धनी वर/पति देता, है सप्तम का उच्च शुक्र ; for getting rich husband

( आपकी जन्म कुडली से जानिए केसा होगा आपका वर/पति/घरवाला)—–

प्रत्येक लड़की की इच्छा होती है कि उसका होने वाला पति धन संपन्न हो, आकर्षक व्यक्तित्व का धनी हो एवं पत्नी को चाहने वाला हो। इसी प्रकार प्रत्येक युवक की भी अपनी इच्छाएँ वधू के मामलों में होती है कि उसकी पत्नी सुंदर हो, पढ़ी-लिखी हो, घर-परिवार को लेकर चलने वाली हो। प्रस्तुत आलेख में इन्हीं बातों को विशेष ध्यान दिया गया है। युवती की कुंडली में पति व युवक की कुंडली में पत्नी के बारे में जानिए।

—-ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का भाग्य कितना साथ देता है यहां इसकी चर्चा की जा रही है.

शत्रु ग्रह की राशि में बैठा शुक्र भाग्य को कमज़ोर बनाता है. परंतु, शुक्र यदि 3020′ से 6040′ तथा 200 से 23020 तक होंगे तब भाग्य का सहयोग आपको मिलता रहेगा. भाग्य भाव में शुक्र के साथ बुध भी हो तो यह भाग्य को बहुत ही कमज़ोर बना देता है.

मेष लग्न वालों की कुण्डली में सप्तमेश भाग्य भाव में बैठा हो तो व्यक्ति को जीवनसाथी के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. जीवनसाथी से सहयोग एवं सलाह लेकर कार्य करना भी फायदेमंद होता है.

—-लड़की की पत्रिका में सप्तम भाव से उसके भावी ‍जीवनसाथी का विचार किया जाता है। वहीं नवांश कुंडली को भी देखना चाहिए। सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में पड़ने वाली दृष्टिशयां, सप्तम भाव में अन्य ग्रहों की युति, सप्तमेश किन ग्रहों के साथ है, सप्तमेश वक्री है या अस्त, नीच का तो नहीं आदि।

—-हर लड़की ऐसा जीवनसाथी चाहती है जिस पर उसे गर्व हो यानी वह उसकी चाहत की कसौटी पर खरा उतरता हो। लड़कियाँ लड़के के रंग-रूप या कद-काठी की बजाए उसकी पढ़ाई- लिखाई, कमाई और वैयक्तिक गुणों को अधिक महत्व देती हैं। यदि पति हैंडसम हो और गुणों की खान भी तो सोने पर सुहागा।

——लड़कियाँ ऐसे लड़के से शादी करना चाहती हैं जो खुले विचारों का हो जिसकी सोच दकियानूसी न होकर विस्तृत हो, क्योंकि तभी वह अपनी पत्नी की इच्छाओं और भावनाओं को समझ सकता है तथा उसकी कद्र कर सकता है।

—–लड़कियाँ ऐसे लड़के पसंद करती हैं, जो केवल उनका पति ही बनकर न रहे अपितु एक सच्चा दोस्त भी बने और सुख-दुख में साथ भी निभाए।

—-लड़कियों की नजर में वह लड़का उनका जीवनसाथी बनने योग्य है, जो अपनी पत्नी की उपलब्धियों पर खुश हो तथा गर्व का अनुभव करे न कि ईर्ष्या करे या उसकी प्रतिभा को रौंदने का काम करे।

—–हर लड़की ऐसा पति चाहती है जो कंजूस न हो और खुले हाथ से खर्च कर सकता हो, क्योंकि कंजूस युवक के साथ उन्हें अपने जीवन की खुशियाँ नहीं मिल सकतीं।

—-अच्छा कमाऊ लड़का ही वह पति के रूप में चाहती हैं। पत्नी की कमाई पर ऐश करने वाले या निर्भर रहने वाले लड़के को वह कभी पसंद नहीं करती।

—–ज्यादातर लड़कियाँ चाहती हैं कि उनका पति उनसे पढ़ा-लिखा, समझदार और योग्य हो।

—-लड़कियाँ ऐसे लड़के से शादी करना चाहती हैं, जो स्वयं आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर हो न कि अपने पिता पर निर्भर हो।

—–लड़कियों की नजर में एक अच्छा पति वह है, जो अपनी पत्नी को अपने समकक्ष दर्जा दे न कि उसे अपने पैरों की जूती समझे। स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाले को वह कभी जीवनसाथी बनाना नहीं चाहती, क्योंकि ऐसे लोग पत्नी पर हाथ उठाना या उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने में अपनी मर्दानगी समझते हैं।

—–लड़कियाँ ऐसे लड़के से साथ जीवन जीना चाहती हैं, जो उसे प्यार और साथ दोनों दे सके। शादी के बाद भी यदि उसे अकेलापन काटना पड़े तो ऐसी शादी से क्या फायदा? खासकर जो लड़के विदेश में नौकरी करते हैं, यदि वे अपने साथ अपनी पत्नी को ले जाएँ तब तो ठीक अन्यथा पिया मिलन की आस में जिंदगी कट जाती है।

—–देश में रहने पर भी यदि पति के पास अपनी पत्नी के लिए समय नहीं है तो पत्नी को पीड़ा होती है। कोई भी पत्नी कम आमदनी में गुजर-बसर कर लेगी, लेकिन उसे पति का साथ चाहिए।

—–हर लड़की ऐसे लड़के से शादी करना चाहेगी, जो पत्नी की अहमियत को समझता हो तथा हर महत्वपूर्ण फैसले में उसकी राय लेता हो।

—–लड़कियों की नजर में एक अच्छा पति वह है, जो अपनी पत्नी को अपने समकक्ष दर्जा दे न कि उसे अपने पैरों की जूती समझे। स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाले को वह कभी जीवनसाथी बनाना नहीं चाहती, क्योंकि ऐसे लोग पत्नी पर हाथ उठाना या उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने में अपनी मर्दानगी समझते हैं।

——-हर लड़की के मन में अपने जीवनसाथी के बारे में कल्पनाएं होती है कि उसका पति सुंदर हो, हष्ट-पुष्ट हो, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, पढ़ा-लिखा, उत्तम गुणों वाला हो आदि-आदि। माता-पिता का भी अपने लड़की के प्रति कुछ ऐसा ही सपना होता है कि उनकी बेटी सुखी रहे, उसे अच्छा वर मिले, घर परिवार अच्छा हो।

—-यदि जन्म लग्न मेष हो और सप्तम भाव में शुक्र हुआ तो वह लड़की या लड़का सुंदर होगा, वहीं आर्थिक मामले में सुदृढ़ होगा या होगी।

—वृषभ लग्न हो और सप्तम भाव में मंगल हो व चंद्र लग्न में हो तो वह युवती या युवक उग्र स्वभाव का होगा लेकिन धन के मामलों में सौभाग्यशाली होगा।

—-मिथुन लग्न हो और सप्तमेश सप्तम भाव में हो तो जिसकी पत्रिका होगी वह ज्ञानी, न्यायप्रिय, मधुरभाषी, परोपकारी, धर्म-कर्म को मानने वाला वा वाली होगी।

—–कर्क लग्न वालों के लिए शनि सप्तम भाव में या सप्तमेश उच्च का होकर चतुर्थ भाव में हो तो वह साँवला या साँवली होगी, लेकिन सुंदर अवश्य होगी व शनि उच्च का हुआ तो सुख उत्तम मिलेगा।

—–सिंह लग्न हो और सप्तमेश सप्तम में हो या उच्च का हो तो वह साधारण रंग-रूप की होगी व पराक्रम बढ़ा-चढ़ा होगा लेकिन भाग्य में रुकावटें आएँगी।

—–कन्या लग्न हो और सप्तम भाव में गुरु हो तो उसका पति या पत्नी सुंदर होगी व गौरवर्ण भी होगी। स्नेही व उत्तम संतान सुख मिलेगा। ऐसी स्थिति वाला प्रोफेसर, जज, गजेटेट ऑफिसर भी हो सकता है। सम्माननीय भी होगा या होगी।

—-तुला लग्न हो और सप्तम भाव में मेष का मंगल हो तो वह उग्र स्वभावी, साहसिक, परिवार से अलग रहने वाली होगी। पारिवारिक स्थिति मध्यम होगी व राज्य व नौकरी या व्यापार में बाधा होगी।

——वृश्चिक लग्न हो और सप्तम भाव में शुक्र हो तो वह स्वराशि का होने से उसे सुसराल से धन मिलेगा व पति या पत्नी से लाभ पाने वाले होगा।

—–धनु लग्न हो और सप्तम भाव में बुध हो तो वह भद्र योग वाला या वाली होगी अतः समझदार, विद्वान, विवेकी, पढ़ी-लिखी होगी। राज्य व्यापार या सर्विस में हो सकती है।

—–मकर लग्न हो और चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो वह सुंदर, गौरवर्ण, कोमल स्वभाव की जल तत्व राशि होने से शांतिप्रिय होगी।

—-कुंभ लग्न हो और सप्तम भाव में सूर्य हो तो वह साहसिक, महत्वाकांक्षी, तेजस्वी स्वभाव की होगी व हुकूमत करने वाली होगी। परिवार से भी अलग हो सकती है।

—–मीन लग्न हो और सप्तम में बुध हो तो वह उच्च का होगा, ऐसी स्थिति वाली युवती पढ़ी-लिखी, समझदार, माता-पिता, भूमि-भवन से लाभ पाने वाली होगी। परिवार में सम्माननीय होगी।

उपरोक्त स्थिति प्रत्येक लग्नानुसार सप्तमेश सप्तम में होने की स्थिति को बताता है कि यदि इन पर अशुभ प्रभाव हुआ तो फल में परिवर्तन आ सकता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों की स्थिति रही तो भी फल में परिवर्तन आ सकता है, वहीं अपने सामने यह दृष्टिसंबंध अन्य ग्रहों से होगा तो भी फल में अंतर आ जाएगा। उसी प्रकार सप्तमेश सप्तम में ही हो, लेकिन वक्री या अस्त हो तब भी फल में अंतर आ जाएगा। यहाँ पर सिर्फ सप्तमेश का स्वराशि होकर मार्गी व उदय के बारे में फल जानिए।

——ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह को दांपत्य जीवन, काम-वासना, ग्लेमर, फैशन, प्रेम, कला का कारक ग्रह माना गया है। शुक्र का सीधा प्रभाव शरीर के गुप्तांग, नैत्र, वीर्य पर रहता है। शुक्र उच्च का होने पर व्यक्ति स्त्रियों में विशेष पहचान रखने वाला होता है। स्त्रियों का साथ उसे अतिप्रिय होता है। स्त्रियां भी शुक्र उच्च का होने पर जल्द ही व्यक्ति पर मोहित हो जाती है। शुक्र अशुभ या नीच का होने पर व्यक्ति में चरित्र के दोष रहते हैं। कुंडली में खराब स्थिति का शुक्र पारिवारिक एवं गृहस्थ जीवन में अशांति और कलह का वातावरण बना देता है। अशुभ शुक्र होने पर व्यक्ति को त्वचा सम्बन्धी रोग, स्वप्न दोष, अंगूठे में पीड़ा की समस्या रहती है।

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—–सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है.इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है.जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं. जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले.

—सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.

—-जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है.

—–केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है. इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है.

—–शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.

—–सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है

—–सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है.

—-चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है.

—-कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.

—–गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।

—–मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।

—-मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।

—-सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है.

—–जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं.जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले.

—-सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.

—–जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है.

——केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है. इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है.

—–शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.

—–सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है

—–सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है.

—-चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है.

—–कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.

—-गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।

—-मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी वैवाहिक जीवन समाप्त कराता है।

——मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।

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आइए जानते हैं कुछ ऐसे प्लेनेट कॉम्बिनेशन ‍जो बताते हैं कि कैसा होगा आपका लाइफ पार्टनर :

यदि जन्म पत्रिका (कुंडली) का अध्ययन करते समय इन सबका ध्यान रखा जाए तो भावी जीवनसाथी की झलक पहले से ही मिल सकती है..जेसे—-

* सप्तम भाव में शनि हो तो अपनी उम्र वाला वर मिलेगा, रंग सांवला भी हो सकता है।

* सप्तमेश शुक्र उच्च का होकर द्वादश भाव में हो तो जन्म स्थान से दूर विवाह होगा, लेकिन पति सुंदर होगा।

* सप्तम भाव में मंगल उच्च का हो तो ऐसी कन्या को वर उत्तम, तेजस्वी स्वभाव का, पुलिस या सेना में काम करने वाला मिल सकता है।

* सप्तम भाव में धनु का गुरु हो तो ऐसी कन्या को मिलने वाला वर सुंदर, गुणी, उद्यमी या वकील, शिक्षक या बैंककर्मी भी हो सकता है।

* मंगल के साथ शनि हो तो ऐसी कन्या को वियोग का योग होता है।

* शुक्र-शनि साथ हो तो ऐसी कन्या को वर सांवला, सुंदर, आकर्षक, इंजीनियर या चिकित्सा के क्षेत्र में मिलेगा। धनवान भी हो सकता है।

* सप्तमेश सप्तम भाव में उच्च का हो तो ऐसी कन्या का वर भाग्यशाली होगा, लेकिन विवाह बाद उसे अधिक लाभ रहेगा।

– यदि मेष लग्न हो और सातवें भाव में शुक्र हुआ तो लाइफ पार्टनर सुंदर होगा, वहीं वह फाइनेंशियली साउंड भी होगा।

– वृषभ लग्न हो और सप्तम भाव में मंगल हो व चंद्र लग्न में हो तो वह जीवनसाथी उग्र स्वभाव का होगा लेकिन धन के मामलों में सौभाग्यशाली होगा।

– मिथुन लग्न हो और सप्तम भाव का मालिक भी सातवें भाव में ही बैठा हो तो ऐसी पत्रिका ‍जिसकी होगी वह ज्ञानी, न्यायप्रिय, मधुरभाषी, परोपकारी, धर्म-कर्म को मानने वाला या वाली होगी।

– कर्क लग्न वालों के लिए शनि सप्तम भाव में या सप्तमेश उच्च का होकर चतुर्थ भाव में हो तो वह साँवला या साँवली होगी, लेकिन जीवनसाथी सुंदर होगा या होगी व शनि उच्च का हुआ तो विवाह सुख उत्तम मिलेगा।

– सिंह लग्न हो और सप्तमेश सप्तम में हो या उच्च का हो तो वह साधारण रंग-रूप की होगी पर उसका पति या पत्नी पराक्रमी होगें लेकिन भाग्य में रुकावटें आएँगी।

– कन्या लग्न हो और सप्तम भाव में गुरु हो तो पति या पत्नी सुंदर मिलता है। स्नेही व उत्तम संतान सुख मिलेगा। ऐसी स्थिति वाला प्रोफेसर, जज, गजेटेट ऑफिसर भी हो सकता है। लाइफ पार्टनर सम्माननीय होगा।

– तुला लग्न हो और सप्तम भाव में मेष का मंगल हो तो वह उग्र स्वभाव, साहसिक, परिवार से अलग रहने वाली होगा। लाइफ पार्टनर की पारिवारिक स्थिति मध्यम होगी व नौकरी या व्यापार में बाधा होगी।

– वृश्चिक लग्न हो और सप्तम भाव में शुक्र हो तो स्वराशि का होने से उसे सुसराल से धन मिलेगा। पति पत्नी से लाभ पाने वाला और पत्नी पति से लाभ पाने वाली होगी।

– धनु लग्न हो और सप्तम भाव में बुध हो तो लाइफ पार्टनर समझदार, विद्वान, विवेकी, पढ़ी-लिखा होगा। अगर पत्रिका लड़के की है तो लड़की सर्विस में हो सकती है।

– मकर लग्न हो और चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो ऐसा युवा सुंदर, सॉफ्ट स्पोकन, शांतिप्रिय होगा। लाइफ पार्टनर बेहद खूबसूरत होगा।

– कुंभ लग्न हो और सप्तम भाव में सूर्य हो तो वह साहसिक, महत्वाकांक्षी, तेजस्वी स्वभाव की होगी व हुकूमत करने वाली होगी। परिवार से भी अलग हो सकती है।

– मीन लग्न हो और सप्तम में उच्च का बुध हो तो वह युवा प्रतिष्ठित होगा, ऐसी प्लेनेट कंडीशन वाली वाली युवती पढ़ी-लिखी, समझदार, माता-पिता, भूमि-भवन से लाभ पाने वाली होगी। परिवार में सम्माननीय होगी।

यदि इन प्लेनेट कॉम्बिनेशन पर अशुभ प्रभाव हुआ तो फल में परिवर्तन आ सकता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों की स्थिति भी देखी जानी चाहिए। उसी प्रकार सप्तमेश सप्तम में ही हो, लेकिन वक्री या अस्त हो तब भी फल में अंतर आ जाएगा।

ज्यातिष में 12 राशियां होती है। इन राशियों की आपस में मित्रता और शत्रुता होती है। इन राशियों की अलग अलग प्रकृति और स्वभाव भी बताए गए हैं साथ ही इनके गुण और दोष भी ज्योतिषियों ने बताए हैं।इन सभी के आधार पर जानिएं किस नाम का होगा आपका जीवनसाथी…

मेष- आपकी राशि के अनुसार आपका जीवन साथी र, त, भ या ध इनमें से किसी अक्षर से शुरू होने वाले नाम का होगा।

वृष- न, य या प अक्षर से शुरु होने नाम वाला आपका जीवन साथी होगा।

मिथुन- आपकी राशि के स्वभाव के अनुसार भ, ध या र अक्षर वाला जीवनसाथी आपके लिए श्रेष्ठ रहेगा।

कर्क- राशि के अनुसार आपका जीवनसाथी ज, ख या ग अक्षर के नाम वाला होगा।

सिंह- आपकी राशि के लिए जीवनसाथी स, द या फ इनमें से किसी अक्षर से शुरू होने वाले नाम का होगा।

कन्या- आपका जीवनसाथी द, च या व अक्षर वाले नाम का होगा।

तुला- आपकी राशि के स्वभाव के अनुसार च ल या अ अक्षर वाला जीवनसाथी आपके लिए होगा।

वृश्चिक- आपके लिए इ, उ या व अक्षरों से शुरू होने वाले नाम का जीवनसाथी होगा।

धनु- आपकी मित्र राशि के अनुसार आपका जीवनसाथी क घ या ह अक्षरों से शुरू होने वाले नाम का होगा।

मकर- आपका जीवनसाथी आपकी राशि के अनुसार व, प या ड अक्षरों से शुरू होने वाले नाम का होगा।

कुंभ- इस राशि वालों का जीवनसाथी र म या ट अक्षरों से शुरू होने वाले नाम का होगा।

मीन- प ज या न अक्षरों के नाम का जीवनसाथी इस राशि वालों के लिए होता है।

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जन्मकुंडली से जानिए सुखी दाम्पत्य जीवन का राज —-

विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये.

सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.

यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.

यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.

लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)

सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.

सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.

जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.

पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.

वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.

अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.

दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.

वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.

कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही निर्णय लेना चाहिये. इस सबके अलावा वर कन्या के जन्म लग्न एवन जन्म राशि के तत्वों पर भी दॄष्टिपात कर लेना चाहिये. दोनों के लग्न, राशि के एक ही ततव हों और परस्पर मित्र भाव वाले हों तो भी पति पत्नि का जीवन प्रेम मय बना रहता है. इस मामले में विपरीत तत्वों का होना पति पत्नि में शत्रुता पैदा करता है यानि पति अग्नि तत्व का हो और पत्नि जल तत्व की हो तो गॄहस्थी की गाड़ी बहुत कष्ट दायक हो जाती है. कुल मिलाकर एक ही तत्व वाले जोडे अधिक सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं..

विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिय

सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.

यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.

यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.

लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)

सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.

सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.

जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.

पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.

वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.

अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.

दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.

वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.

कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही निर्णय लेना चाहिये. इस सबके अलावा वर कन्या के जन्म लग्न एवन जन्म राशि के तत्वों पर भी दॄष्टिपात कर लेना चाहिये. दोनों के लग्न, राशि के एक ही ततव हों और परस्पर मित्र भाव वाले हों तो भी पति पत्नि का जीवन प्रेम मय बना रहता है. इस मामले में विपरीत तत्वों का होना पति पत्नि में शत्रुता पैदा करता है यानि पति अग्नि तत्व का हो और पत्नि जल तत्व की हो तो गॄहस्थी की गाड़ी बहुत कष्ट दायक हो जाती है. कुल मिलाकर एक ही तत्व वाले जोडे अधिक सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं..

विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये.

सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.

यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.

यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.

लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)

सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.

सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.

जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.

पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.

वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.

अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.

दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.

वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.

कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही निर्णय लेना चाहिये. इस सबके अलावा वर कन्या के जन्म लग्न एवन जन्म राशि के तत्वों पर भी दॄष्टिपात कर लेना चाहिये. दोनों के लग्न, राशि के एक ही ततव हों और परस्पर मित्र भाव वाले हों तो भी पति पत्नि का जीवन प्रेम मय बना रहता है. इस मामले में विपरीत तत्वों का होना पति पत्नि में शत्रुता पैदा करता है यानि पति अग्नि तत्व का हो और पत्नि जल तत्व की हो तो गॄहस्थी की गाड़ी बहुत कष्ट दायक हो जाती है. कुल मिलाकर एक ही तत्व वाले जोडे अधिक सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं..

 

 

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