सत्य एवं तथ्य को नकारता ‘कथन भागवत’

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तनवीर जाफ़री

देश  में कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा के आम चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी  के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा देश के वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बीबीस ने यह प्रश्र किया था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक गुरु गोलवरकर ने अपनी पुस्तक  बंच ऑफ थॉटस में यह लिखा है कि भारत के तीनप्रमुख शत्रु हैं। मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट। क्या आप गोलवरकर जी के इसकथन से सहमत हैं? इस प्रश्र के उत्तर में राजनाथ सिंह बगलें झांकने लगे थे।न तो अपने जवाब में उनसे हां कहा गया ना ही न। इस प्रश्न का सीधा उत्तर देने के बजाए राजनाथ सिंह ने ‘तीसरा रास्ता’ अख़्तियार करना ज़्यादा मुनासिब समझा। और सही जवाब देने के बजाए लीपापोती के अंदाज़ में बोले कि मेरे ख्याल से उन्होंने ऐसा नहीं लिखा था और मैंने ऐसा नहीं पढ़ा। ज़ाहिर है राजनाथ सिंह का यह कूटनीतिक उत्तर देश में हो रहे चुनाव के वातावरण केमद्देनज़र दिया गया था। परंतु अब देश की राजनैतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके सहयोगी दलों द्वारा पिछले चुनावमें झोंकी गई अपनी पूरी ताकत के फलस्वरूप संघ के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदीदेश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हो चुके हैं। ऐसे में संघ व भाजपा द्वाराअपने बुनियादी एजेंडे पर और तेज़ी से चलना व उसे निरंतर धार देते रहना कतईआश्चर्यजनक नहीं है।पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने एकअजीबोगरीब व हास्यासपद कही जा सकने वाली दलील पेश की। उन्होंने कहा कि जबइंग्लैड के लोग स्वयं को इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोगअमेरिकी के रूप में जाने जाते हैं फिर आिखर हिंदोस्तान के लोग हिंदू के रूपमें क्यों नहीं जाने जाते? साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिदू धर्म अन्यधर्मों को अपने आप में समाहित कर सकता है। उनके इस कथन में न केवलविरोधाभास  है बल्कि उनका यही कथन उनकी चिंताओं का माकूल जवाब भी है। बेशकइंग्लैड के लोग इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोग अमेरिकी हीकहलाते हैं और कहलाना भी चाहिए। तो क्या भारत के लोग भारतीय,इंडिया के लोगइंडियन व हिंदुस्तान के लोग हिंदुस्तानी नहीं कहलाते? इन शब्दों के प्रयोगसे आिखर भारतवर्ष का किसी भी धर्म का कौन सा नागरिक इंकार कर सकता है? औरयदि भारत का कोई व्यक्ति स्वयं को इंडियन,भारतीय या हिंदोस्तानी कहने सेगुरेज़ करे तो उसकी राष्ट्रभक्ति या राष्ट्रीयता को निश्चित रूप से संदिग्धकहा जाना चाहिए। परंतु अमेरिका,जर्मन,इंग्लैंड अथवा भारतवर्ष या इंडिया या हिंदोस्तान यह सब भौगोलिक नाम हैं न कि इनका किसी धर्म से कोई नाता है।दूसरी ओर भागवत साहब का यह कथन कि हिंदू धर्म अन्य धर्मों को अपने-आप मेंसमाहित कर सकता है। यहां पर उन्हीं के द्वारा हिंदू शब्द का प्रयोग एक धर्मकी पहचान रखने वाले शब्द के रूप में किया गया है न कि भारतीय याहिंदोस्तानी नागरिक के परिपेक्ष्य में।देश में अक्सर हिंदू अथवा हिंदुत्व शब्द को लेकर बहस चलती रहती है। यहां तककि इस शब्द की परिभाषा को लेकर देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अपने विचारव्यक्त  कर चुका है। भूगोल के जानकार भी हिंदू शब्द की व्याख्या कुछ अलगतरीके से करते हैं। धर्म व इतिहास के जानकारों का भी हिंदू शब्द के प्रयोग वइसके अर्थ को लेकर अलग-अलग मत है। देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार हिंदूएक जीवन शैली का नाम है। जबकि भूगोल शास्त्र के जानकारों के अनुसारहिंदुकुश पर्वत के इस पार रहने वाले लोगों को जिनमें कि पाकिस्तान वअफ़गानिस्तान जैसे क्षेत्र भी शामिल थे हिंदू कहा जाता था। जबकि हिंदू धर्मके निष्पक्ष सोच रखने वाले जानकारों का मत है कि दरअसल हिंदू शब्द का धर्मसे कोई लेना-देना नहीं है। स्वयं को हिंदू कहने वालों का वास्तविक धर्म तोसनातन धर्म है। हिंदू शब्द की इतनी अलग-अलग व्याख्याओं के बावजूद संघप्रमुख द्वारा सभी भारतवासियों को हिंदू बताना मुनासिब नहीं है। गत् वर्षमुझे चीन जाने का अवसर मिला। वहां के आम लोग भारत के लोगों को इंडू कहकरपुकारते सुने गए। उन्होंने इंडू शब्द इंडिया से गढ़ा है। गोया इंडिया कारहने वाला इंडू। उनके इस संबोधन से मुझे कोई आपत्ति न तो हुई और न ही होनीचाहिए थी। परंतु भागवत का बयान न केवल सत्य एवं तथ्य को नकारने वाला बयानहै बल्कि उनके इस बयान से संघ के चिरपरिचित दुराग्रह का भी पता चलता है।संघ न केवल गैर हिंदू लोगों के प्रति दुराग्रह रखता है बल्कि भाषा को लेकरभी संघ अपना अडिय़ल रुख अपनाता रहा है। मिसाल के तौर पर अल्लामा इकबाल कीअत्यंत लोकप्रिय नज़्म सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, इस नज़्म मेंइकबाल ने स्वयं हिंदोस्तां शब्द का बड़े ही गर्व के साथ प्रयोग किया है।हिंदोस्तां का विच्छेद करने पर हमें दो शब्द मिलते हैं। हिंदू+आस्तां।आस्तां का अर्थ घर होता है । अत: हिंदोस्तां का अर्थ हिंदुओं का घर। यानीइक़बाल को हिंदोस्तां को हिंदुओं का घर लिखने में कोई आपत्ति नहीं हुई।परंतु संघ विचारधारा के लोगों द्वारा जब-जब हिंदोस्तां शब्द का प्रयोग कियाजाता रहा है तब-तब उनके द्वारा इसका उच्चारण हिंदोस्तां के बजाएहिंदुस्थान के रूप में किया गया है। इसके बावजूद आज तक देश के किसी ग़ैरहिंदू धर्म के मानने वाले भारतीय नागरिक को स्वयं को हिंदोस्तानी कहने मेंआपत्ति व्यक्त करते हुए नहीं देखा गया। फिर आख़िर भागवत द्वारा प्रत्येकभारतवासी को हिंदू कहने की सलाह देने या हिंदू धर्म में अन्य धर्मों केसमावेश की बात करने का मक़सद क्या है? कल तक संघ विचारधारा के लोग देश कोहिंदू राष्ट्र बनाए जाने की बातें किया करते थे। आज इसी संघ के कई नेता यहकहते सुने जा रहे हैं कि भारत हिदू राष्ट्र बन चुका है। ग़ौरतलब है कि अभीकुछ वर्ष पूर्व तक पड़ोसी देश नेपाल के हिंदू राष्ट्र होते हुए भी वहांअन्य सभी धर्मों व विश्वासों के लोगों को पूरा मान-सम्मान व मान्यता मिली हुई थी। और वह स्थिति नेपाल में अब भी बरक़रार है। नेपाल में बड़ी से बड़ीमस्जिदें,गुरुद्वारे तथा गिरजाघर आदि सब कुछ हैं। इतना ही नहीं बल्कि नेपालमें उसी हिदू राष्ट्र में मुस्लिम व्यक्ति सांसद भी चुना जाता रहा है।परंतु संघ द्वारा अथवा ‘कथन भागवत ’ में जिस हिंदू या हिंदुत्च शब्द काउल्लेख किया जाता है आख़िर वह कौन सा हिंदुत्व है? भारतवर्ष में सनातन धर्म के मानने वाले स्वयं को हिंदू लिखने ज़रूर लगे।परंतु हिंदू धर्म के धर्मग्रंथों,वेदों,पुराणों तथा शास्त्रों में कहीं भीहिंदू धर्म का कोई उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी हिंदू शब्द एक धर्म विशेष केरूप में मान्यता हासिल कर चुका है तथा प्रत्येक सनातनी स्वयं को हिंदू कहकरअपना परिचय कराता है। ऐसे में दूसरे विश्वासों व धर्मों के लोगों को बिनाकिसी सत्य व तथ्य के हिंदू धर्म के साथ शामिल करने की बात करना अनैतिक होनेके साथ-साथ दूसरे धर्मों व विश्वासों की स्वतंत्रता में भी दख़ल अंदाज़ीहै। सत्ता की राजनीति पर अपना निशाना साधते हुए हिंदू धर्म के मतों काध्रुवीकरण किए जाने के उद्देश्य से संघ नेताओं द्वारा बार-बार जारी किए जारहे ऐसे तथा इस प्रकार के दूसरे बयानों के जारी करने से बेहतर है कि यहनेता अपना धार्मिक व सांप्रदायिक एजेंडा व इससे संबंधित सभी पूर्वाग्रहत्यागकर देश को एक सूत्र में बांधने की बातें करें। संघ परिवार द्वारा कई दशकों से हिंदू समाज के लोगों को यह नारा लगाने के लिए प्रेरित किया जातारहा है कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’। संघ विचारधारा रखने वाले मोहनहिंदुत्ववादी लोगों के घरों, दुकानों व उनके संस्थानों पर तो इस नारे केस्टीकर या पोस्टर लगे दिखाई दे जाते हैं। परंतु कोई भी ग़ैर हिंदूराष्ट्रवादी ऐसे नारों को अपने किसी भी ठिकाने पर लगाने से परहेज़ करता है।आख़िर ऐसा क्यों? परंतु यदि इसी नारे की जगह यह लिखा हो कि ‘गर्व से कहो हमहिंदोस्तानी हैं या गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं तो निश्चित रूप से किसीभी भारतवासी को यह नारा अपने घर की दरो-दीवार पर तो क्या शायद अपने माथे परभी लगाने से कोई एतराज़ नहीं होगा। बल्कि ऐसे नारों को अपनेदरो-दीवारकी रौनक़ बनाकर प्रत्येक भारतवासी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगा।उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र संघ परिवार व उसके नेता यदि वास्तव में स्वयंको राष्ट्रवादी कहते व समझते हैं तो ध्रुवीकरण कराने वाले वक्तव्य देने केबजाए समाज के सभी वर्गों,देश के सभी धर्मों व समुदायों को परस्पर मज़बूतीसे जोडऩे वाले बयान दिया करें। सच्ची राष्ट्रीयता इसी में है कि देश कोराष्ट्रीयता के एक मज़बूत सूत्र में बांधकर रखा जाए। न कि अपने घिसेपिटेदक़ियानूसी एजेंडे पर चलते हुए देश को बांटने व कमज़ोर करने का प्रयास कियाजाए।

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  1. तनवीर जाफरी साहब को इस सारगर्भित और संतुलित आलेख के लिए मुबारकबाद.हिन्दू शब्द के विभिन्न रूपों को इन्होने सामने रखने का प्रयत्न किया हैऔर उसमे सफल भी हुए हैं,पर इससे विवाद समाप्त नहीं होता.एक अलग टिप्पणी में मैंने यह प्रश्न किया था कि केवल सनातनियों को (इसमें मैं भी शामिल हूँ) अपने को हिन्दू कहने का अधिकार किसने दिया?भौगोलिक परिभाषा के अनुसार भी आज का भारत हिंदुस्तान शब्द से भी आगे निकल जाता है यानि उस परिभाषा में परिभाषित हिन्दू या हिंदुस्तान से आज के भारत का विस्तार कहीं अधिक है,पर फिर भी कुछ हद तक यह स्वीकार्य हो सकता है,पर सनातनियों के पंथ को इतना बड़ा देना कि वह राष्ट्र का पर्याय वाची बन जाए सर्वथा अनुचित है.मैं नहीं जानता कि अगर आर्यसमाजियों को,साईं भक्तों को या अन्य पंथियों को इनसे अलग कर दिया जाए,तो इनकी संख्या कितनी बचेगी?पर यह बिलगाव या अलगाव का भाव हीं क्यों?क्यों हम न अपने को भारतीय या हिंदुस्तानी समझे और बाल का खाल निकलते निकलते अपने मकसद से ही न बहक जाएँ.?अगर सचमुच में वही राष्ट्र बनाया जाए,जिसका सपना ये लोग देख रहें है,तो वह एक खंडित राष्ट्र होगा,जहां एक तरफ सनातनी अपने को दूसरे धर्माओंलम्बियो से ऊपर समझेंगे दूसरे तरफ दलितों पर भी अत्याचार बढ़ जाएगा.

  2. यदि मोहन भागवत की बात मान ली गई तो,हिन्दू तालिबान का उदय होगा।

  3. एक बात और. चीन वाले भारत के लोगों को इडू कहते हैं तो ये इण्डिया से नहीं बल्कि हिन्दू से ही बना है. क्योंकि चीन के लोगों के लिए भारत कभी इण्डिया नहीं रहा बल्कि इन्दुस्तान या हिंदुस्तान रहा.

  4. संघ प्रमुख मोहन भगवत जी ने न तो कोई नयी बात कही है और न ही अजीबोगरीब बात कही है.उन्होंने भारत में रहने वालों को हिन्दू कहा है और इस देश को हिन्दू राष्ट्र कहा है तो ये कोई नयी बात नहीं कही है.यही बात संघ पिछले ८९ वर्षों से कहता चला आ रहा है.और संघ से पहले भी अनेकों लोगों ने ये बात कही है.भारत हिन्दू सहिष्णुता को मानता है इसी कारण यहाँ जितनी स्वतंत्रता है उतनी दुनिया के किसी देश में नहीं है.पश्चिमी एशिया में आज जिस प्रकार छोटे छोटे यज़ीदी बालकों को मरकर उनका भेजा निकाल कर इस्लामी स्टेट के लॉकर रहे हैंलोग खा रहे हैं, उनकी लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाकर रखा जा रहा है, या जिस प्रकार बोको हराम कर रहा है उस पर हमारे विद्वान लेखक चुप क्यों हैं?इजराइल की सेना ने हमास द्वारा सुरंगें बना कर आतंकी भेजने और कुछ इज्राईलियों की हत्या के बाद जो संघर्ष शुरू किया है उसका कोई समर्थन नहीं करेगा लेकिन उसमे केवल १९०० लोग मारे गए हैं जबकि रॉयल जॉर्डन आर्मी ने एक झटके में बीस हजार से अधिक फ़लस्तीनी मार डाले गए लेकिन किसी ने चर्चा तक नहीं की.पिछले दो साल में सीरिया में दो लाख लोग मारे गए है और वो भी मुस्लिमों के द्वारा ही, उसके विरोध में किसी प्रबुद्ध मुस्लिम ने कुछ नहीं लिखा.न ही कहीं काले झंडे और काले बैनर लगाये गए आखिर क्यों?
    जहाँ तक भारत के हिन्दू राष्ट्र होने का प्रश्न है तो मई १९८२ में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा मेरठ के शाहघासा में हुए दंगों के समय पूर्व केंद्रीय मंत्री जनरल शाहनवाज खान को अपने पत्र में लिखा थी कि जब वो छोटी थी तो इलाहाबाद में उनके घर आनंद भवन में एक डॉ.महमूद आया करते थे जो बताते थे कि अरब में जाने पर वह के लोग भारत के मुसलमानों को भी हिन्दू ही कहते हैं.यही बात अन्य अनेक लोगों ने भी कही है कि जब वो हज करने जाते हैं तो उन्हें हिन्दू ही कहा जाता है.यहाँ तक कि भारत के मुसलमानों के द्वारा भी अनेकों ऐसे रीति रिवाज माने जाते हैं जो दुनिया के किसी और देश के मसलमान नहीं मानते हैं, और ऐसा इस कारण से है कि अतीत में जब यहाँ के हिन्दू लोगों ने इस्लाम अपनाया तो अपने साथ बहुत सी हिन्दुओं कि परम्पराओं को ही साथ लेकर आये.
    स्वयं इस्लाम कि अनेक मान्यताएं इस्लाम पूर्वके अरब में प्रचलित वैदिक धर्म से ली गयी हैं.इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं.
    संघ के द्वित्तीय सरसंघचालक गोलवलकर जी, जिनका उल्लेख लेखक ने अपने लेख के प्रारम्भ में किया है, ने डॉ सैफुद्दीन जिलानी से अपनी भेंट वार्ता में स्पष्ट कहा था कि हम भारत के मुसलमानों को उनके हिन्दू अतीत के प्रति गौरव का भाव रखने कि अपेक्षा करते हैं.और मुसलमानों को अपना ही मानते हैं.लेकिन कुछ लोग अलगाव को बनाये रखने में ही अपनी सियासी रोटियां सेंकते हैं.हिन्दू मुस्लिमों की समस्याओं को दरी के नीचे खिसकाने की बजाय स्पष्ट रूप से सामने रखकर खुले दिल से एक दुसरे के पक्ष को समझकर समाधान का रास्ता खोजें.

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