ऋषि दयानन्द ने ईश्वर और मातृभूमि के किन ऋणों को चुकाया?

0
122

-मनमोहन कुमार आर्य

               महर्षि दयानन्द सृष्टि की आदि में प्रवृत्त वैदिक ऋषि परम्परा वाले एक ऋषि थे। उन्होंने विलुप्त वेदों का अत्यन्त पुरुषार्थपूर्वक ज्ञान अर्जित किया था। ईश्वर की उन पर कृपा हुई थी जिससे वह अपने अपूर्व प्रयत्नों से वेदज्ञान को प्राप्त करने में सफल हुए थे। वेदज्ञान प्राप्त करने पर उन्हें वेद से जुड़े अनेक रहस्यों का ज्ञान हुआ था। वेद विषयक प्रमुख रहस्य यह था कि वेद मानव रचित ज्ञान होकर ईश्वर प्रेरित सृष्टि की आदि में प्राप्त ज्ञान है। यह ज्ञान सृष्टि के आदि काल में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को प्राप्त हुआ था। ईश्वर निराकार, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, सर्वशक्तिमान एवं सृष्टिकर्ता है। उसने यह ज्ञान अपने सर्वान्तर्यामीस्वरूप से इन ऋषियों की आत्मा में अन्तःप्रेरणा करके वेदार्थ सहित प्रतिष्ठित किया था। इन्हीं ऋषियों से यह ज्ञान सारे संसार में विस्तृत हुआ वा फैला है। इसी वेदज्ञान से सृष्टि के आदिकालीन सभी मनुष्य ज्ञानी बने थे। सृष्टि के आदिकाल में सभी मनुष्य वेदों की भाषा संस्कृत को ही बोलते थे। उस समय वेद के अतिरिक्त न कोई भाषा थी, न कोई आचार्य, उपाध्याय, गुरु अथवा वेद से इतर कोई पुस्तक ही। मनुष्य न तो भाषा बना सकते हैं और न ही ज्ञान की उत्पत्ति कर सकते हैं। सृष्टि के आदिकाल में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न मनुष्यों को प्रथम भाषा ईश्वर से ही प्राप्त होती है। इस भाषा का प्रयोग कर तथा इसमें विकृति होकर नई भाषायें बन सकती हैं परन्तु मूल वेदभाषा की तरह पृथक से स्वतन्त्र रूप से बिना वेदभाषा की सहायता से किसी नई भाषा को अस्तित्व में नहीं लाया जा सकता।

               सृष्टि के आरम्भ में प्राप्त वेदों का ज्ञान वर्तमान से लगभग 5000 हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध में ब्राह्मणों, क्षत्रियों आदि की क्षति के कारण विलुप्त हो गया था। कुछ वेदपाठी ब्राह्मणों एवं आचार्यों उनके शिष्यों ने इसको सुरक्षित किया हुआ था। मध्यकाल में आचार्य सायण ने भी चारों वेदों पर टीकायें लिखी थी। यद्यपि उनकी टीकायें वा वेदार्थ पूर्णतः सत्य अर्थों से युक्त प्रामाणिक नहीं थे तथापि उनसे कुछ सीमा तक वेद संहिताओं की रक्षा हुई। मैक्समूलर आदि पाश्चात्य विद्वानों ने सायण के वेदभाष्य की सहायता से ही इंग्लैण्ड में इनके अंग्रेजी अर्थ प्रकाशित किये थे। यह भी वेदों की रक्षा का यथोचित उपाय नहीं था परन्तु इससे वेदार्थ की तो नहीं परन्तु मूल वेद मन्त्रों की एक सीमा तक रक्षा होना स्वीकार किया जा सकता है। ऋषि दयानन्द जब अपनी आयु के बाईसवें वर्ष में ईश्वर व मृत्यु आदि से जुड़े प्रश्नों के अनुसंधान में घर से चले थे, तब वह देश के अनेक स्थानो ंपर जाकर सभी प्रमुख धार्मिक विद्वानों से मिले थे। उनसे प्रश्नोत्तर कर उन्होंने अपनी शंकाओं को उनके सम्मुख प्रस्तुत किया था। उनसे प्राप्त उत्तरों पर ऋषि दयानन्द ने विचार किया था परन्तु उनकी सन्तुष्टि नहीं हुई थी। सन् 1846 से सन् 1860 तक की अवधि में वेदों का यथार्थ ज्ञाता कोई आचार्य उन्हें नहीं मिला था। उन्होंने योग के योग्य गुरुओं श्री ज्वालानन्द पुरी तथा शिवानन्द गिरी जी से योग सीखा था और योग विद्या में कृतकार्य हुए थे। इसके बाद कुछ वर्षों तक का उनका जीवन उपलब्ध नहीं होता। यह काल सन् 1857 का अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति का काल था। इसके बाद वह मथुरा के संस्कृत व्याकरणाचार्य प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी के पास पहुंचे थे और उनको अपना आचार्य व विद्या गुरु बनाया था। उनसे चरणों में बैठ कर लगभग 3 वर्ष अध्ययन किया था। इस अध्ययन से वह वेदों के आर्ष व्याकरण पाणिनी-अष्टाध्यायी-महाभाष्य द्वारा वेदों के वेदार्थ करने की योग्यता से युक्त हुए थे। इसके बाद उन्होंने अनेक स्थानों पर जाकर वेद प्राप्ति के प्रयत्न किये और उन्हें प्राप्त किया। तदुपरान्त वेदों के अर्थों का मनन किया।

               वेद संहिताओं के अध्ययन से उन्हें वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने का निश्चय हुआ था। ऐसा करके वह वेद वर्णित ईश्वर व आत्मा के सत्य स्वरूप का प्रचार करने के लिये तत्पर हुए थे। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, यह उनके वेदानुसंधान का परिणाम था। अपने इस निष्कर्ष के विपरीत वह किसी भी वेद विरोधी आचार्य से शास्त्र चर्चा करने के लिये उत्सुक रहते थे जो इस तथ्य व रहस्य से परिचित नहीं व इसे स्वीकार नहीं करते थे। योगाभ्यास, ध्यान, समाधि तथा वेदाध्ययन से ही उन्हें ईश्वर का सत्यस्वरूप विदित हुआ था और इसके साथ वह ईश्वर के सभी जीवों पर उपकारों से भी परिचित हुए थे। अतः उनका भावी जीवन ईश्वर की सत्ता को उसके सत्य यथार्थ रूप में देश समाज में प्रतिष्ठित करना था। उन्होंने अपने कर्तव्य व दायित्व का निर्वहन करने हुए देश भर में वेद प्रचार किया। उनका कार्य अपूर्व था। उनका वेद प्रचार का कार्य देश और मानव जाति के सौभाग्य का कार्य था। विगत पांच हजार वर्षों में उन जैसा वेदज्ञानी ऋषि भारत क्या विश्व की भूमि पर कहीं उत्पन्न नहीं हुआ था। उन्होंने वेदभक्तों के ज्ञान का पोषण व उसमें वृद्धि की और वेद विरोधियों को अपने ज्ञान व तर्कों से निरुत्तर किया था। वेदों में ही मनुष्य के सभी कर्तव्यों का वर्णन प्राप्त होता है। मनुष्य का एक कर्तव्य अपने देश के प्रति यह होता है कि वह उसकी स्वतन्त्रता, उन्नति व कल्याण के लिए प्रयत्न करे। इस कर्तव्य को भी उन्होंने जाना था और उसे पूरा करने के लिये उन्होंने अपूर्व पुरुषार्थ किया था। उनके समाज सुधार, अन्धविश्वास निवारण, वेदों की महत्ता व गरिमा को समाज में प्रतिष्ठित करना, अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि तथा सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग आदि सभी कार्य समाज में सर्वत्र फैल गये और सभी सत्य प्रेमी और निष्पक्ष विद्वानों ने उनकी वेद विषयक सभी मान्यताओं को स्वीकार किया था।

               ऋषि दयानन्द ने वेदों का अध्ययन किया तो उन्हें ईश्वर, देश व समाज के प्रति अपने सभी कर्तव्यों का बोध हुआ। उन कर्तव्यों के पालन के लिये ही उन्होंने वेद प्रचार किया। वेद प्रचार कार्य में सहायक संगठन के रूप में उन्होंने आर्यसमाज की स्थापना की। उन्होंने वेद प्रचार को अपनी मृत्यु के बाद भी जारी रखने तथा देश के सभी स्थानों के लोगों तक वेद का महत्व पहुंचाने के लिए सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि आदि ग्रन्थों की रचना सहित अन्धविश्वास, समाज सुधार एवं देशोन्नति के अनेक कार्यों को किया। उन्होंने जो भी कार्य किये वह सब एक आदर्श महापुरुष के रूप में किये। वह ईश्वर के आदर्श भक्त व उपासक थे। उनका प्रत्येक कार्य वेदाज्ञा वा ईश्वराज्ञा का पालन करने से जुड़ा होता था। उनके कार्य स्वदेश के हित व उन्नति में परम सहायक होते थे। उन्होंने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं किया जो उनके व्यक्तिगत स्वार्थ से जुड़ा हो तथा जिससे देश के किसी हित की उपेक्षा व उसको हानि पहुंची हो। ईश्वर के मनुष्यों पर अनेक ऋण है। ईश्वर जीवात्मा दोनों अनादि नित्य सत्तायें हैं। ईश्वर जीवात्मा को अनादि काल से उसके कर्मों के अनुसार जन्म देता रहा है। जीवात्मा का यह जन्म अनेक योनियों में होता है। जहां भी जन्म होता है वहां अन्न अन्य साधनों की व्यवस्था ईश्वर की ओर से पहले से हुई होती है। जीवात्मा मनुष्य का उत्थान पतन उसके कर्मों के कारण से होता है। इस जन्म में भी हमें मनुष्य जन्म ईश्वर द्वारा ही प्राप्त हुआ है। भविष्य में भी ईश्वर ही हमें जन्म देगा। यह ईश्वर के जीवात्माओं पर ऋण है। इस ऋण के प्रति ईश्वर का कृतज्ञ होना और उसकी भक्ति व उपासना करना ही जीवात्माओं का कर्तव्य सिद्ध होता है। इसके साथ ही सभी वेदाज्ञाओं को जानना व पालन करना भी मनुष्य का कर्तव्य होता है। ऐसा करने से मनुष्य ईश्वर व स्वदेश के प्रति अपने ऋणों से उऋण हो सकता है। ऋषि दयानन्द का जीवन हमारे लिये कर्तव्यपालन का सबसे बड़ा आदर्श उदाहरण है। हमें ऋषि दयानन्द के जीवन एवं कार्यों का अध्ययन कर उनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये। उनका प्रचार भी करना चाहिये जिससे हमारे सभी बन्धु उससे लाभान्वित हो सकें। यदि हम ऐसा करेंगे तो इससे हमें देश व समाज को भी लाभ होगा और हम भी अनेक दुःखों से बचकर अपने सद्कर्मों के अनुरूप सुखों को प्राप्त कर सकेंगे।

               ऋषि दयानन्द के जीवन का प्रमुख कार्य वेदोद्धार, समाज सुधार एवं देशोद्धार था। उन्होंने विलुप्त वेदों को पुरुषार्थ कर प्राप्त किया था। उनका अध्ययन कर उसे सर्वांगपूर्ण शुद्ध पाया था तथा उसे मानव जाति के सर्वाधिक हितकर पाया था। इसका लाभ संसार के प्रत्येक मनुष्य को मिल सके इसके लिये उन्होंने अपनी योग की सामथ्र्य एवं विद्या की योग्यता से वेदों का सर्वांग सुन्दर भाष्य संस्कृत हिन्दी में किया। हमारा कर्तव्य है कि हम नियमित रूप से ऋषि दयानन्द जी के वेदभाष्य का अध्ययन करें। हमारे जीवन का कोई दिन ऐसा न हो जिस दिन हम वेदाध्ययन व वेदों का स्वाध्याय न करें। ऐसा करने से हमारी आत्मा को अवश्य ही लाभ होगा। आत्मा की उन्नति होगी। देश व समाज भी लाभान्वित होंगे। ऐसा करने से हमें ईश्वर का सहाय एवं कृपा प्राप्त होगी। हमारी सभी उचित अभिलाषायें भी पूरी हो सकती हैं। हमारा देश भावी गुलामी व धर्मान्तरण के खतरों से बच सकता है। वेद प्रचार व अपने निजी कर्तव्यों का पालन करने से विश्व के सभी मनुष्य लाभान्वित होंगे, अतः हमें वेदों के स्वाध्याय द्वारा वेदानुकूल जीवन बनाकर लेखन व प्रवचन द्वारा दूसरों को भी लाभान्वित करना चाहिये। यही जीवन उन्नति का एक सुगम मार्ग है। इससे ही हम ईश्वर स्वदेश के ऋणों से भी उऋण हो सकते हैं। ओ३म् शम्।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,687 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress