कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आजकल गजब की बमबारी कर रहे हैं। कभी वे कहते हैं कि मुझे संसद में अगर बोलने दें तो भूकंप आ जाएगा और कभी वे कहते हैं कि मुझे नरेंद्र मोदी के ‘व्यक्तिगत भ्रष्टाचार’ की ‘विस्तृत जानकारी’ है। दिक्कत यही है कि उन्हें संसद में यह भांडाफोड़ नहीं करने दिया जा रहा है। यहां असली सवाल यह है कि वे अपने इस बम को सदन में ही क्यों फोड़ना चाहते हैं? सदन में हजार लफड़े हैं। वे एक पटाखा फोड़ेंगे तो जवाब में दर्जनों पटाखे एक साथ फूट पड़ेंगे? उनके कान फटने लगेंगे। बोफर्स से लेकर आगस्टा वेस्टलैंड तक इतनी तोपें और हेलिकाॅप्टर एक साथ उड़ने लगेंगे कि उनका भागना भी मुश्किल हो जाएगा। फिर भी वे सदन में बोलना चाहें तो उन्हें कौन रोक सकता है? वे नोटबंदी या नाकेबंदी या नसबंदी को भूल जाएं। अब वे मोदीबंदी शुरु करें। शुरु करके देखें। लेकिन ऐसा करने का दम-खम उनमें नहीं है।
यदि वे नोटबंदी के इस मौसम में मोदी का तंबू उखाड़ सकें तो उनके सारे मसखरेपन को देश भूल जाएगा और वे नेता बनना शुरु कर देंगे लेकिन दिक्कत यह है कि वे जिस ‘जानकारी’ पर उछल रहे हैं, वह बासी कढ़ी के अलावा कुछ नहीं है। कई पत्रकारों द्वारा खोले गए ‘रहस्यों’ को राहुल दुबारा फेंटने का दम भर रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी द्वारा सहारा समूह और बिरला समूह से करोड़ों की रिश्वत लेने की जानकारी राहुलजी पेश करेंगे। आयकर विभाग द्वारा जब्त की गई डायरियों में कई मुख्यमंत्रियों के नाम, उन्हें दी गई रिश्वत की राशि और देनेवालों के नाम भी लिखे पाए गए हैं। इसके पहले कि राहुलजी मोदी का गुब्बारा पंचर करें, सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल को पंचर कर दिया है। अदालत ने इसी मामले के याचिकाकर्त्ताओं को दो-टूक शब्दों में कहा है कि वे किसी की डायरी में कुछ भी लिखे को प्रमाण कैसे मान सकते हैं? इस तरह के गंभीर आरोप ऐसे लोगों पर लगाना, जो बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, अपने आप में गलत है।
अदालत के इस रवैए का अंदाज राहुल को है। राहुल को उनके सलाहकारों ने आगाह कर दिया होगा कि ये आरोप यदि आपने संसद के बाहर मोदी पर लगा दिया तो आप फंस जाएंगे। आप पर मानहानि का मुकदमा चल जाएगा। आप यही आरोप संसद में लगा देंगे तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा। राहुल इसीलिए दुम दबाए हुए हैं। वरना अपनी प्रेस कांफ्रेंस में वे भूकंप ला सकते थे। अन्य दलों के नेता भी राहुल के दब्बूपन पर हंसते रहे। इसमें शक नहीं कि कोई भी नेता दूध का धुला नहीं हो सकता लेकिन जो नेता खुद भ्रष्टाचार के पहाड़ पर बैठा हो, क्या उसमें इतना नैतिक बल हो सकता है कि वह दूसरों पर कंकड़-पत्थर उछाले?
मोदी जी के विरोध में कोई छाज बोले तो बोले लेकिन यहाँ एक पाठक छत्तीस सौ छेद की छलनी बने केवल कांग्रेस और आआपा में समन्वय का प्रमाण हैं| सचमुच दिल्ली वाले आकाश से गिरे और खजूर में अटके, लटके!
डॉक्टर वैदिक,इस आलेख में आपने जो लिखा है,कम से कम आपसे तो मैं यह उम्मीद नहीं करता था. आपने बहुत ही सतही तौर पर इसका विश्लेषण किया है.मैं नहीं समझता कि राहुल गाँधी या उनके सलाहकार ऐसे मूर्ख हैं,जो उस सबूत को संसद में पेश करेंगे,जिसे देश का हर जन पहले ही जानता है.हालाँकि उस सबूत को भी एक सिरे से अस्वीकार करके सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का सीधे गला घोंटा है. मैं मानता हूँ कि यह ठोस सबूत नहीं है,पर क्या यह पूछा नहीं जा सकता था कि उस आदमी ने अपनी डायरी में ऐसा क्यों लिखा है?
मैं बताता हूँ कि आखिर राहुल गाँधी म्याऊं बिल्ली क्यों बन गए.वे स्वयं या उनकी पार्टी क्या दूध की धुली है? वहां कचड़ा शायद भाजपा और नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा है.नरेंद्र मोदी का थिंक टैंक उनको तब तक संसद में बोलने से रोकना चाहता था,जब तक मोदी जी से उनकी एकबार मुलाक़ात न हो जाये,क्योंकि उनलोगों को पता था कि एक बार दोनों की आमने सामने वार्तालाप से उनको अपनी औकात मालूम हो जाएगी और तब उनके सब सबूत धरे रह जायेंगे. यह भी मालूम हो जायेगा अब सी.बी.आई.उनके हाथ की नहीं ,बल्कि नरेंद्र मोदी के हाथों की कठपुतली है. मैं यह तो यहाँ कहता हूँ कि राहुल क्या.अन्य विपक्षी दलों के लिए भी खुलकर मोदी जी का विरोध करना बहुत कठिन है,क्योंकि सबकी नश दबी हुई है.अब तो एक लॉली पॉप भी फेंका जा चूका है कि राजनैतिक दल पुराने नोटों में अभी भी चंदा लेकर जमा कर सकते हैं.उनसे कोई प्रश्न नहीं पूछा जायेगा.