हमें नहीं चाहिए आत्मप्रवंचनात्मक देशघाती राष्ट्रवाद

राकेश कुमार आर्य

असम में 4000000 बांग्लादेशी घुसपैठियों की जांच पूरी करने के का कार्य जिस प्रकार केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्ण कराया है उसे उचित ही कहा जाएगा । साथ ही हम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह की घुसपैठियों और शरणार्थियों की दी गई परिभाषा से भी पूर्णतया सहमत हैं । । उन्होंने कहा है कि घुसपैठिया वह है जो हमारे देश में रोजी रोटी की खोज में घुसा और यहां आकर अवैध रूप से रहने लगा , जबकि शरणार्थी वह व्यक्ति है जो अपने धर्म और सम्मान को बचाने के लिए भारत आया है । स्पष्ट है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहा अत्याचार अमित शाह की शरणार्थी वाली परिभाषा से इंगित हो जाता है । जिसके चलते हिंदू लोग वहां से पलायन कर भारत की ओर आ रहे हैं । 1947 में पाकिस्तान में ढाई से तीन करोड़ हिंदू बचे थे जो आज घटकर 20 से 30 लाख रह गए हैं ।
भारत का नपुंसक नेतृत्व भारत में अल्पसंख्यकों को सुविधाएं सुविधाएं देने में तो लगा रहा पर इन निरीह प्राणी बने हिंदुओं की बात को विश्व मंच पर उठाने से बचता रहा । फलस्वरूप पाकिस्तान को लगभग हिंदू विहीन कर दिया गया है । पाकिस्तान जैसी स्थिति ही बांग्लादेश की है। वहां पर भी ऐसी अनेकों घटनाएं हुई हैं जब मुसलमानों ने हजारों की संख्या में एकत्र होकर हिंदुओं के गांवों पर हमला किए हैं और उन्हें नष्ट कर दिया है । इसमें दो मत नहीं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कराने में यहां के हिंदुओं ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया था । तब उन्हें आशा थी कि बांग्लादेश उनके लिए सुरक्षित स्थान होगा पर उनकी यह आशा केवल मृगतृष्णा ही सिद्ध हुई । यहां रह कर भी उन्हें उसी मजहबी सोच ने कुचलना और मसलना आरंभ कर दिया जिसके लिए भारत में शांति के प्रतीक सफेद कबूतर उड़ाने वाले छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज तक कहते आ रहे हैं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना । 1971 में भारत की मुक्ति सेना बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करा कर अपनी बैरकों में वापस आ गई पर वह हिंदुओं को मुक्त नहीं करा पाई । यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में राजनीतिज्ञ मुसलमान और ईसाई हितों की बात तो कर सकते हैं पर वह हिंदुओं के हित की बात करना तो दूर रहा हिंदू शब्द को भी अपनी जुबान पर नहीं आने देते हैं । उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे हिंदू शब्द कहते ही एक बहुत बड़ा पाप पर बैठेंगे । बांग्लादेश ने अपने निर्माण से भी पूर्व से हमारे आसाम और अन्य सीमावर्ती राज्यों में अवैध घुसपैठ जारी की हुई थी । यह सही मायनों में तो 1947 से भी पूर्व से सिलसिला चल रहा था।
अब तो यह देश की राजधानी सहित पूरे एनसीआर में भी एक बीमारी के रूप में पैर पसार चुका है । पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के अधिकांश रेलवे स्टेशनों पर जितने भी भिखमंगे लोग आपको मिलते हैं अधिकाँशत: वे बांग्लादेशी होते हैं , जो पलक झपकते ही आपका सामान चोरी कर जाते हैं । इन्हीं के कारण अधिकांश जेबकतरी की घटनाएं होती हैं और इन्हीं के कारण चेन झपटने और हत्या करने की कितनी ही घटनाएं होती हैं। इसका अर्थ है कि इनके लिए भारत रोजी रोटी कमाने का भी देश नहीं है बल्कि उनके लिए तो यह देश झपटमारी और सीनाजोरी करने का देश बन कर रह गया है । इस सारी प्रक्रिया को रोका जा सकता था बशर्ते कि हमारी सरकारें इस घुसपैठ की अति संवेदनशील घटना के प्रति प्रारंभ से ही गंभीर रही होती, लेकिन राजनीतिज्ञों को केवल वोट चाहिए और वह वोट यदि देश के शांति प्रिय लोगों के जीवन को तबाह करने की कीमत पर भी मिल रही हो तो यह उन्हें लेने में देर नहीं करेंगे । इनके लिए राष्ट्रहित गौण हैं और स्वहित प्रमुख है ।
श्रीमती इंदिरा गांधी ने शेख मुजीबुर्रहमान के साथ अपने समझौते में यह स्पष्ट कर दिया था कि 24 मार्च 1971 के बाद भारत आए बांग्लादेशियों को विदेशी माना जाएगा , परंतु उन्होंने इसे केवल समझौते तक सीमित रखा । बाद में आज शाम में इस समझौते को लागू कराने के लिए वहां के लोगों ने बड़ी मात्रा में अपना खून बहाया और 15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को एक समझौता करने के लिए बाध्य कर दिया । जिसको असम समझौता का नाम दिया गया । उसके अनुसार असम में भारत की नागरिकता के लिए 24 मार्च 1971 की तिथि मान्य की गई ।
दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि यह असम समझौता भी केवल कागजों तक ही सीमित रहा और कोई कार्यवाही इसके आधार पर नहीं की गई । फलस्वरुप असम के लोगों के सारे बलिदान व्यर्थ चले गए । आज कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी के द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध की गई कार्यवाही को मानने को तैयार नहीं हैं। उन्हें इसमें भाजपा की राजनीति नजर आती है। माना कि भाजपा की इसमें राजनीति है , जब राजनीति शुद्ध परमार्थवादी होती है , तब वह राष्ट्रनीति बन जाया करती है । मोदी सरकार की राजनीति में राष्ट्रनीति का प्रमाण स्पष्ट नजर आ रहा है । जिसे श्री मोदी की राष्ट्रवादी सोच का प्रतिफल ही कहा जाएगा । यह उनका साहसिक निर्णय है कि जिस कार्य को कांग्रेस के प्रधानमंत्री संधि समझौते करने के उपरांत भी ले नहीं पाए पा रहे थे उसे उन्होंने लेकर दिखाया । इससे श्री मोदी की सोच स्पष्ट हो जाती है कि वह कठोर और साहसिक निर्णय राष्ट्रहित में लेने में देर नहीं करते हैं ।
श्री राहुल गांधी को यह भी पता होना चाहिए कि उनके प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने 2005 में यह घोषणा की थी कि ‘ नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन ‘ को अद्यतन किया जाएगा । यह अलग बात है कि मनमोहन सरकार के इस निर्णय को आसाम की तरुण गोगोई सरकार ठंडे बस्ते में डालें रही । तब 2015 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश की कार्यपालिका को जगाया और इसे इस दिशा में ठोस कार्य करने का आदेश दिया । यह सुखद बात रही कि 2016 में असम की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आस्था व्यक्त की और आसाम से कांग्रेस का सफाया कर वहां भाजपा की सरकार बनवाई ।
इससे भाजपा की सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करने का अवसर मिल गया । फलस्वरूप एनआरसी पर तेजी से कार्य होने लगा । इस दौरान 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया । इनकी जांच की गई तो पता चला कि 2. 89 करोड़ लोग ही स्वयं को भारतीय नागरिकता की प्राप्ति के लिए पात्र सिद्ध कर पाए ।
अतः यह स्पष्ट हो गया कि 4000000 लोग अपात्र थे। यह अपात्र लोग ही बांग्लादेशी घुसपैठिए माने जा रहे हैं । अब इन घुसपैठियों को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धमकी दे रही है कि यदि इन्हें कुछ हुआ तो देश में गृह युद्ध हो जाएगा । वह घुसपैठियों का समर्थन करके उनकी सहानुभूति न लेकर स्वयं की राष्ट्र के प्रति गद्दारी का प्रमाण दे रही हैं । उनके सुर में सुर डाल रही कांग्रेस की अक्ल पर भी पत्थर पड़ गए हैं । वह भी इतिहास को भुलाकर तात्कालिक लाभ के लिए देश के ‘जयचंदों ‘ का साथ देकर एक बार फिर यह सिद्ध कर रही है कि उसे ब्रिटिश ‘ राज भक्ति ‘ के सामने राष्ट्रभक्ति आज भी उतनी ही अप्रिय है , जितनी अंग्रेजों के काल में थी । साथ ही यह भी कि उसने छद्म धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण की अपनी परंपरागत जयचंदी नीति से कोई शिक्षा नहीं ली है ।
पाठकवृन्द ! अब समय ‘जयचंदो ‘ को पहचानने का है । इनके छलछंदों को जानने का है , इन्हें वह रिपोर्ट पढ़ाई जाए जो ” बांग्लादेश इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवेलपमेंट स्टडीज ढाका ” ने जारी की थी और जिसमें कहा गया था कि 1951 से 1961 के बीच 35 लाख के लगभग बांग्लादेशी बंगला देश से गायब हो गए थे । अच्छा हो कि अब बांग्लादेश को उसके 3500000 नागरिकों को भारत सप्रेम भेंट कर दें । वैसे भी एक अच्छे पड़ोसी देश का यह कर्तव्य भी बनता है कि वह अपने पड़ोसी की समस्या में अपना सकारात्मक सहयोग दें । यदि पाक बांग्लादेश के कुछ नागरिक गायब हैं और वह भारत में मिल गए हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं की । भारत सरकार उन्हें अपने पड़ोसी देश को चुपचाप सौंप दें और भारत के सभी विपक्षी दल भी इस पुनीत कार्य में भारत की सरकार का सहयोग करें । वैसे भी कांग्रेस तो 93000 गिरफ्तार किए गए पाकिस्तानी सैनिकों को उनके देश को सौंपने का अनुभव रखती है तो अब उसे ही एक बार पड़ोसी देश की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए उसके गायब नागरिकों को उसे सौपने की पहल करनी चाहिए । हमारा राष्ट्रवाद निश्चय ही मानवतावादी है , परंतु मानवतावादी राष्ट्रवाद का अभिप्राय यह नहीं कि किसी को अपना कलेजा खाते रहने दिया जाए और आप चुप रहें । यह तो आत्मप्रवंचनात्मक देशभक्ति का राष्ट्रवाद होगा । अब तो हमें दूरदर्शी शांत और निर्भ्रांत राष्ट्रवाद की आवश्यकता है । राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है , यह सुखद है कि श्री मोदी देश को ऐसे ही राष्ट्रवाद की ओर लेकर आगे बढे हैं । हमें अपने नेतृत्व के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना चाहिए ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,066 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress