संघ प्रेरणा : शक्तिशाली भारत निर्माण का संकल्प

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संगठन गढे चलो, सुपंथ पर पर बढे चलो।

भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो….

यह कोई कविता नहीं बल्कि उस देशभक्ति से पूर्ण गीत की प्रारंभिक पंक्तियाँ हैं। जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के बीच अनेक बार दोहराई जाती हैं। संघ अपने स्वयंसेवकों को इस जैसे अनेक गीतों के द्वारा यही प्रेरणा देता है कि एक राष्ट्र के नागरिक के लिए उसके देश से बढकर कुछ भी नहीं है। विविध धर्म, भाषा वेश-भूषा, कला-संस्कृति और कर्मकांडों को आत्मसात किए भारतीय समाज, जाति, भाषा या वर्गभेद के आधार पर बिखरे नहींऔर शक्तिशाली भारत के निर्माण से विश्व में भारत की धाक जमें तथा देश का हर वर्ग, समुदाय खुशहाल रहे। इसके लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सन् 1925 से समाज जीवन से जुडे विभिन्न क्षेत्रों में अपने स्वयं सेवकों की कर्मठता और ओजस्विता के माध्यम से निरंतर सक्रिय है।

आज वैचारिक धरातल पर अनेक मत और विचारधारा के प्रभाव के परिणाम से उपजी घृणा के परिह्श्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे सामाजिक सेवा संगठन देश में ऐसा ताना बाना बुन रहे हैं। जो भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप उभारने के साथ बसुधैव कुटुम्बकम् के यथार्थ का प्रतिबिंब दिखाई देते हैं। भले ही आज इन सामाजिक संगठनों को कोई उसके उत्कृष्ट कार्य के लिए नोबेल या मेग्सेसे पुरस्कार नहीं देता और न ही मीडिया बडे पैमाने पर संघ से प्रेरित सेवा कार्यों की क्लीपिंग दिखाता हो परन्तु कश्मीर से कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर भारत से लेकर सुदूर पश्चिमी भारत के किसी भी कोने में चले जाइये आपको हर जगह संघ और उसके समविचारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्य दिखायी दे जायेंगे। विद्याभारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद्, वनवासी कल्याण आश्रम, विज्ञान भारती, संस्कार भारती, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच, राष्ट्रीय सिख संगत भारत विकास परिषद, संस्कृत भारती, प्रज्ञा प्रवाह, लघु उद्योग भारती, सहकार भारतीय, इतिहास संकलन समिति, शिक्षा बचाओं आन्दोलन आरोग्य भारती, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, सेवा भारती, ग्राहक पंचायत, क्रीडा भारती, अधिवक्ता परिषद्, पूर्व सैनिक परिषद्, ह्ष्टिहीन कल्याण संघ, हिन्दुस्तान समाचार और भारतीय जनता पार्टी आदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे ऐसे देशव्यापी संगठन हैं जो संघ से प्रेरणा और उर्जा प्राप्त कर राष्ट्र जीवन की अविरल धारा में अपना योगदान दे रहे हैं। इसके अलावा संस्थाओं व समाज जीवन में वैयक्तित्व कार्य खडा करने वाले सेकडों ऐसे लोगों का तानाबाना है जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रेरणा पाकर सेवा कार्य प्रारंभ किए हैं।

हरिद्वार चंडीघाट पर कुष्ठ रोगियों और उनके बच्चों के लिए आश्रम खोलने वाले आशीष विद्यार्थी को भला कौन नहीं जानता। जिन्होंने संघ की प्रचारक वृत्ति से वापिस आने के बाद कुष्ठ रोगियों की सेवा को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। हरिद्वार के पास चीला क्षेत्र में गंगा किनारे बना इनका वन्देमातरम् प्रकल्प ऐसे कुष्ट रोगियों की संतानों और निराश्रित बच्चों को समर्पित है जो उज्जवल भारत गढना चाहते हैं। यह वंदेमातरम् प्रकल्प उन्हें वह सब कुछ देता है जो आने वाले समय में इन बालकों को देश का भावी कर्णधार बनाएगा। देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ केंद्र और राज्य सरकारें स्वतंत्रता के 63 वर्ष बीत जाने के बाद भी शिक्षा का दीप नहीं जला पाईं हैं वहाँ संघ की प्रेरणा से चल रहे एकल विद्यालय शिक्षा की गंगोत्री वहा रहे हैं। गरीब तथा अति पिछडे क्षेत्रों में बने यह विद्यालय बिना किसी सरकारी सहायता के साक्षरता फैला रहे हैं। इस एकल विद्यालय आन्दोलन के द्वारा देशभर में अभूतपूर्व ढंग से 28041 केन्द्रों में 7 लाख 53 हजार 123 छात्र-छात्राएँ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद् के माध्यम से अलग 25 हजार से ज्यादा एकल विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। जिन्हें अरविन्द चौथाई वाले तथा अरविन्द भाई ब्रह्मभट्ट का प्रखर नेतृत्व मिला हुआ है। विश्व हिन्दू परिषद केवल सेवा कार्यों में एकल विद्यालय ही नहीं चला रही बल्कि उसके माध्यम से बनाए गए देश के प्रमुख 100 ट्रस्ट व 3 हजार 266 शिक्षा केन्द्र 1 हजार 303 चिकित्सालय, 2727 नैमैतिक केन्द्र (आपातकालीन सहायता), 959 स्वाबलम्बन केन्द्रों के साथ 271 विविध सामाजिक क्षेत्रों से जुडे प्रकल्पों का संचालन भी कर रही है। विहिप का आयाम बजरंग दल 650 गौशालाओं का संचालन कर रहा है। उनमें 150 गौशालाएँ तो ऐसी हैं जो पंचगव्य आदि गाय के गौ-मूत्र से औषधियों को निर्माण करती हैं। इस कार्य को पूर्ण करने में लगे हैं 5 हजार 652 पूर्णकालीक कार्यकर्ताओं के साथ 76 हजार 576 नगर ग्राम समितियाँ, 59 हजार 998 बजरंग दल संयोजक, 3 हजार 200 दुर्गा बाहिनी संयोजिकाएं तथा 6 हजार 764 मातृ शक्ति संयोजिकाएँ।

संघ से प्रेरणा लेकर कार्य करने वाला सेवा भारती संगठन अकेले कन्याकुमारी जिले में ही 3 हजार से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूहों चला रहा है। देशभर में आरोग्य भारती के सक्रिय आरोग्य रक्षक जिनकी संख्या 5 हजार से भी ज्यादा हैं अपने निजी चिकित्सा व्यवसाय के साथ-साथ सेवा के लिए पृथक से बिना वेतन के आपातकालीन चिकित्सा सहायता उपलब्ध करा रहे हैं । हजारों की संख्या बाली ब्लड डोनेट करने वालों की एक लम्बी श्रृंखला है, जो सेवाभारती तथा आरोग्य भारतीय कार्यालय में किसी जरूरत मंद के फोन आते ही सक्रिय हो उठती है । सेवाभारती देश में ऐसे पौने दो लाख से ज्यादा प्रकल्प चला रही है। जहाँ अनेक प्रकार के सेवा कार्य किए जाते हैं।

पुणे में संघ की प्रेरणा से मोहन घैसास सुयश नामक संस्था चला रहे हैं। जो 168 किसान समूह की संचालन कर्ता भी है। अभी तक महाराष्ट्र के सेकडों किसान इस संस्था के सहयोग से बेहतर आय के प्रबंध करने में सफल हुए हैं। घैसास उत्साहित होकर कहते हैं, कि जो प्रयोग ‘सुयश’ महाराष्ट्र में कर रही है। यदि इसे समर्पित कार्यकर्ताओं की टोली देश के अन्य राज्यों में भी करे तो भारत के किसी भी किसान को गरीबी से तंग आकर या ऋण के भार के दबाव में आत्महत्या नहीं करनी पडेगीऔर कृषि प्रधान भारत के आत्मनिर्भर बनने में देर नहीं होगी। पूरे समय सेवा कार्य को देने वाले महाराष्ट्र की ”वर्धनी” संस्थान के प्रमुख रवीन्द्र बंजार वाडकर भी ऐसे शक्स हैं जिन्हें लगा की वे जिलाधीश रहते स्वतंत्र रूप से सेवा कार्य नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने फुल टाइम सेवा को ही अपना कार्य क्षेत्र बनाने के लिये आईएएस की नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया। चमूकृष्ण शास्त्री, दिनेश कामद, जर्नादन, पद्म कुमार, देव पुजारी की टौली भारतीय संस्कृति और संस्कारों के रक्षण-अभिवर्धन के लिये संस्कृत भारती के माध्यम से देशभर में अपने 250 पूर्ण कालिक कार्यकर्ताओं के साथ कार्य कर रही है। यह कार्यकर्ता किसी पद, प्रतिष्ठा या लाभ के लिये अपना पूरा समय नहीं दे रहे, बल्कि भारतीय अस्मिता का परचम पूरे विश्व में फहरे इसके लिये दिन-रात संस्कृत भाषा के प्रचार के द्वारा भारत की श्रेष्ठ परम्परा और इतिहास का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। आज 20 देशों में इस संस्था का कार्य फैला हुआ है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये कई कार्य संस्कृत भारती के द्वारा किये जा रहे हैं।

एकनाथ रानाडे द्वारा स्थापित विवेकानन्द केन्द्र न केवल पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के लिये आज प्रेरणा स्रोत बना हुआ है बल्कि पूरे देश में निवेदिता भिडे, मुकुल कानेटकर जैसे सेवा वृत्ति कार्यकर्ताओं के अथक प्रयत्न देश को स्वामी विवेकानन्द के सपनों का भारत बनाने के लिये समर्पित हैं। स्वामी विवेकानन्द के विचारों से सोया हुआ भारत अब जाग उठा है और वैश्विक क्षितिज पर न केवल उसका आध्यात्मिक पक्ष ही मजबूती से सुस्थापित है बल्कि भौतिक तथा सामाजिक स्तर पर भी वह विश्व के लिये शीघ्र एक अनुपम प्रेरणा स्रोत बनेगा ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संविचारी संघटन केवल यहीं नहीं रूक गये, मीडिया को भले ही भारतीय संविधान ने चतुर्थ स्तंभ न माना हो किंतु उसकी सक्रियता और कार्य प्रणाली ने हमेशा यही दर्शाया है कि वह भारत की मजूबती के लिये किसी स्तंभ से कम नहीं। पत्रकारों के बीच से कभी राष्ट्रीय मुद्दे तथा सामाजिक चेतना से जुडे बिन्दु औझल न हो इसके लिये हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी, दैनिक समाचार पत्र स्वदेश, साप्ताहिक पांचजन्य, संपादक संगम और राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास जैसी संस्थाएँ एवं अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाएँ आज देशभर में सक्रिय हैं।

नानाजी देशमुख द्वारा चित्रकूट में जो ग्रामीण विकास को लेकर अभिनव प्रयोग किये गये हैं वो आज दुनिया के सामने एक मिसाल हैं। छोटे-छोटे प्रयासों से शुभ संस्कारों के बीज कैसे बोये जा सकते हैं तथा सामाजिक सहभागिता का आन्दोलन सहजता से किस प्रकार खडा किया जा सकता है इसका अनुपम उदाहरण नानाजी द्वारा शुरू किया गया यह प्रकल्प है।

1966 में जब डॉ. अशोक कुकडे एम.एस. की डिग्री लेकर महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र में पहुँचते तो उन्होंने देखा कि चिकित्सा सुविधा के अभाव में जिन्दगियाँ बेबस है। फिर क्या था जुट गए सेवा कार्य में। उन्होंने अपने मित्रों के सहयोग से विवेकानंद चिकित्सालय की शुरूआत की जो आज क्षेत्र का 120 बिस्तर वाला सर्वश्रेष्ठ अस्पाल है। साथ ही भारत सरकार इसे पीजी शिक्षण केंद्र के पास में भी मान्यता देखी है। डॉ. अशोक राव कुकडे पाँच प्रांतों के संघचालक और रा.स्व.संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आज शिक्षा के जुडे अनेक सेवा कार्य कर रहा है वहीं स्कूली और महाविद्यालयीन केम्पस शिक्षा के आदर्श केंद्र बने इसके लिए निरंतर प्रयत्नशील है। विद्यार्थी परिषद के पूर्व कार्यकर्ता तो आपको समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज आपको नजर आ जायेंगे।

इसी प्रकार संघ के अनेक संघटन आज भारत को शक्तिशाली और सुह्ढ राष्ट्र बनाने के लिये न केवल वचनबध्दा और कटिबद्ध नजर आते हैं वरन् उन सबकी कार्यशैली बार-बार यही दर्शाती है कि भारत को परम वैभव पर पहुँचाना ही इन सबका एकमेव ध्येय है। सभी का एक सामूहिक गीत है –

देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें,

सूरज हमें रोशनी देता, हवा नया जीवन देती है,

भूख मिटाने को हम सबकी, धरती पर होती खेती है,

औरों का भी हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें,

देश हमें देता …….

-मयंक चतुर्वेदी

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

5 COMMENTS

  1. Shri Mayank Chaturvedi has presented a true and correct picture of Sangh work. My heartful thanks to the writer. Because Sangh work is basically character building, it is relevent not only in India but has become relevent in the global context. Today a large number of people outside Bharat are taking inspiration from Sangh and contributing positively to their adopted land.

  2. संघकी सही सही छवि रखनेके लिए शतशः धन्यवाद। जितनी शीघ्रतासे हम यह सत्य समझेंगे, भारतका सर्वस्पर्शी उत्थान उतनीही शीघ्रतासे होगा। किंतु इसमें सक्रिय होकरहि यह उत्थान हो पाएगा, प्रेक्षक बनकर केवल तालियां बजाकर नहीं। संघको निकट जाकरहि समझा जाता है। एक प्रखर गांधीवादी, और कुछ मात्रामें संघविरोधी गुजराती परिवारमें जन्मे हुए मुझे सारे पूर्वाग्रहोसे मुक्त होते होते कई वर्ष लगे थे।आपको फिरसे हृदयतलसे धन्यवाद।

  3. अच्छा और साहसी लेखन. आपने कई पहलुओ पर उम्दा रौशनी डाली है. अब वक्त आ गया है की, संघ के राष्ट्र-समर्पित जनोन्मुख प्रकल्पो को देश जाने.

  4. मयंकजी लेखके लिए धन्यवाद । संघकी प्रेरणा निम्न पंक्तियोंमें व्यक्त है। यह कार्यकर्ताका आदर्श है।
    “त्रिवेणी तनय”
    ॥अस्वीकार॥
    मिट्टी में गड जाता दाना,
    पौधा ऊपर तब उठता है।
    पत्थर से पत्थर जुडता जब,
    नदिया का पानी मुडता है॥१॥
    ॥१॥
    दाना ’अहं’ (अहंकारका)का गाड दो,
    राष्ट्र बट ऊपर उठेगा।
    कंधे से कंधा जोडो,
    इतिहासका स्रोत मुडेगा॥२॥
    ॥२॥
    अहं का बलिदान बडा ,
    देह के बलिदान से-
    रहस्य को जान लो,
    सौरभ मय जीवन बनेगा।
    ॥३॥
    इस अनंत आकाश में,
    पृथ्वी का बिंदु कहां?
    अरू पृथ्वी के बिंदुऊपर,
    “अहं” का जन्तु कहां?
    फिर, बहुत नाम पाए, तो क्या पाए?
    और ना पाए तो क्या खोए?॥४॥
    -॥४॥
    अनगिनत अज्ञात वीरो ने,
    जो, चढाई आहुतियां–
    आज उनकी समाधि पर–
    दीप भी लगता नहीं।
    अरे! समाधि भी तो है नहीं।
    -॥५॥
    उन्हीं अज्ञात वीरो ने,
    आकर मुझसे यूं कहा-
    कि छिछोरी अखबारी,
    प्रसिद्धि के चाहने वाले,
    न सस्ते नामपर -नीलाम कर,
    तू अपने जीवन को।
    ॥६॥
    पद्मश्री, पद्म विभूषण,
    रत्न भारत, उन्हे मुबारक,
    बस, माँ भारती के चरणो पडे,
    हम सुमन बनना चाहते थे।
    ॥।७॥
    जब भी हम हारे,
    अहं रोडा बना है,
    या कहींपर कंधेसे-
    कंधा ना जुडा है।
    जयचंदहि पराजयचंद
    कहलाया गया है।
    किसीके “अहं”(स्वार्थ) हित,
    देशको बेचा गया है।
    ॥८॥
    दाना अहंका गाड दो,
    तो, राष्ट्र सनातन ऊपर उठेगा।
    और, कंधेसे कंधा जोडो,
    तो, इतिहास पन्ना पलटेगा।
    इतिहास पन्ना पलटेगा।
    इतिहास पन्ना पलटेगा।
    ॥९॥

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