हमें ज्ञात नही उस पार का संसार

—विनय कुमार विनायक
प्रकृति का नियम पुराना
आनेवाले को आना होता
जानेवाले को जाना होता
फिर क्यों शोक मनाना!

आनेवाला बहुत ही रोता है
जानेवाला चुप होके जाता
रोनेवाले को जग हंसाता है
चुप हुए को क्यों रुलाना?

हमें ज्ञात नहीं हो पाता है
आनेवाला क्योंकर रोता है
जानेवाला क्यों चुप रहता
यह रहस्य है अनजाना!

शायद जिनको छोड़ आता
उन अपनों के पास जाता
फिर हमसे तोड़कर नाता
फिर उसको क्यों बुलाना!

आनेवाला अपरिचित रोता,
जानेवाला किन्तु परिचित
रोकने पर भी नहीं रुकता
हो जाता है हमसे बेगाना!

सबका समय बंधा होता है
हमें ज्ञात नहीं है वो बंधन
जिनसे उसे फिर बंधना है
और हमें छोड़ कर जाना!

जानेवाला आश्वस्त होता
जहां उसको जाना होता है
हमें नहीं पता, ये फितरत
कैसी है हमें तो बतलाना!

हमें ज्ञात नहीं उस पार का
संसार जहां हम सबको जाना
छोड़ करके पुराना आशियाना
जरा इसे मुझे समझाओ ना!

दोस्ती-दुश्मनी का क्या पैमाना
कौन नहीं होता है यहां अपना
जाने किस जन्म का है रिश्ता
कौन होता बेगाना बताओ ना!
—विनय कुमार विनायक

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