इक़बाल हिंदुस्तानी
फ़िर्क़ो का जाल सिर्फ़ ज़माने में रह गया,
इंसान अब असल में फ़साने में रह गया।
बेचे उसूल लोगों ने दौलत कमा भी ली,
मैं अपने उसूलों को निभाने में रह गया।
झूठों ने मेरे क़त्ल का फ़र्मान दे दिया,
होंठो पे मैं सच को सजाने में रह गया।
अगुवा मैं इंक़लाब का मशहूर क्या हुआ,
क़ीमत मैं अपने खूं से चुकाने में रह गया।
जां देने लेने से शहादत नहीं मिलती,
दंगाइयों को मैं ये बताने में रह गया।
ज़हनों की आतिशों से मेरा गांव जल गया,
बारूद मैं दिलों से हटाने में रह गया।
एक दोस्त मेरे घर को जलाकर भी जा चुका,
मैं दुश्मनों के घर को बचाने में रह गया।।
नोट-फ़िर्क़ा-वर्ग, फ़साना-उपन्यास, उसूल-सिध्दांत, फ़र्मान-आदेश,
अगुवा-नेता, इंक़लाब-क्रांति, आतिश-आग, जे़हन-दिमाग़।।