीत नहीं हुई है” खिंच गया है जो अपने में युगपुरुष मोदी जी के कुशल नेतृत्व के प्रतीक हैं| और, जैसा कि लेखक का कहना है, यह न्याय, धर्म और नीति की जीत है तो मैं यहाँ इस “जीत” के सन्दर्भ में हिन्दू-मुसलमान भाई-चारे की जीत को भी उल्लेखनीय कहूँगा!

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