—विनय कुमार विनायक
कुर्सी मिली है तो अच्छा काम करना,
कुर्सी मिली है तो मनुष्य बनके रहना,
कुर्सी का कर्म नहीं है अहं पालने का,
ठीक नहीं कुर्सी की अकड़ दिखलाना!
ये जो जनता तेरे सामने में खड़ी है,
उससे तेरे कुर्सी की साईज नहीं बड़ी,
कुर्सी का धर्म नहीं धौंस जमाने का,
खेलो नहीं खेल हाथी चढ़के इतराना!
कुर्सी विरासत नहीं,मिली पढ़ाई करके,
विडंबना है कि कुर्सी की साईज बढ़ती
बिना ज्ञान,ईमान,मानवता बढ़ोतरी के,
पर कुर्सी का लक्ष्य नहीं कमाना-खाना!
कुर्सी मिली है तो मत अभिमान करना,
कुर्सी मिली इसलिए नहीं कि योग्य हो,
कुर्सी मिली यूं कि तुमसे अधिक योग्य
जन का,वक्त पे अवसर से चूक जाना!
योग्यता व्यक्ति, ज्ञान, समय सापेक्ष है,
अरे आदमी नहीं वक्त सिकंदर होता है,
वक्त के चूकने पर सिकंदर भी रोता है,
अस्तु कुर्सी का काम है धर्म निभाना!
लोकतंत्र में कुर्सी ने कलम को पाई है,
कुर्सी पाके कई लोग अताताई हो जाते,
तलवार से अधिक कलम घातक होती,
छोड़ दो घात-प्रतिघात का खेल खेलना!
विनय कुमार विनायक