ये कथा है मगध के सात राजवंशों की

—विनय कुमार विनायक
ये कथा है मगध के सात राजवंशों की,
सुनो ह-शि-न-मा-शु-क-सात राजवंशों व
गुप्तवंश ने मगध पर शासन किया था!

पहला वंश ह से हर्यक, शि से शिशुनाग,
न से नंद, मा से मौर्य,शु से शुंग, क से
कण्व, स से सातवाहन वंश कहलाया था!
(1) हर्यकवंशी मगध सम्राट
ईसा के पूर्व पांच सौ चौवालीस ईस्वी में
एक सामंत भट्टी ने मगध के गिरिव्रज में
हर्यक क्षत्रिय राजवंश स्थापित किया था!

भट्टी क्षत्रियों का हर्यक या हिरण्यक या
हैहयक वंश; हैहय वंशी क्षत्रिय हो सकता,
हर्यक इतिहास में पितृहंता वंश कहलाता!

सामंत भट्टी जैन साहित्य में प्रसेनजित
या उपश्रेणिक कहलाते थे, जिनके दो पुत्र
श्रेणिक बिम्बिसार औ’ चिलातिपुत्र हुए थे!

भट्टी ने बिम्बिसार को निर्वासित किया
औ’ चिलातिपुत्र को राजा निर्वाचित किया
श्रेणिक दक्षिण कांचीपुर शहर चला गया!

श्रेणिक ने नन्दश्री ब्राह्मणी से प्रेम किया,
जिससे अभय राज कुमार ने जन्म लिया,
अभय दयालु थे, अनाथ जीवक को पाला!

आगे चलकर चिलातिपुत्र की राजकाज से
विरक्ति होने पर बिम्बिसार ने राज किया,
जरासंध के बार्हद्रथवंश का गिरिव्रज पाया!

बिम्बिसार ने गिरिव्रज के पांच पहाड़ियों के
बाहर मगध की नवराजधानी राजगृह बसाई
और सेनिया कहलाए; रखनेवाले सेना स्थाई!

बिम्बिसार एक सम्राट विस्तारवादी नीति का,
वैवाहिक संबंध से साम्राज्य विस्तारित किया,
पटमहिषी चेल्लना लिच्छवीराज चेटक कन्या!

प्रसेनजित की बहन कोसलादेवी से शादी की
दहेज मिला काशी, फिर विदेह कन्या वासवी,
विवाह किए खेमा से जो राजकुमारी मद्र की!

सीमांत अंग अवंती अश्मक करुष भर्ग छोड़के
उन्होंने सारे जनपद से सम्बन्ध स्थापित किए,
बाद में अवंती से मैत्री और अंग को जीत लिए!

अंग को जीतकर अजातशत्रु को उपराजा बनाए,
बाद में अंग सोमदंड ब्राह्मण को जागीर में दिए,
बिम्बिसार सहिष्णु जैन थे फिर बौद्ध बन गए!

दस रानियों से जन्म लिए थे दस राज कुमार,
अभय, अजातशत्रु, वारिषेण, नंदिषेण, मेघकुमार,
अक्रूर, हल्ल, विहल्ल, जितशत्रु और दन्तिकुमार!

अजातशत्रु ने चार सौ बेरानबे ईसापूर्व में पिता
बिम्बिसार को कैद/वधकर हथिया ली राजसत्ता,
अजातशत्रु अतिमहत्वाकांक्षी सुपुत्र चेल्लना का!

चेटक राजकन्या चेल्लना की बहन त्रिशला थी,
जो महारानी थी ज्ञातृकवंशी राजा सिद्धार्थ की
और मां महावीर व मौसी सम्राट अजातशत्रु की!

अजातशत्रु योग्य शासक,की राजगृह की किलेबंदी,
वे स्थापक पाटलीग्राम के,जो पाटलिपुत्र कहलाता,
जिसे पुत्र उदायिन ने बनाई राजधानी मगध की!

उदायिन चार सौ साठ ईसापूर्व में हुए गद्दीनशीन,
अजातशत्रु-पद्मावती का पुत्र उदायिन थे पितृहंता,
गंगा सोन के संगम पर पाटली कुसुमपुर निर्माता!

कुसुमपुर पुष्पपुर व पटना कहलाता पाटलीपुत्र ही,
जिसे मेगास्थनीज ने इण्डिका में कहा पालिबोथ्रा,
जो राजधानी रही उदायिन, शिशुनाग से गुप्त की!

उदायिन के बाद अनुरुद्ध, मुण्ड और नागदशक,
सभी पितृहंता शासक, अंतिम राजा नागदशक को
अपदस्थकर जनाकांक्षा से शिशुनाग बने शासक!
(2) शिशुनागवंशी मगध सम्राट
शिशुनाग के पूर्वज बाह्लीक प्रदेश के निवासी थे,
जो प्रतिभा के बल पर उपराजा बने थे काशी के,
शिशुनाग बने सम्राट,चला शिशुनागवंश मगध में!

शिशुनाग व्रात्यनन्दि अवंन्तिवर्द्धन व्रात्य क्षत्रिय
क्षत्रबन्धु कहलाए, जो लिच्छवी पुत्र राजनर्तकी से
हुए उत्पन्न, कुछ काल राजधानी वैशाली ले गए!

शिशुनाग के बाद नन्दिवर्द्धन काकवर्ण कालाशोक,
चार सौ उनचास से चार सौ सात ईसापूर्व तक रहे,
फिर क्षेमवर्द्धन और क्षेमजित गद्दी में आसीन थे!

शैशुनागों ने अवंती को मगध के अधीन कर लिए,
काकवर्ण कलिंग जीतकर कलिंगजिन/अग्रजिन हुए,
वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति काकवर्ण ने की!

शिशुनाग वंश का अंतिम शासक हुए महानन्दिन,
उनके पुत्र स्थूलभद्र जैनमुनि राजकाज से उदासीन,
अंततः महानन्दिन राजपाट त्याग हुए सत्ताविहीन!
(3 ) नंदवंशी मगध सम्राट
इस अराजक स्थिति से लाभ उठाए महापद्मनंद ने,
जो पूर्व चोर ‘चोर पुब्बा’,भाईयों संग चोरी करते थे,
उग्रसेन कहलाए, महानन्दिन के अवैध दासी पुत्र थे!

महापद्मनंद शूद्र माता से उत्पन्न शूद्रजात क्षत्रिय थे,
इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अस्मक, कुरु,
मिथिला,सूरसेन आदि क्षत्रियों के विजेता बन गए थे!

महापद्मनन्द का साम्राज्य आर्यावर्त से कलिंग तक,
उस वक्त के समस्त छोटे बड़े राजा हुए थे नतमस्तक,
उज्जयिनी उपराजधानी बनी पाटलिपुत्र के अतिरिक्त!

ये महापद्मनन्द थे ‘सर्वक्षत्रान्तक एकराट्’ विरुदधारी,
पुराणों में ‘द्वितीय परशुराम’ कहलाने वाले अधिकारी,
आठ पुत्र और वे कहलाते थे नवनन्द, सेना थी भारी!

तीन सौ सताईस ईसा पूर्व में मकदूनिया के शासक,
यूनानी सिकंदर ने आक्रांत किया था पश्चिमी भारत
अफगानिस्तान,पाकिस्तान,सिंध,पंजाब किया हस्तगत!

किन्तु मगध की शक्तिशाली सेना की बखान सुनकर,
सिकन्दर अलक्षेन्द्र की सेना में मच गया था भगदड़,
ईसापूर्व तीन सौ छब्बीस में उनकी सेना भागी डरकर!

विफल मनोरथ खाली खाली लौटे व्यास नदी तट से,
धनानन्द की सेना में लाखों सैनिक, हाथी, घोटक थे,
ऐसे मगध बच निकला यूनानी आक्रांता के झंझट से!
(4) मौर्यवंशी मगध सम्राट
चंद्रगुप्त मौर्य को मगध सिंहासन पर आसीन करा के,
चाणक्य ने अपमान का बदला चुका लिए धनानंद से,
वे तीन सौ पचास से,दो सौ पचासी ईसापूर्व मध्य हुए!

चणकपुरवासी चणकात्मज कुटलगोत्रज विष्णुगुप्त ही,
चाणक्य,कौटिल्य,मल्लिनाग,वात्स्यायन,आंगुल,द्रामिल,
पक्षिलस्वामी कहलाते थे जो आचार्य थे तक्षशिला के!

कौटिल्य जितने नीतिज्ञ, उतने ही क्रूर कुरूप कुटिल,
धून के पक्के महाज्ञानी,ध्यान उन्हें सिर्फ थी मंजिल,
विषविद्या से विषकन्या बनाने में वे बड़े ही काबिल!

दण्डनीति व अर्थशास्त्र के रचयिता चाणक्य गुरु थे
मगध साम्राज्य के सम्राट मुरापुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य के,
जो तीन सौ इक्कीस से,दो सौ संतानबे ईसा पूर्व थे!

चंद्रगुप्त मौर्य के जन्म वंश पर है बहुत किम्बदंती,
मुद्राराक्षस के नाटककार विशाखदत्त ने चंद्रगुप्त को
वृषल चन्द्रश्री,चन्दसिरि,चन्दउत, प्रियदर्शी संज्ञा दी!

विशाखदत्त ने चंद्रगुप्त मौर्य को कहा नंदवंशी संतति
मुद्राराक्षस के टीकाकार ढुंढिराज ने कहा नंद-मुरा की,
वे पौत्र महापद्मनंद का, यह कथनी विष्णु पुराण की!

महाभाष्यकार पतंजलि ने मौर्य को हीन जाति कहा,
प्लूटार्क ने लिखा सिकन्दर तीन सौ छब्बीस ईसापूर्व
तक्षशिला में जिस छात्र से मिले वो सैण्ड्रकोट्टस था!

तीन सौ तेईस ईसा पूर्व सिकन्दर की मृत्यु होनेपर,
उनके पूर्वी साम्राज्य का हिस्सा मिला सेल्यूकस को,
जो चंद्रगुप्त से हारकर, विवाह दिए पुत्री हेलेना को!

तीन सौ दो ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकोटकर ने भेजे
राजदूत दोस्त मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में,
जिन्होंने इण्डिका की रचना की पाटलिपुत्र में ठहर के!

इण्डिका के अनुसार सेना को नकद वेतन मिलता था,
एक ओर युद्ध तो दूसरी ओर किसान हल जोतता था,
पुरुष नहीं नारी के हाथ थी चंद्रगुप्त की निजी सुरक्षा!

सम्राट चंद्रगुप्त का उत्तराधिकारी राजपुत्र बिन्दुसार था,
जिनका उपनाम अमित्रघात यूनानी में अमिट्रोकेट्स था,
वे सिंहसेन कहलाते पर पुराणों में उल्लेख नहीं उनका!

चंद्रगुप्त ने दो सौ संतानबे ईसा पूर्व में सिंहासन पर,
बिन्दुसार को आसीन कराकर भद्रबाहु जैन मुनि संग
सल्लेखना ग्रहण हेतु गए श्रवणबेलगोला चंद्रगिरी पर!

बिन्दुसार ने दक्षिणापथ सहित सोलह प्रदेश जीतकर,
साम्राज्य फैलाया एक समुद्र से दूसरे समुद्र मुहानेपर,
पिता जाति से हीन,पर मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय बिन्दुसार!

बिन्दुसार की रानी धम्मा सुभद्रांगी मंदारक्षेत्र चंपा की,
दुमका भागलपुर मार्ग हंसडीहा चौक से आगे गोलहट्टी
ग्राम की, मैथिल ब्राह्मण कन्या अशोक की माता थी!

गोलहट्टी ग्राम आश्रम था चाणक्य मित्र गुलेठी झा का,
रानी सुभद्रांगी आजीवक मत की,गुलेठी की भातृपुत्री थी,
उसे षडयंत्र के तहत सम्राट से मिलने नहीं दी जाती थी!

कठिन प्रयत्न से बिन्दुसार से सुभद्रांगी का मिलन हुआ,
धम्मा को शोक से मुक्ति मिली, अशोक का जन्म हुआ,
किन्तु कुरूपता के कारण अशोक पिता को नापसन्द था!

अनेक रानियों से बिन्दुसार को एक सौ एक पुत्र हुए थे,
बिन्दुसार ने ज्येष्ठ सुसीम को राजपद देना ठान लिए थे,
उज्जैन के प्रशासक अशोक,तक्षशिला प्रशासक बनाने थे!

किन्तु दो सौ तिहत्तर ईसापूर्व बिन्दुसार स्वर्ग सिधार गए,
अशोक ने अनुज तिष्य छोड़ निन्यानबे भाई को मार दिए,
इस तरह चंडाशोक ने पाई राजसत्ता हाथ में हथियार लिए!

महापद्मनंद द्वारा पूर्व विजित कलिंग स्वाधीन सरकार हुए
पुनः कलिंग विजय हेतु अशोक ने रक्तपात नरसंहार किए,
क्रूर नरक-निर्माता अशोक फिर देवानांप्रिय प्रियदर्शी हो गए!

अशोक ने पश्चिम में काबुल कंधार और कलिंग विजयकर,
पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक, उत्तर में नेपाल कश्मीर लेकर
दक्षिण में मैसूर तक राज्य विस्तार कर, बसाए थे श्रीनगर!

अशोक ने प्रजाजन को प्रथम बार राजाज्ञा आदेश दिए थे,
शिलाखंडलेखों पाषाणस्तंभों प्राकृतिक गुफादीवार लेखन से,
उन्होंने पितृभाववश जनता को नैतिक मार्गदर्शन किए थे!

अशोक को मिली प्रेरणा फारसी हखमनी राजा दरायबहु से

शिलालेखन की,पर स्तंभलेखन प्रेरणा तालवृक्ष के तना से,
ये स्तंभ एकाश्मक चुनार पत्थर तालवृक्षों सरीखे होते थे!

उनके अभिलेखों की भाषा प्राकृत और लिपि ब्राह्मी ही थी,
मगर पाक के मानसेहरा व शहबाजगढ़ी की खरोष्ठी लिपि,
कन्धार में प्राप्त शिलालेख यूनानी अमराइक लिपि अंकित!

अशोक स्तंभों के शीर्ष पर सिंह वृषभ की मूर्तियां होती थी,
उनके अभिलेखों को पहले अंग्रेज जेम्स प्रिन्सेप ने पढ़ी थी,
गया बाराबरपहाड़ी कर्णचौरा सुदास विश्वझोपड़ी आजीवक की!

छठे स्तंभलेख से ज्ञात होता कि अशोक ने राज्याभिषेक के
बारह वर्ष बाद दो सौ सत्तावन ईसापूर्व से धर्मलेख शुरू किए
लघुशिलालेख,चौदह शिलालेख,तीनगुहालेख,सातस्तंभ लेख थे!

अशोक के पितामह जैन पिता बिन्दुसार आजीवक नास्तिक,
राज्याभिषेक के दस साल बाद सम्बोधि मार्ग किए स्वीकृत,
अशोक ने मानसेहरा के अष्टम शिलालेख में कराए अंकित!

अशोक ने दो सौ तिहत्तर ईसापूर्व में सत्ता पाई,चार वर्ष बाद
राज्याभिषेक कराए,बीस वर्ष बाद रुम्मिनदेई लुम्बिनी गए थे
पूजा करने, लौटे चौरासी हजार स्तूप निर्माण का संकल्प ले!

अशोक ने रुम्मिनदेई लघुशिलालेख में बुद्ध जन्मभूमि हेतु
बलि त्याग,भाग कम किए, पहले शिलालेख में है उल्लिखित
पूर्व में सैकड़ों पशु पक्षी कटते, बाद में दो पशु एक ही पक्षी!

कलिंगयुद्ध के बाद धम्मा पुत्र ने बुद्धधम्म अंगीकार किए,
किन्तु विशाल सेना,मृत्युदण्ड व्यवस्था नहीं अस्वीकार किए,
तीसरी बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में हुई, पुत्र महेंद्र बौद्ध हुए!

इस बौद्ध संगीति में विभज्जवाद/थेरवाद को मान्यता मिली,
सुत्त/धम्मपिटक, विनयपिटक के बाद अभिधम्मपिटक प्राप्ति,
सुवर्णभूमि, ताम्रपर्णी लंका में धम्म फैलाने की हुई स्वीकृति!

स्थविर महेन्द्र पटना महेन्द्रू घाट से सिंहलद्वीप श्रीलंका गए,
पुत्री संघमित्रा भी गई बोधि वृक्ष की शाखा ले धर्म प्रचार में,
ये अशोक महान थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म फैला दिए संसार में!

दो सौ तीस ईसा पूर्व में अशोक ने पौत्र सम्प्रति के पक्ष में
सत्ता त्याग दी, सारी संपत्ति कुक्कुटाराम विहार को दान की,
सम्प्रति मौर्य ने अंधे पिता कुणाल के नाम से सत्ता संभाली!

सम्प्रति विगताशोक और इन्द्रपालित भी कहलाए, उन्होंने
अशोक की मृत्यु के बाद दक्षिणी पश्चिमी भूभाग प्राप्तकर
उज्जयिनी राजधानी बनाई, पाटलिपुत्र दशरथ के हिस्से में!

सम्प्रति व दशरथ के बाद शालिशुक ने मगध सत्ता पाई,
फिर देववर्मन शतधन्वा और अंतिम बृहद्रथ मौर्य सम्राट,
जिनकी सेनापति पुष्यमित्रशुंग ने हत्याकर सत्ता हथियाई!
(5) शुंगवंशी मगध सम्राट
एक सौ छियासी ईसापूर्व में अंतिम मगध सम्राट बृहद्रथ
सैन्य निरीक्षण के दौरान विश्वासघाती ब्राह्मण सेनापति
पुष्यमित्र शुंग के शिकार हुए, ब्राह्मण सत्ता हुई स्थापित!

पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध भिक्षुजनों का व्यापक संहार किए,
दो अश्वमेध यज्ञ कर ब्राह्मण धर्म बलिप्रथा पुनरुद्धार किए,
महाभाष्यकार पतंजलि ने यज्ञ पुरोहित पद स्वीकार किए!

पुष्यमित्र ने यज्ञ घोड़ा पौत्र वसुमित्र की देख-रेख में छोड़ा,
यूनानी दिमित्रियस महाभारतवर्णित यवनाधिप दत्तमित्र ने
बनके रोड़ा सिन्ध में पकड़ा घोड़ा,जिसे शुंगवीरों ने मरोड़ा!

शुंगकाल में बैक्ट्रियाई यूनानी आक्रमण का था सिलसिला,
पश्चिमोत्तर में मिनांडर एक सौ पैंसठ से एक सौ पैंतालीस
ईसापूर्व का एक बौद्ध राजा ने पाटलिपुत्र में किया हमला!

हिन्द-यवन मिनांडर के शाकलगद्दी को शुंग जीत न सका
जो मिलिंद हो गए बौद्ध धर्मी ‘मिलिंदपनहो’ के प्रश्नकर्ता,
पुष्यमित्र थे भरहुत स्तूप, सांची स्तूप की वेदिका निर्माता!

हाथीगुम्फा अभिलेख में कलिंग नरेश खारवेल ने लिखा है
कि उन्होंने बृहस्पति मित्र शुंग को पराजितकर हथिया ली
अशोक द्वारा विजित कलिंग,उज्जैन तक शुंगसत्ता सिमटी!

पुष्यमित्र पुत्र अग्निमित्र हुआ उतराधिकारी जो गोप्ता था
विदिशा का, जिसकी प्रेमिका थी अवन्ती कन्या मालविका,
कालिदासकृत मालविकाग्निमित्रम के दोनों नायक नायिका!

शुंग ने बौद्ध शासकों की प्राकृत भाषा त्याग संस्कृत को
राजभाषा का दर्जा दिया,किया पुराण महाभारत मनुस्मृति
पुनःसंपादन प्रक्षेपण, हो गई महिमामंडित ब्राह्मण जाति!

पतंजलि महाभाष्य में उल्लिखित है शुंगों ने पाटलिपुत्र के
अतिरिक्त अयोध्या में राजधानी बनाई हूबहू पाटलिपुत्र सा
पर पुष्यमित्र शुंग के सभी उतराधिकारी निकम्मा निकला!

पचहत्तर ईसा पूर्व अंतिम विलासी शुंग शासक देवभूति की
ब्राह्मण अमात्य वसुदेव कण्व द्वारा हत्या कर दी गई थी
वसुदेव कण्ववंशज सुशर्मन से सातवाहन ने सत्ता छीन ली!

ये सातवाहन भी थे आन्ध्र भृत्य दक्षिण भारतीय ब्राह्मण,
कण्ववंश की सत्ता उखाड़ पाटलिपुत्र से चले गए थे दक्षिण,
मातृगोत्र नाम से जाने जाते ये राजवंश आन्ध्र सातवाहन!
विनय कुमार विनायक

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