ये कथा है तब की जब जाति नहीं बनी थी

—विनय कुमार विनायक
ये कथा है तब की जब जाति नहीं बनी थी
वर्ण नहीं था जन्मगत, सभी कर्म से अर्जित!

एक ही घर में कोई ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण तपी
कोई कुलवंश कबीला नारी रक्षक त्राता क्षत्रिय!

कोई लघुभ्राता बना ब्राह्मण गुरुभक्त आरुणि!
खेतमेढ़ तटबंधरक्षी करता आश्रम में बागवानी!

कोई विश ग्रामणी कृषक बना था वैश्य वणिक
कोई ज्येष्ठ राज्याभिषिक्त का करता सेवकाई!

चरण पादुकासेवी भरत औ’शत्रुघ्न था चंवरधारी
एक माता पिता के पुत्रों की अलग थी नियति!

कभी धर्मधुरीन चक्रवर्ती युधिष्ठिर का अनुज
सहदेव गोपालक बना था, नकुल घुड़शालपति!

राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव थे क्षत्रिय किन्तु
उनके कुल कुन्वा के नंद घोष थे वैश्य गोपति!

लोग समाज में वैसा ही स्थान ग्रहण कर लेते
जैसी उसकी योग्यता और होती थी परिस्थिति!

आरंभ में वर्ण तीन था चौथा वर्ण थी स्थिति
ये कथा है तब की जब जाति नही बनी थी!

गुमनाम ज्ञान अर्जित कर बनता था ब्राह्मण
ऋषि दासी जाबाला पुत्र सत्यकाम था ऐसा ही!

चंद्रवंशी क्षत्रिय पुरुरवा के पौत्र नहुष का पुत्र
तपस्या के फलस्वरूप बना था ब्राह्मण यति!

तब तप ज्ञान के बलपर वर्ण बदल जाता था
द्वितीय पुत्र ययाति ने संभाली क्षत्रिय गद्दी!

हर गोत्र वंश प्रवर्तक सभी कहलाते थे ऋषि
ऋषियों का ना कोई वर्ण और नही थी जाति!

आरंभिक ऋषियों में कोई वर्णगत भेद नही
ऋषियों की संतति का नही वर्ण, नही जाति!

पूरी मानव जाति का कुल गोत्र वंश प्रवर्तक
ब्रह्मा पुत्र सप्त ऋषिगण औ’ दक्ष प्रजापति!

कालांतर में सभी ब्राह्मण कहलाने लगे थे
जो थे वैदिक ऋचा ज्ञानी ब्रह्म पुत्र सप्तर्षि!

वर्ण परिवर्तन में कठोरता तब दिखाई पड़ी
जब क्षत्रिय विश्वामित्र को वशिष्ठ ने रोकी!
कठिन तप करने पर भी विश्वामित्र राजर्षि
पर मिला नही दर्जा उन्हें ब्राह्मण होने की!

लंबा युद्ध चला था विश्वामित्र व वशिष्ठ में
वशिष्ठ का गोहरण कर आश्रम जला दी थी!

विश्वामित्र के सौ पुत्रों को मारा था वशिष्ठ ने
विश्वामित्र नही ब्राह्मण भले रचा मंत्र गायत्री!

यह प्रथम घटना थी जब किसी अब्राह्मण को
ब्राह्मण बनने में जद्दोजहद करनी पड़ी थी!

प्रथमतः यति ययाति की पीढ़ी प्रतिबंधित थी
अंततः ब्रह्मा ने उन्हें दी ब्राह्मण की उपाधि!

आगे मनुस्मृतिकार भृगु प्रपौत्र परशुरामजी ने
ब्राह्मण वर्ण को ब्राह्मण जाति में ढाल दी थी

भार्गव परशुराम और हैहय सहस्त्रार्जुन के बीच
गोहरण के बहाने युद्ध हुआ था इक्कीस पीढ़ी!

ब्राह्मणों की जीत हुई और क्षत्रियों की हार हुई
क्षत्रिय टूटा, चार वर्ण से जातियां कई हजार हुई!
—विनय कुमार विनायक

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