* सनातन धर्म की दुंदभी बजाती वनवासी बहनें*

अजय खेमरिया

     ये है  मप्र के रायसेन जिले की शिवानी आदिवासी व्यासपीठ पर बैठकर सुंदरकांड का    वाचन कर रही है,इनके साथ है बुरहानपुर के वनवासी गांवो की रीना,उमा,रानी आदिवासी  ,कुछ सागर,गुना,धार, झाबुआ की बेटियां भी है,अपने अपने घरों से  कोसो दूर संस्कारो औऱ भारतीयता के प्रचार के लिये निकली है।मूल सनातन धर्म जिसे आदिगुरु शंकराचार्य ने व्याख्यायित किया था उसी मूलध्येय को लेकर इन आदिवासी बहनों का ये दिग्विजयी अभियान सामाजिक समरसता का भी बेहतरीन प्रकल्प है, मप्र के शिवपुरी शहर के तमाम मठ मन्दिरो पर इन बहनों ने पिछले दिनों  तुलसीकृत रामचरितमानस का सामूहिक पाठ प्रस्तुत किया,जो न केवल कर्णप्रिय था बल्कि एक अलग मानस बोध सा कराता जान पड़ा। मप्र के सुदूर आदिवासी अंचलों से आई इन बहनों को यहां शिवपुरी के सेवा भारती आश्रम में इन दिनों प्रशिक्षण दिया जा रहा है आरएसएस की एक विंग इन बहनों को भारतीयता, जीवनमूल्यों, सदाचार, से लेकर सनातन धर्म की बुनियादी अवधारणाओं से रूबरू कराने में जुटी है  करीब 15 दिन यह ट्रेनिंग जारी रहेगी,सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक इन्हें गुरुकुल की कसौटी वाली दिनचर्या से गुजरना होता है। सनातन धर्म से जुड़ी गई बुराइयों के प्रक्षालन हेतु ये बहने कमरकस रही है जाती,लिंग की वरजनाओ को तोड़ इन वनवासी बहनों ने बुनियादी समभाव औऱ विश्वबन्धुत्व को अपना ध्येय बनाया है इसकी शुरुआत ये अपने गांव कस्बे,मोहल्लों से कर रही है। आम धारणा है कि हनुमान जी की आराधना या सेवा में महिलाओं को निषिद्ध किया गया है इसके जबाब में बहन शिवानी कहती है कि व्यास पीठ पर जाकर वे तुलसीकृत मानस का पाठ करते है इसमे कहीं नही लिखा कि महिलाएं मानस का पाठ नही कर सकती है।व्यास पीठ पर सिर्फ एक जाति के अधिकार को भी शिवानी बड़ी सहजता से खारिज करती है -,जब व्यक्ति मौलिक रूप से बिना किसी संस्कार के अवतरित होता है तब जाति का प्रश्न कैसा?हमारे वेदों की रचना करने वाले किस जाति के है?इन तार्किक प्रतिप्रश्नो के साथ ये बहने अब आरएसएस के इस शिविर के उपरांत अपने आसपास के सद्भाव को बनाने में जुटने के लिये संकल्पित है। वस्तुतःयही आज के भारत की महती आवश्यकता है,जिसे वोट की राजनीति तिरोहित कर चुकी है जिस सनातन धर्म को दुंदभी कभी आदि गुरु शंकराचार्य औऱ फिर विवेकानंद ने बजाई थी उसे आज मैदानी स्तर पर पुरःस्थापित करने की जरूरत है क्योंकि आज का प्रदूषण आदि गुरु के दौर से ज्यादा खतरनाक है।आरएसएस को बिना समझे कोसने वालों के ये प्रयास शायद नजर न आएं, लेकिन बिना प्रचार के इस कार्य को अंजाम दे रहा संघ का एकल विद्यालय अभियान  स्तुत्य का अधिकारी है।

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