भाजपा को बेदखल करने ईवीएम का विरोध

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अनिल अनूप

लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आने के साथ-साथ ईवीएम विवाद फिर गहराने लगा है। पिछले काफी समय से हर चुनाव से पहले ईवीएम के बहाने सियासत को गर्माकर सत्ताधारी दल को घेरने की देश में परंपरा सी बन गई है। हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बैलेट पेपर से चुनाव की मांग खारिज करते हुए दो टूक लहजे में कहा है कि आयोग ईवीएम की सत्यता तथा उसके फुलप्रूफ होने की बात पर मजबूती से खड़ा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि ईवीएम की पूरी कार्य प्र्रणाली पर उच्च प्रशिक्षित योग्य तकनीकी समिति नजर रखे हुए है और ईवीएम से छेड़छाड़ संभव ही नहीं है। वह यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि ईवीएम का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) तथा इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) द्वारा बेहद कड़ी निगरानी और सुरक्षा दशाओं में किया जाता है। इसके बावजूद विगत साढ़े चार वर्षों में जितने भी चुनाव हुए हैं, सभी में चुनाव से पहले ईवीएम को कटघरे में खड़ा किया गया, लेकिन विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा कोई भी चुनाव जीतते ही खामोशी का लबादा ओढ़ लिया गया। जिस प्र्रकार ममता बनर्जी द्वारा आयोजित कोलकाता रैली में विपक्षी दलों ने ईवीएम को लेकर आग उगली, उससे स्पष्ट हो गया था कि चुनाव से पहले फिर कोई न कोई खुलासा कर ईवीएम के बहाने केंद्र में सत्तारूढ़ दल और चुनाव आयोग की घेराबंदी के प्रयास किए जाएंगे। गत दिनों जिस प्रकार लंदन में आयोजित ‘हैकथॉन’ प्रेस कान्फें्रस में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की मौजूदगी में कथित साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजा नामक शख्स ने वीडियो कान्फें्रसिंग के जरिए चेहरे पर नकाब पहनकर दावा किया कि ईवीएम को न केवल हैक किया जा सकता है, बल्कि इसे वास्तव में हैक कर 2014 के लोकसभा चुनाव तथा 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बदले गए। हैकिंग के इस खेल में उसने अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस की सहभागिता का भी दावा किया। शुजा नामक शख्स ने दावा किया कि वह उस दौरान ईसीआईएल के लिए काम करता था, किंतु ईसीआईएल अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक संजय चौबे उप-चुनाव आयुक्त सुदीप जैन को लिखे पत्र में खुलासा कर चुके हैं कि शुजा 2009 से 2014 के दौरान न तो कंपनी का नियमित कर्मचारी था और न ही ईवीएम के डिजाइन और डेवेलपमेंट में उसकी कोई भूमिका रही। बहरहाल अब शुजा पर एफआईआर दर्ज होने के बाद यह दिल्ली पुलिस और हैदराबाद पुलिस की संयुक्त जिम्मेदारी है कि वह उस शुजा की कुंडली खंगालकर पूरा सच उजागर करें, जो स्वयं को हैदराबाद का मूल निवासी बताता है, क्योंकि ईसीआईएल शुजा के कंपनी में काम करने के दावे को पहले ही खारिज कर चुकी है। अगर शुजा के दावों की पड़ताल करें, तो उसके दावों में कई गंभीर खामियां स्पष्ट उजागर होती हैं। उसके ईसीआईएल में काम करने के दावे को तो कंपनी नकार ही चुकी है। उसका दावा था कि लोकसभा चुनाव के अगले ही दिन 13 मई, 2014 को कुछ हमलावरों ने उसकी टीम पर ताबड़तोड़ फायरिंग की, जिसमें उसके 11 साथी मारे गए और वह किसी तरह बच निकला। यहां अहम सवाल यह है कि अगर वाकई इतना बड़ा हत्याकांड हुआ था, तो मीडिया सहित किसी को भी इसकी भनक तक क्यों नहीं लगी? शुजा का दावा था कि भाजपा ने इस हत्याकांड को छिपाने के लिए उस स्थान पर सांप्रदायिक दंगे भड़काए, लेकिन उस दौरान हैदराबाद में ऐसे किसी सांप्रदायिक दंगे के बारे में तो कभी सुना तक नहीं गया। शुजा का सबसे सनसनीखेज दावा था कि भाजपा ने सेना द्वारा प्रयुक्त होने वाली लो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल ईवीएम हैकिंग के लिए किया। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि एक तो सेना द्वारा प्रयोग की जाने वाली फ्रीक्वेंसी अत्यंत गोपनीय होती है, जिसमें सेंध लगा पाना संभव नहीं होता। फिर भी अगर उसके इस दावे पर दो पल के लिए भरोसा कर भी लें, तो सवाल यह है कि उस वक्त केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की ही सरकार थी, तो फिर उस सरकार के समय में कोई विपक्षी दल किस प्रकार सेना की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल कर देश की सुरक्षा में इतनी बड़ी सेंध लगाने में सफल हो गया? बहरहाल, इन आरोपों की जांच का भविष्य में क्या नतीजा निकलेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, किंतु ईवीएम को लेकर विपक्ष का जो एजेंडा रहा है, एक बार वह फिर खुलकर सामने आ गया है। अब ईवीएम के साथ वीवीपैट का भी इस्तेमाल होता है, जिसके जरिए मतदाता अपने मत का प्रयोग करते हुए स्वयं यह देखकर आश्वस्त हो सकता है कि उसका मत उसी उम्मीदवार को गया है या नहीं, जिसके लिए उसने ईवीएम का बटन दबाया है और ऐसे में ईवीएम मशीनों को वीवीपीएटी से जोड़े जाने के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ कर चुनावी नतीजों में हेर-फेर की संभावना लगभग खत्म हो गई है। भारत में जो ईवीएम इस्तेमाल होती हैं, उसे ‘स्टैंड अलोन मशीन’ कहा जाता है अर्थात उसका किसी अन्य मशीन से कोई कनेक्शन नहीं होता। यह पूरी तरह बैटरी से चलती है और इसका डिजाइन इस प्रकार तैयार किया गया है कि अगर कोई इसमें छेड़छाड़ का प्रयास करता है, तो यह स्वतः ही बंद हो जाती है। ऐसे में ईवीएम में छेड़छाड़ या हैकिंग के दावों पर यकीन कर पाना बेहद मुश्किल है। वास्तविकता यही है कि ईवीएम कभी न कभी हर दल के निशाने पर रही है और ईवीएम का मामला राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी सुविधाओं से जुड़ा मामला बनकर रह गया है। जो दल हारता है, वह हार का ठीकरा पूरी तरह से ईवीएम पर फोड़ देता है। कभी भाजपा ईवीएम के विरोध में मुखर थी, तो 2014 में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद उसे सत्ता से बेदखल करने के ख्वाब संजोए विपक्षी दल ईवीएम का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. मेरी टिप्पणी के पहले वाक्य में” चाहता” शब्द छूट गया है।पूरा वाक्य होना चाहिए था,”मैं जानना चाहता हूँ”

  2. मैं जानना हूँ कि भाजपा कोEVM .से इतना मोह क्यों है?अन्य किन प्रमुख देशों में मतदान के लिए EVM का उपयोग होता है?

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