कब आएगी सुनहरी सुबह?

मृदु भाषनी

हर सुबह के बाद एक रात आती है। और हर रात के बाद सुबह आती है। मगर कुछ बदकिस्मत ऐसे भी हैं, जिन्हें अब तक उस सुबह का इंतजार है जो उनके जीवन के अंधेरा को दूर कर दे। धरती का स्वर्ग कहलाने वाले जम्मू कश्मी र के पुंछ जिला से लगभग 10 किलोमीटर दूर नोना बाड़ी की रहने वाली शाहीन और उसके परिवार की जिंदगी में दो साल पहले एक ऐसा काला दिन आया जिसकी सुबह आज तक न आ सकी। इस परिवार के लिए 2 साल से ईद कभी आई ही नही। इनके लिए ईद और मुहर्रम एक ही जैसे हैं। गम के मारे यह वह लोग है जिनके साथ वक्त और किस्मत ने ही नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार ने भी इंसाफ नहीं किया।

यह कोई काल्पनिक कहानी का हिस्सा नहीं है और न ही किसी साहित्यकार की रचना बल्कि यह आठ साल की उस मज़लूम बच्ची शाहीन की वास्तविक दास्तान है, जो बारूदी सुरंग के चपेट में आने के बाद विकलांग हो चुकी है। पाकिस्तानी सीमा से सटे गांव नोना बाड़ी की रहने वाली शाहीन हर दिन की तरह अपने दो छोटे भाई-बहनों के साथ घर से थोड़ी दूर खेलने गई, लेकिन उसे नहीं पता था किस्मत उसके साथ कोई और खेल खेलने वाली है। उस दिन शाहीन और उसके भाई-बहन जब अपनी जमीन पर खेल रहे थे, तभी अचानक एक भयानक धमाका हुआ जिसमें शाहीन की एक आंख और हाथ हमेशा के लिए चली गई। धमाका ने शाहीन की जिंदगी को पूरी तरह से पलट दिया और उसे बेबसी की जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया। इस हादसे से न सिर्फ शाहीन बल्कि उसके परिवार को झकझोर कर रख दिया। एक तरफ जहां शाहीन विकलांगता की शिकार हुई तो वहीं दूसरी ओर उसके परिवार ने अपने रोजगार और घर की रोजी-रोटी का एकमात्र साधन अपनी जमीन भी गवां दी। शाहीन के पिता असलम हुसैन शाह उस हादसे को याद करते हुए बताते हैं कि अचानक उन लोगों को एक ज़ोरदार धमाका सुनाई दिया। पहले तो लगा कि दुश्म न का हमला है। कुछ ही क्षणों में बच्चों की चीख़ पुकार सुनकर वह लोग बाहर की भागे। जहां का नजारा स्तब्ध कर देने वाला था। कुछ ही देर पहले खिलखिलाते बच्चों की आवाज़ चीत्कार में बदल गई। शाहीन के साथ इस हादसे की चपेट में आए खून से लथपथ उसके दो छोटे भाई-बहनों को जैसे तैसे करके वह लोग पुंछ के अस्पताल लेकर पहुंचे जहां उनका फौरी तौर पर इलाज षुरु हुआ। लेकिन शाहीन के घाव इतने गहरे थे कि पुंछ अस्पताल में उसका इलाज नामुमकिन था। इसलिए डॉक्टरों ने उसे फौरन जम्मू के किसी बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी।

 

शाहीन के पिता असलम हुसैन शाह का कहना है कि धमाके में शाहीन अपनी एक आंख और एक बाजू पूरी तरह खो चुकी थी। उसके इलाज के लिए एक बड़ी रक़म की आवश्यूकता थी। लेकिन पैसों की कमी के कारण ऐसा करना मुश्किल था। असलम शाह ने बताया कि पुंछ अस्पताल में आंख के विषेशज्ञ डॉक्टर अनिल भल्ला द्वारा सत्यापित प्रमाण पत्र जिसमें उन्होंने पुंछ के जिला अध्यक्ष से शाहीन की आंख के इलाज के लिए 25000 रु की मदद की बात कही थी, परंतु जिला अध्यक्ष के मुंशी ने उन्हें सिर्फ 5000 रुपये ही दिये जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। असलम हुसैन ने शाहीन के आंख की रौशनी को वापस दिलाने के लिए कई प्रयास किए मगर कहीं से भी उन्हें आर्थिक मदद इतनी नहीं मिल सकी कि उसका सही तरीके से इलाज हो सके। हर तरफ से निराश होकर आखिरकार असलम हुसैन शाह ने अपनी 7 कनाल जमीन 2 लाख में गिरवी रखकर शाहीन को जम्मू स्थित मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती करवाया। असलम हुसैन शाह के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था क्योंकि जमीन ही उनके परिवार के भरण पोषण का एकमात्र माध्यम था। लेकिन अपनी बच्ची की खातिर उन्हें यह सब मंजूर था।

इलाज कर रहे डॉक्टरों के अनुसार शाहीन के एक आंख की रौशनी पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और दूसरे की भी कुछ हद तक जा चुकी थी। असलम हुसैन शाह के अनुसार जम्मू के अस्पताल में भर्ती के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह और पुंछ के विधायक अजहर जान शाहीन को देखने अस्पताल भी आए। मगर वह भी सूखी हमदर्दी जताकर लौट आए। इस घटना को बीते लगभग 2 साल हो गए लेकिन इन बच्चों को मुआवज़ा देने संबंधी फाईल अबतक जिला अध्यक्ष, विधायक पुंछ, राज्य के मुख्यमंत्री और सोशल वेलफेयर ऑफिस के बीच किसी टेबल पर दबकर रह गई है। शासन प्रशासन से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलने के बावजूद असलम हुसैन ने हौसला नहीं खोया है। पिछले दो साल से लगातार वह शाहीन को हर महीने इलाज के लिए अमृतसर ले जाते हैं।

 

आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली शाहीन की हंसती खेलती जिंदगी में एक धमाके ने ग्रहण लगा दिया है। टीचर बनकर आने वाली पीढ़ी को रास्ता दिखाने का सपना देखने वाली शाहीन आज स्वंय देख पाने में लाचार है। अलबत्ता अपने आने वाले कल के अंधेरेपन और पिता की लाचारी और गरीबी से बेखबर शाहीन खेतों में इधर उधर रौशनी की तलाश में भटकती रहती है। दुश्म नों से देश के सरहदों की रक्षा के लिए बिछाए गए बारूदी सुरंग से सिर्फ शाहीन ही नहीं बल्कि इसके जैसे कई और लोग भी हैं। लेकिन शाहीन उन चंद लोगों की तरह किस्मत वाली नहीं है जिन्हें इस तरह के हादसों के शिकार होने के बाद सरकार की ओर से मुआवजा दिया गया है। हालांकि शाहीन के मामले में यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सेना द्वारा बिछाए गए बारूदी सुरंग की शिकार हुई है या सरहद पार से की गई गोलाबारी के कारण विकलांग हुई है। बहरहाल यह तो स्पष्टर है कि उसे सरहद के करीब रहने का खामियाज़ा चुकाना पड़ रहा है। लेकिन प्रश्नर उठता है कि ऐसे मामलों में होने वाले हादसे के शिकार के लिए क्या प्रावधान है? वक्त इस तरह के प्रश्नोंे का हल ढ़ूढ़ने का नहीं है बल्कि जरूरत इस बात की है कि किस प्रकार शाहीन के इलाज के लिए प्रशासन मदद करे ताकि उस मासूम की जिंदगी में भी सुनहरी सुबह आ सके। (चरखा फीचर्स)

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