विश्व में शौर्य और रणकौशल की मिसाल है 1971 का युद्ध

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16 दिसम्बर बांग्लादेश क्रांति पर विशेष

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना की 1971 की कार्रवाई को ‘‘द लाईटनिंग कैंपेन’’ का नाम दिया गया था, भारत के लिए यह एक बेहद जटिल सैन्य अभियान था, जिसके लिए बहुत उच्च स्तर की सैनिक,कूटनीतिक ,राजनैतिक,सामाजिक और प्रशासनिक तैयारी की जरूरत थी। 16 दिसम्बर 1971 को बांग्लादेश के विश्व नक्शे पर उभरने के बाद, इस पूरे अभियान का कई देशों के सैन्य संस्थानों में अध्ययन किया जाता है। नेशनल डिफेंस कॉलेज ऑफ़ पाकिस्तान के जंगी दस्तावेज में भारत पाकिस्तान के बीच 1971 के इस समूचे युद्ध पर कुछ इस तरह लिखा गया है – ‘‘हिंदुस्तानियों ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ हमले का खाका तैयार करने और उसे अंजाम देने में बिलकुल ऐसे पक्के ढंग से बनाया गया था जैसे किताबों में होता है। यह जंग सोच समझकर की गई तैयारी, बारीकी से बैठाए गए आपसी तालमेल और दिलेरी से अंजाम देने की बेहतरीन मिसाल है।’’

भारतीय सीमा पर करोड़ों शरणार्थियों का जमावड़ा, पाकिस्तान की युद्ध करने की मंशा, अमेरिका की पाकिस्तानी परस्त नीति और चीन का गहरा दबाव जैसी परिस्थिति में  बांग्लादेश का जन्म और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर देने का दुस्साहस जिस प्रकार तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने किया वह अभूतपूर्व था। इस समूचे घटनाक्रम के दौरान इंदिरा गांधी ने अपनी कूटनीति और दूरदर्शिता से चीन के ब्लैकमेल को रूस की सुरक्षा संधि से खामोश कर दिया, हिंद महासागर में पाक की मदद करने आने वाले अमेरिकी बेड़े को रूसी नौसेना के सामने लाकर बेबस कर दिया, वे यहीं नहीं रूकी पहले पूरी दुनिया से गुहार लगाई कि भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए वह इस शरणार्थी समस्या से उबारे तो दूसरी तरफ अपनी सेना को यह आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद करवा लिया जाए जिससे संयुक्त राष्ट्र का कोई व्यवधान पैदा न हो। पूर्वी कमान के सेनापति ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने बांग्लादेश में भारतीय सेना का नेतृत्व किया था। उनके शब्दों में हमारी विजय के कारण इस प्रकार हैं – ‘‘दक्ष रणनीति, कुशल सेनापतित्व, जवानों का शौर्य और बांग्लादेश की जनता, इन सबको विजय का श्रेय मिलना चाहिए। लेकिन यदि सबसे अधिक श्रेय किसी को दिया जाए तो वह प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को दिया जाना चाहिए। निर्णय उन्हीं का था। हमें जो काम सौंपा गया उसे हमने पूरा करने का यत्न किया। मुझे खुशी है कि जवानों की मदद तथा वायुसेना और नौसेना के सहयोग से मैं अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा सका।’’

वास्तव में श्रीमती गांधी की  पूर्वी पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों और वहां के बदलते घटनाक्रम पर पैनी निगाहें थीं ,उन्होंने इसे पाकिस्तान को सबक सिखानें और उसके टुकड़े करने का एक बड़ा अवसर माना। दुनिया में हमलावर राष्ट्र की छवि से बचने के लिए वे पाकिस्तान पर पहला हमला नहीं करना चाहती थी, वहीं दूसरी ओर वे बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी को समर्थन देकर ख़ामोशी से भारत की सामरिक तैयारियों को पुख्ता करने में जुटी हुई थी । भारत की इस दोहरी नीति से घबराएं पाकिस्तान ने वही गलती की जिसकी प्रतीक्षा भारत को थी। 3 दिसम्बर 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कलकत्ता के एक विशाल मैदान में भाषण दे रही थी और उसी समय उन्हें खबर मिली की अचानक पाकिस्तानी विमानों ने उत्तर में श्रीनगर से लेकर दक्षिण में उत्तरलार्इ के सीमा के आधे दर्जन हवार्इ अडडों पर एक साथ हमला किया है । हवार्इ हमलों की चेतावनी समस्त उत्तर भारत के नगरों.कस्बों में गूँज उठी । 3 दिसम्बर की चांदनी रात पाकिस्तान के इतिहास की सबसे अंधरी रात बन गयी । दृढ़ निश्चयी इंदिरा गांधी की मजबूत कूटनीतिक,रणनीतिक और राजनीतिक जुगलबंदी ने पाकिस्तानी शासकों के सभी मंसूबों  पर पानी फेर दिया और एक हजार वर्ष तक भारत से लड़ते रहने का दम भरने वाले पाकिस्तानी 14 दिनों में ही युद्धक्षेत्र से भाग खड़े हुए । इस तथ्य को विश्व के बड़े सेनापतियों ने स्वीकार किया है और भारतीय सेना के रण कौशल की तुलना जर्मन सेना द्वारा पूरे फ्रांस को परास्त करने के अभियान से की है। ब्रिटिश सेनाधिकारी कैनेथ हंट ने कहा – ‘‘भारतीय सेना ने 14 दिनों में बांग्लादेश के 50 हजार वर्गमील क्षेत्र मे एक लाख से अधिक पाकिस्तानी सेना को परास्त करके विश्व के सैनिक इतिहास में शौर्य और रण कौशल की नई मिसाल कायम की है। इस समय भारतीय सेना की तुलना विश्व की सबसे ऊंची कोटि की सेनाओं में की जा सकती है।’’ अमेरिकी जनरल ने लिखा – ‘‘भारतीय सेना ने लगता है कि 1967 के अरब इसराइल युद्ध से बहुत सीखा है। इसराइली सेना की भांति भारतीय दस्ते पूर्व बंगाल में तेजी से बड़े और मजबूत छावनियों को घेरकर छोड़ते गए तथा कुछ दिन में ढाका तक पहुंच गए। दुनिया में कोई भी यह आशा नहीं करता था कि भारतीय सेना ऐसी सफाई से अमेरिकी हथियारों से लैस विशाल पाकिस्तानी सेना को इतनी जल्दी परास्त कर देगी।’’ विश्व की सभी राजधानियों में भारतीय सेना की तेजी पर आश्चर्य प्रकट किया गया। अमेरिका गुप्तचर संस्था के अध्यक्ष ने माना है कि वे भारतीय सेना की तेजी को समझने में असफल रहे।

बांग्लादेश के बन जाने से इस भारतीय उपमहाद्वीप में दो की जगह तीन देश हो गए और राजनीतिक नक्शा ही बदल गया। लगभग 55 हजार वर्गमील के पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बन जाने से भारत की 4712 किमी लंबी सीमा रेखा पर दुश्मन का आमना-सामना सदैव के लिए समाप्त हो गया, जिससे हमारे सैन्य खर्च का बड़ा हिस्सा अन्य विकास के कार्यो में लगाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। जमीन गंवाने के साथ ही महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी का डेल्टा, चावल और पटसन की खेती जैसी प्राकृतिक धरोहर हमेशा के लिए पाकिस्तान से अलग हो गई,जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था हमेशा के गर्त में चली गयी ,वास्तव में 16 दिसम्बर 1971 को अपमान भरी पराजय के साथ ही बांग्लादेश के रूप में जो घाव भारत ने दिया है ,यही दर्द पाकिस्तान को कभी चैन से नहीं बैठने देता ।

 

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