पराली के उपलों का दाह-संस्कार में प्रयोग

वायु प्रदूषण आज भारत की ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की एक बहुत बड़ी व ज्वलंत समस्या है। बढ़ती जनसंख्या, औधौगिक धंधों के फलने-फूलने, बढ़ते हरित ग्रह प्रभाव, बदलती जलवायु परिस्थितियों, शहरीकरण के कारण निरंतर हो रहे कंक्रीट के जंगलों का विकास, बढ़ते ट्रैफिक, पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई, धरती के सीमित संसाधनों का असीमित तरीकों से दोहन(खनन, पहाड़ों की कटाई, टनल आदि का निर्माण) के बीच धरती का संपूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र गड़बड़ा गया है। इसी बीच पर्यावरण को बचाने के लिए नित नये अनुसंधान, प्रयोगों, नवाचारों, नई पहल आदि में भी लगातार इजाफा भी हो रहा है। पिछले दिनों पंजाब के पटियाला में प्रदूषण को लेकर एक नई पहल की गई है। जानकारी देना चाहूंगा कि पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई रोकने व इसे कम करने के उद्देश्य से क्षेत्र में पिछले दिनों एक नई पहल की है। बोर्ड ने मोहाली की एक निजी कंपनी द्वारा सरकार के सहयोग से पराली से बनाए जा रहे उपलों का शमशानघाट में होने वाले संस्कारों में लकड़ी के साथ इस्मेताल करने का ट्रायल किया है। आज संपूर्ण पंजाब, दिल्ली एनसीआर क्षेत्र,नोएडा, हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पराली जलाने की समस्या बहुत ही बड़ी व ज्वलंत समस्या है। ऐसे में पराली का प्रबंधन किया जाना आज समय की अहम् आवश्यकता व जरूरत हो गई है।आज बिगड़ रहे वातावरण/पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ों की कटाई को रोकना या कम करना बहुत ज्यादा आवश्यक है। विशेषकर पंजाब, हरियाणा क्षेत्र में आज पराली एक बहुत बड़ी समस्या है और पराली के जलाने से एक और जहाँ धरती की उर्वरा शक्ति का ह्वास होता चला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इससे बहुत से लाभदायक जीव-जंतु भी मारे जाते हैं और पर्यावरण प्रदूषण तो होता ही है। आज के समय में पराली का इस्तेमाल भट्टों, बॉयलर व थर्मल प्लांट्स में धड़ल्ले से किया जा रहा है, लेकिन अब मोहाली की एक कंपनी ने सूबा सरकार के सहयोग से पराली से उपले(थेपड़ी-जलाने के लिए) तैयार किए हैं। इन उपलों का इस्तेमाल श्मशानघाटों में संस्कारों में लकड़ी के साथ किया जा सकता है। इसका पहला ट्रायल पटियाला,पंजाब में किया गया है। अमूमन एक व्यक्ति के दाह संस्कार में करीब साढ़े 3 क्विंटल लकड़ी का इस्तेमाल होता है। अब पराली से बने उपलों के प्रयोग से जहाँ एक और पेड़ों की कटाई घटेगी, वहीं दूसरी और पर्यावरण संरक्षण में भी इससे बहुत मदद मिलेगी। बताया गया है कि शुरुआत में पराली के इन उपलों का इस्तेमाल साढ़े 3 क्विंटल लकड़ी में सिर्फ 10 फीसदी किया जाएगा। अगर ट्रायल सफल रहा तो इसकी मात्रा बढ़ाई जाएगी। बहरहाल, हाल ही में वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2022 जारी की गई है, इस रिपोर्ट के अनुसार भारत को दुनिया का आठवां सबसे प्रदूषित देश बताया गया है। यह बहुत ही गंभीर व संवेदनशील है कि टॉप 20 प्रदूषित शहरों में 19 एशिया के हैं और इनमें से 14 हमारे देश के हैं। देश के विभिन्न राज्यों जिनमें क्रमशः पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एनसीआर क्षेत्र, उत्तर प्रदेश के क्षेत्र शामिल हैं, के खेतों में लगातार जलने वाली पराली से उठता धुंआ भीषण गर्मी के दिनों में आदमी का सांस लेना भी दूभर कर देता है। कोरोना काल में तो यह एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।धान की कटाई के बाद पराली जलाने के कारण पंजाब, दिल्ली एनसीआर, नोएडा, हरियाणा के आसमान पर  धुएं की पतली परत बन जाती है और यह परत इतनी मोटी होती है कि इससे सूर्य की रोशनी भी पूरी तरह से धरती पर नहीं पहुंच पाती है। आसमान की तरफ देखें तो ऐसा लगता है जैसे बादल छाए हों, लेकिन यह बादल नहीं बल्कि धुएं के प्रदूषण की परत होती है। ट्रैफिक चालकों को भी इससे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में प्रदूषण रोकने में पराली के उपलों का प्रयोग एक नवाचार के रूप में बहुत ही सहायक, उपयोगी व कारगर सिद्ध हो सकता हैं।

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