वक्त का तकाज़ा है

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प्रदूषण को सब ,

अपनी अपनी तरह निपटायेगे,

लालू पुत्र अब,

धोड़ों पर ही आयें जायेंगे,

बड़ी सी कार मे बैठ कर,

वो धोड़ों के लाभ गिनायेंगे!

 

pollutionकेजरीवाल औड और इवन,

फ़ार्मूला लेकर आये हैं,

सरकार के पास तो,

सैंकड़ो गाडियां होंगी,

एक दिन औड मे,

एक दिन ईवन मे जायेंगे!

केन्द्र के नेता तो,

इस सब से मुक्त है,

उनके साथ तो दस बीस,

वाहन और जायेंगें!

 

ठँड मे ,

जो सड़कों पे सोते हैं,

वो आग भी जलायेंगे,

जब तक उनके पास,

छत नहीं होगी,

उन्हे लकड़ी जलाने से,

कैसे हम रोक पायेंगे!

 

कूड़ा उठाने की व्यवव्था,

ठीक करनी ही होगी,

नहीं तो माली ,

बग़ीचे का कूड़ा भी जलायेंगे,

प्रदूषण उद्योंगों को भी,

रोकना होगा,

नहीं तो हम बस,

औड ईवन गिनते रह जायेंगें।

 

प्रदूषण कम नहीं होगा,

अगर हम साँस भी लेंगे,

हम जितनी कार्बन-डाई-औक्साइड,

उगलते हैं,

उतने पेड़ कहाँ हैं,

जो उसे सोख पायेंगे!

वक्त का तक़ाजा है,

जनसंख्या पर नियंत्रण हो,

कुछ सख्त क़ानून हों,

फिर चाहें जो हो सो हो,

पर प्रजातंत्र मे,

क्या ऐसा कभी,

हम कर पायेंगे!

हवा पानी के लिये,

ऐसी छीना झपटी मचेगी,

फिर कुछ तो उसी मे,

मारे जायेंगे।

 

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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