—विनय कुमार विनायक
उत्तर की ओर बढ़ो हमेशा उत्तरोत्तर
बिना मुहूर्त विचारे पूर्व को निहारो
जिधर सूर्य उगता है जो ध्रुव सत्य है!
पृथ्वी के चहुंओर किसी दिशा की ओर
देखो सूर्य हमेशा पूर्व में ही उगता है
चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है
सूर्य चन्द्र व पृथ्वी सत्य सनातन है!
काबा रोम जेरुसलम की बदलती रहती दिशा
काशी शिव के त्रिशूल पर टिका रहता हमेशा!
तुम भारत से निहारो पश्चिम में होगा काबा
तुम पश्चिम की ओर मुख कर नमाज पढ़ते!
तुम यूरोप अमेरिका से निहारो पूर्व में काबा
तुम पूर्व दिशा की ओर निहार नमाज पढ़ते!
वस्तुत: जब तुम पश्चिमी देशों में होते
तब बदल जाती तुम्हारे इष्टदेव की दिशा
जब तुम यूरोप में होते तब पूर्व में होते
काबा काशी रोम सूर्य चन्द्र पृथ्वी व्योम!
जो अमेरिकी देशों में होते पूर्व को निहार पढ़ते नमाज
रखते रोजा करते पूजा आराधना जप तप साधना अरदास
एशियाई धर्म मजहबवाले अमेरिकी घड़ी घंटे के हिसाब से!
उठते सोते ईश अराधना करते पांचों वक्त नमाज पढ़ते
पर सुबह दोपहर के घंटे उलट पलट गए होते
सूर्यास्त शाम व रात की घड़ी बदल गई होती
मगर सुबह का सूरज तो अमेरिका में भी पूरब में उगते!
हम सूर्यातप से निकले धरती की माटी से बने
सूर्य पुत्र मनु के बेटे सूर्यवंशी मानव,
मनु के बेटों के भांजे चन्द्रवंशी ऐल!
आद का मतलब सूर्य होता आदम भी सूर्य का बेटा
आदमी आदम से निकला जैसे मानव मनुपुत्र होता!
ये मिथक नहीं सत्य है
सूर्य हमारा पिता, पृथ्वी मां, चंदा मामा कहलाता
सूर्य समुद्र जल को खौलाता, चन्द्र उत्ताल तरंगों को
ज्वार भाटे में उछाल कर मेघ बनाता जल बरसाता
वनस्पति में ओस से अन्न बीज उगाता सोम देवता!
ये सृष्टि की अनवरत क्रिया सूर्य धरती को ताप देता
चन्द्रमा समुद्र जल को ज्वार भाटे में उछालते रहता
ताप भांप उमस मिट्टी जलवायु से जीव जन्म लेता!
हम तो मिट्टी के पुतले, जल के बुलबुले, आग्निगोले,
सबकुछ सूर्य चन्द्रमा धरती मां वायुमंडल का है खेल!
ये मिथक नहीं सत्य है
हम पृथ्वी अंशी, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, अग्निवंशी,
आपस में घुले मिले अजर अमर आदम मनु के वंशबेल
हम फिर फिर बारंबार क्षिति जल पावक गगन समीर में
मिलने जुलने का सृष्टि के आरंभ से करते रहते हैं हठखेल!
—विनय कुमार विनायक