उमा भारती की घर वापसी के मायने

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लगभग छह साल बाद उमा भारती वापस भाजपा में लौट आई हैं। उस समय भी भाजपा से उनका निष्‍कासन किसी वैचारिक मुद्दे पर नहीं हुआ था, बल्कि एक स्वभावगत अप्रिय प्रंसग के चलते हुआ था। लेकिन इन छह वर्षों में भाजपा के किसी कार्यकर्ता को शायद ही कभी ऐसा लगा हो कि उमा भारती भाजपा से बाहर हैं क्योंकि साध्वी की भाजपा के वैचारिक आन्दोलन से प्रतिबध्दाता बदस्तूर जारी रही।

बल्कि कई बार तो आश्‍चर्य होता था कि वे भाजपा से बाहर क्यों हैं। जनसंघ/भाजपा में कई बार ऐसे प्रसंग आएं हैं जब किसी व्यक्ति ने वैचारिक भिन्नता के कारण भाजपा को अलविदा कहा। इस प्रकार के प्रसंगों में सामान्य कार्यकर्ता कोई कष्‍ट भी नहीं होता क्यो कि कोई भी राजनीतिक दल ,यदि उसके लिए अंतिम लक्ष्य केवल सत्ता प्राप्ति नहीं है,वैचारिक मुद्दों पर विभिन्न प्रकार के मत नहीं रख सकता।

इसलिए जब कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल को वैचारिक मत भिन्नता के कारण छोड़ कर जाता है तो वैचारिक आन्दोलनों में विश्‍वास रखने वाले लोगों को इस बात से प्रसन्नता होती है कि वे शख्स वैचारिक मामलों में ईमानदारी दिखा रहा है। शायद यही कारण था कि उमा भारती के निष्‍कासन पर सामान्य कार्यकर्ता कष्‍ट का अनुभव कर रहा था क्योकि व्यापक धरातल पर वह उसे अपना साथी मानता था ना कि अपने से अलग।

भाजपा से बाहर उमा भारती की और भाजपा के अन्दर सामान्य कार्यकर्ता की यह एक समान पीडा थी जिसका छह साल के बाद दोनों पक्षों के लिए अन्त हुआ है। इस पीडा को समझने के लिए जनसंघ/भाजपा कि आन्तरिक प्रवृत्ति को समझना जरूरी है। भाजपा कांग्रेस की तरह का राजनीतिक दल नहीं है, जहां अलग अलग विचारधाराओं के लोग सत्ता की सांझी छतरी के नीचे एकत्रित हुए है।

ऐसे लोगों के लिए सत्ता प्राप्ति प्राथमिक है और वैचारिक प्रतिबध्दाता का दर्जा दोयम है। इसलिए कई बार ऐसा भी आभास होता है कि कुछ लोग भाजपा के अन्दर रहते हुए भी भाजपा से बाहर है और कुछ भाजपा से बाहर रहते हुए भी भाजपा के अन्दर हैं। उमा भारती की गिनती दूसरे प्रकार के लोगों में होती रही है।

डमा भारती जमीन से जुडी हुई कार्यकर्ता हैं और धूलधक्कड की राजनीति उसका स्वभाव है। उसका यह स्वभाव ही उसे देश की उस आम जनता से जोडता है जिनकी नब्ज भाजपा के वैचारिक मुद्दों पर धड़कती है। क्योंकि उमा भारती उसी आम जनता का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए उसे कभी इन मुद्दों को लेकर अपराध बोध से ग्रस्त नहीं होना पडा और ना ही उसे कभी इन मुद्दों को लेकर क्षमाप्राथी की भूमिका में उतरना पडा।

वैचारिक आन्दोलन मध्यम वर्ग की जनता में से ही पैदा होते है। आभिजात्य अथवा कुलीन वर्ग इन आन्दोलनों के बाद उनकी तार्किक बौध्दिक व्याख्या मात्र ही करता है। उमा भारती इन्हीं जन-आन्दोलनों की उपज है। बहुत से लोग उमा भारती की लोध जाति को लेकर प्रसन्नता जाहिर कर रहे हैं और अपने अपने कंप्यूटर नेटवर्क में इस प्रकार के मीजान कर रहे हैं कि इससे उत्तर प्रदेश में भाजपा को कितना फायदा होगा।

उमा भारती लोध जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करती बल्कि वे उन मुद्दों का प्रतिनिधित्व करती है जो तथाकथित निम्न और पिछडी जातियों से लेकर तथाकथित सवर्ण जातियों के बीच की खाईंयों को पाटकर पूरे भारतीय समाज के लिए एक सममतल आधार प्रस्तुत करते हैं। भारतीय इतिहास में रामजन्म भूमि का मुददा ऐसा ही मुद्दा था और इसमें अभी भी उमा भारती प्रामाणिकता नि:संन्देह बनी हुई है।

इसलिए शायद उमा भारती को जाति की वैशाखियों की उतनी जरूरत नहीं है जितनी लालू यादव या मुलायम यादव को। इसका एक कारण यह भी है कि उमा भारती भारतीय समाज के सकारात्मक तत्वों की प्रतीक हैं जबकि लालू, मुलायम या इसी प्रकार की कोटि के अन्य सूरमा खोद खोद कर भारतीय समाज के नकारात्मक तत्वों को निकाल कर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए वैशाखी तरह इस्तेमाल करते हैं।

उमा भारती को जाति से जोड कर देखना भारतीय समाज की सकारात्मक उर्जा को कम करके आंकना होगा। जाहिर है उमा भारती के वापस आने से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सकारात्मक मुद्दों को लेकर जमीनी लडाई तेज होगी जिससे यकीनन ही गंगा यमुना के मैदानों में एक बार फिर राष्‍ट्रीय चेतना से जुडे मुद्दे राजनीति का केन्‍द्र बनेंगे।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

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  1. “उमा भारती भारतीय समाज के सकारात्मक तत्वों की प्रतीक हैं” –संपूर्ण सहमति। समस्त भारत के लिए यह शुभ समाचार है।

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