हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं
पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं।
आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता
कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं।
सावन का महीना है मौका तीज का
पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं।
समां क्या होगा जब आकर कहोगे
गोरी अब तो तेरे नखरे ही बड़े हैं।
आजाओ जल्दी अब रहा नहीं जाता
हाथों में रची मेहँदी सूने झूले पड़े हैं।
रोज़ रोज़ जश्न या जलसे नहीं होते
मोती क़दम क़दम पे बिखरे नहीं होते।
सदा मेरी लौटकर आ जाती है सदा
उनसे मिलने के सिलसिले नहीं होते।
खुश हो लेता था दिल जिन्हें गाकर
अब होठों पर प्यार के नगमे नहीं होते।
कितने ही बरसा करें आँख से आंसू
सावन में सावन के चरचे नहीं होते।
घबरा रहा है क्यों वक़्त की मार से
बार बार ऐसे सिलसिले नहीं होते।
गुज़र गई सर पर कयामतें इतनी
किसी बात में उनके चरचे नहीं होते।