‘जो दूसरों को सुख बांटता है उसे भी सुख मिलता है: स्वामी चित्तेश्वरानन्द’

0
196

मनमोहन कुमार आर्य,

श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौन्धा-देहरादून का 18वां वार्षिकोत्सव दिनांक 1-6-2018 को सोल्लास आरम्भ हुआ। प्रातःकाल ऋग्वेद पारायण यज्ञ डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई के ब्रह्मत्व में हुआ। यज्ञ में वेदमंत्रोच्चार गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ के मध्य में ऋषि भक्त स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का उद्बोधन हुआ। स्वामी जी ने वायु प्रदुषण की समस्या की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अग्निहोत्र-यज्ञ वायु, जल, अन्न व ओषधियों आदि को शुद्ध करता है। उन्होने कहा कि 1 तोला देशी गाय के शुद्ध घृत से आहुति देने से बहुत बड़ी मात्रा में वायु शुद्ध व गुणकारी होती है। स्वामी जी ने इतिहास में वर्णित राजा अश्वपति का उल्लेख किया और बताया कि उनके राज्य में एक भी नागरिक ऐसा नहीं था जो बिना यज्ञ किये भोजन करता हो। स्वामी जी ने श्रद्धालु यजमानों व श्रोताओं को कहा कि आप लोगों ने यज्ञ करके स्वयं और दूसरों में सुख बांटा है। उन्होंने कहा कि जहां तक इस यज्ञ के सम्पर्क में आयी वायु जायेगी वहां वहां सुख का विस्तार होगा। स्वामी जी ने प्रकृति में घट रहे नियम का उल्लेख कर कहा कि जो मनुष्य दूसरों को सुख बांटता है उसे भी ईश्वर की व्यवस्था से सुख मिलता है। उन्होंने कहा कि जो हम बोते हैं वही हमें मिलता है। आम का पेड़े लगायें तो उसमें आम ही लगेंगे। स्वामी जी ने कहा कि अग्निहोत्र यज्ञ सबको सुख देने वाला व दुःखों का नाश करने वाला है। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने कहा कि हमें श्वांस की हर क्षण आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि हमें 3 मिनट तक सांस न मिले तो हमारा जीवन समाप्त हो जाता है। यज्ञ के इस महत्व के कारण हम सबको अपने अपने घरों पर प्रतिदिन अग्निहोत्र हवन करना है। पति व पत्नी दोनों को मिल कर अग्निहोत्र यज्ञ में आहुति देनी चाहिये। माता-पिता को चाहिये कि वह यज्ञ का समय निर्धारित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि उनके बच्चे स्कूल जाने से पहले अग्निहोत्र में आहुतियां डाल कर स्कूलों को जायें।

स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सबको अग्निहोत्र यज्ञ करने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि हवन वा यज्ञ करके हम पुण्य नहीं करते अपितु पापों से बचते हैं। उन्होंने बताया कि मनुष्य शरीर से जो दूषित सांस बाहर आता है उससे वायु में प्रदुषण होने से उस मनुष्य को उस मात्रा में पाप होता है। इसी प्रकार वस्त्र धोने से पानी गन्दा होता है। भोजन आदि पकाने से भी वायु प्रदुषण होता है। हमारे मल-मूत्र से भी वायु प्रदुषण आदि होता है जिससे अन्य प्राणियों को रोग आदि होते हैं। मनुष्य के अपने ऐसे अनेक कार्य होते हैं जिससे पर्यावरण व समाज को हानि होती है। इनसे सबसे उसे पाप लगता है। इसका समाधान करने के लिए ही यज्ञ किया जाता है जिससे हम अनजाने में हुए पापों के फलों से मुक्त हो सकें। स्वामी जी ने कहा कि हमारा शरीर भौतिक वस्तु है। इसका कल्याण अग्निहोत्र यज्ञ करके ही होगा। वेदों के विद्वान स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मनुष्य का अन्तःकरण भी सन्ध्या, स्वाध्याय व यज्ञ करने से शुद्ध होता है। स्वामी जी ने लोगों को यह भी बताया कि स्त्रियां जब यज्ञ में बैठे तो वह अपने सिर को ढका करें। पुरुष भी अपने शिर की रक्षा के निमित्त उसे ढक सकते हैं।

स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने कहा कि ईश्वर हमारा सबसे बड़ा हितैषी है। वह सदा सदा का हमारा साथी है। परमात्मा पूर्ण है और ज्ञानस्वरूप एवं आनन्दस्वरूप है। उसे हमारी किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। हम जो सन्ध्या, स्वाध्याय व यज्ञ आदि करते हैं उससे हमें ही लाभ होता है व हमारा कल्याण होता है। अतः सबको सबके उपकारक यज्ञ कर्म को प्रतिदिन नियमपूर्वक अवश्य करना चाहिये। यह कहकर स्वामी जी ने अपने वक्तव्य को विराम दिया।
आज प्रातः गुरुकुल पौंधा का तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव सोल्लास आरम्भ हुआ। इस अवसर पर ऋग्वेद पारायण यज्ञ हुआ जिसमें अनेक यज्ञ कुण्डों में यजमानों एवं देश के अनेक राज्यों वा दूर-दूर से पधारे ऋषि भक्तों ने आहुतियां दीं। यह यज्ञ आर्यजगत् के प्रसिद्ध विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई के ब्रह्मत्व में हुआ। मन्त्रपाठ गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया।

यज्ञ में अनेक यजमान बने। मुख्य यजमान गुरुकुल के लिए भूमि दान देने वाले स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के पुत्र श्री श्रीकान्त वम्र्मा जी के पुत्र व पुत्रवधु थे। यज्ञ के मध्य स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी का यज्ञ के महत्व पर प्रभावशाली व सारगर्भित प्रवचन हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा डा. सोमदेव शास्त्री जी ने भी संक्षेप में अपने विचार प्रस्तुत किये।

यज्ञ की समाप्ति पर ध्वजारोहण हुआ। इसे स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती एवं अन्य अनेक आर्य विद्वानों की उपस्थिति में किया फहराया। ध्वजारोहण के साथ वेदमन्त्र से राष्ट्रीय प्रार्थना एवं ध्वज गीत हुआ जिसे आर्य भजनोपदेशक पं. सत्यपाल सरल जी ने गाकर प्रस्तुत किया।

आज के पूर्वान्ह के सत्र को सद्धर्म सम्मेलन का नाम दिया गया। इस सम्मेलन में दो आर्य विद्वानों पं. धर्मपाल शास्त्री एवं पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी के सारगर्भित एवं वैदुष्यपूर्ण उपदेश हुए। इसकी अध्यक्षता स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने की। इस आयोजन में शास्त्रीय गायक पं. कल्याणदेव वेदि, श्री नरेशदत्त आर्य जी एवं युवक डा. सौरभ आर्य के भजन भी हुए। स्वामी प्रणवानन्द जी के अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद इस सत्र का सत्रावसान हुआ।

अपरान्ह 3.00 बजे से ऋग्वेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ के अनन्तर वेद-वेदांग सम्मेलन का आयोजन किया गया। आरम्भ में प्रसिद्ध गीतकार पं. सत्यपाल पथिक के कुछ भजन हुए। सम्मेलन में मुख्य प्रवचन प्रसिद्ध वैदिक विद्वान डा. रघुवीर वेदांलकार एवं पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी के हुए। डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने कहा कि यदि हम वेदों का स्वाध्याय, ईश्वरोपासना व यज्ञ आदि करते है ंतो इससे हम आधे धार्मिक बनते हैं। उन्होंने कहा कि हमें वेद की शिक्षाओं का पालन व आचरण करना चाहिये। समाज में जो जो बुराईयों हैं, उनका नाश करना भी हमारा कर्तव्य है। आचार्य जी ने राम, कृष्ण व दयानन्द जी के जीवन के उदाहरण देकर वृत्रों व राक्षसीय प्रवृत्तियों के नाश व उनका सुधार करने के कार्यों के महत्व पर अपने विचारों को केन्द्रित किया और कहा कि हमें वेदाज्ञा, राम, कृष्ण व दयानन्द जी के जीवन से प्रेरणा लेकर ऐसा ही करना होगा नही ंतो यह समाज सुधर नहीं सकता। उन्होंने कहा कि अपने सभी कर्तव्यों का पालन करने पर ही हम पूरे धार्मिक बनते हैं। पे. वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी का भाषण भी अलंकार समिन्वित प्रभावशाली भाषा में था। आपने ऋषि दयानन्द और उनके वेदभाष्य के महत्व के विषय में भी श्रद्धा से पूर्ण अनेक शब्द कहे। सम्मेलन के अध्यक्ष गुरुकुल के आचार्य डा. यज्ञवीर जी थे। उनका सम्बोधन भी हुआ। सन्ध्या-उपासना के बाद यह सत्र वा सम्मेलन समाप्त हुआ। आज सांयकाल देहरादून में बहुत तेज आंधी व तूफान भी आया और तेज वर्षा हुई। इससे वातावरण में उष्णता कम हुई और मौसम अच्छा सुहावना हो गया।

उत्सव में दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं। भोजन एवं अन्य सभी व्यवस्थायें उत्तम कोटि की हैं। बहुत से लोगों ने गुरुकुल के कार्यों के लिए दान दिया। बड़ी संख्या में आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान एवं भजनोपदेशक इस आयोजन में पधारे हुए हैं। कुछ नाम हैं स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वागी प्रणवानन्द सरस्वती, डा. रघुवीर वेदालंकार, पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय, पं. धर्मपाल शास्त्री, पं. इन्द्रजित् देव, यमुनानगर, आदि। भजनोपदेशकों में पं. ओम् प्रकाश वर्मा यमुनानगर, पं. सत्यपाल पथिक जी, पं. सत्यपाल सरल जी, श्री कल्याणदेव वेदि, पं.. दिनेश पथिक जी, श्री नरेश दत्त आर्य, श्री माम चन्द पथिक जी आदि। ब्रह्मचारी नन्दकिशोर जी भी उत्सव में आये हुए हैं। हमने अनेक विद्वानों के चित्र लिये। कुछ चित्र आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,024 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress