फिर कोई बुद्ध जिन ना हुए वस्त्र त्यागकर

—विनय कुमार विनायक
ईश्वर ने एक जैसा बनाया नहीं मानव को,
सबके सब अलग हैं अद्वितीय हैं बेजोड़ हैं,
एक सा रंगरूप मन बुद्धि ना मिले सबको,
फिर क्यों तुम एक जैसे बनाने पर तुले हो?

लाख चाहने पर फिर से कोई राम ना बना,
कोई कृष्ण ना हुआ कोई बुद्ध ना हो पाया,
कोई दूसरा महावीर ईसा पैगम्बर नहीं आया,
पिता पुत्र भाई मां बेटी होते नहीं एक जैसा!

राम लीला का किरदार राम नहीं हो सकता,
पौण्ड्रक कभी भी कृष्ण जैसा नहीं हो पाता,
फिर कोई बुद्ध जिन ना हुए वस्त्र त्यागकर,
बाइबल कुरान रटकर बना नहीं ईसा पैगंबर!

फिर क्यों आगम निगम बाइबल कुरान को
रटा घूंटा पिलाकर उनके नकल बना रहे हो,
कोई ना हो सकता एक सा पहनावा पहनके,
तिलक-छाप लगाके,मूंछ मुड़ाके,दाढ़ी उगाके?

जब कमल के डंठल पर गुलाब नहीं उगते,
जूही की डाली में गेंदा चमेली नहीं खिलते,
फिर बेली की बाग में कैक्टस क्यों उगाते?
सृष्टि का स्वाभाविक विकास ना होने देते!

ये मानव क्लोन, फल फूलों के कलम जैसे,
एक के धड़ में दूसरे के सिर क्यों लगा रहे,
एक के क्षेत्र में दूसरे से वर्णसंकर उगा रहे,
मानव जाति के सद्गुणों को क्यों भगा रहे?

ये वर्णसंकर हाइब्रिड कौन गए किसके ऊपर?
कैसे वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे अमानुष होकर?
खतरे ही खतरे हैं मानव जाति की सृष्टि पर,
प्रश्न चिह्न है मनुष्य की संकीर्ण दृष्टि पर!
—विनय कुमार विनायक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,048 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress