भारत के समाचार पत्रों में एक समाचार पढ़ने में आया कि कश्मीर को मुक्त कराने आ रहा है जिहादी संगठन अलकायदा। इस आतंककारी संगठन ने भारत के साथ साथ दुनिया के मुसलमानों से अपील की है कि अब हथियार उठाने का समय आ गया है। हथियार उठाने का सीधा सीधा तात्पर्य यह है हिंसा फैलाओ और मारकाट करो, लेकिन सवाल यह आता है कि क्या हिंसा से शांति की तलाश की जा सकती है? दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि जब भारत में तथाकथित राजनेता इस बात की दुहाई देते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, तब अलकायदा द्वारा केवल मुसलमानों से ही अपील क्यों की गई है, वह भी समस्त विश्व के मुसलमानों से।
अलकायदा की यह भाषा एक प्रकार से युद्ध के लिए ललकारने वाली भाषा का प्रतिरूप ही लगती है। क्या अलकायदा वास्तव में विश्व में युद्ध की परिस्थितियां निर्मित करना चाहता है? हम जानते हैं कि आज पूरा विश्व इस्लाम के आतंक से परेशान है, यहां तक कि मुस्लिम देश भी। वर्तमान में मुस्लिम देशों में जिस प्रकार की मारकाट हो रही है, वह आपस की ही है। मुसलमानों में भी कई भेद हैं, कई वर्ग हैं, हर कोई अपने वर्ग के प्रति कट्टर है। यहां तक कि दूसरे वर्ग के मुसलमानों की जान लेने पर भी उतारू हो जाता है। आज ईराक और पाकिस्तान में भी इसी प्रकार का खूनी खेल खेला जा रहा है, प्रतिदिन हजारों निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं।
जब आतंक से आज तक किसी भी देश का भला नहीं हो सकता, तब अलकायदा क्यों इस प्रकार की स्थितियां उत्पन्न करना चाह रहा है। आज विश्व के अनेक देशों में मुसलमानों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। इस संदेह के कारण ही सीधा साधा और शांति प्रिय मुसलमान वर्तमान में परेशान हो रहा है, वास्तव में इस प्रकार के जिहादी संगठन ही आज मुसलमानों की दुर्दशा के कारण हैं, मुसलमानों को इस सत्य को स्वीकार करना ही चाहिए। हमारे भारत देश में भी कई जगह जो मुसलमान शक के दायरे में हैं, हो सकता है कि वे मुसलमान भारत के न हों, क्योंकि हम जानते हैं कि देश में आज पाकिस्तानी, बंगलादेशी, अफगानी और ईरानी मुसलमान भी निवास कर रहे हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो अपने देश से वीजा लेकर भारत आए और यहां आकर वह वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी रह रहे हैं, इतना ही नहीं आज उनकी पहचान करना भी मुश्किल हो रही है, क्योंकि वे कट्टरवादी, भारतीय मुसलमानों में समा गए हैं। सीधे शब्दों में कहा जाये तो यही कहना होगा कि उनको भारत में कट्टरवादी मुसलमानों ने ही आश्रय दिया है।
जहां तक भारत के मुसलमानों का सवाल है तो यही कहा जा सकता है कि भारत के मुसलमान मूलत: हिन्दू हैं। इनमें से कुछ मुसलमान इसलिए कट्टर हो गए हैं क्योंकि वे पाकिस्तान या बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के सम्पर्क में हैं, भारत का जो भी मुसलमान इन दोनों देशों से आया है, वह भारत के संस्कार नहीं समझ सकता। इसके विपरीत भारत का वास्तविक मुसलमान स्वभाव से हिन्दू होने के कारण आज भी शांति चाहता है।
क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर किया है कि आज अनेक मुस्लिम देश इस आतंक से परेशान हैं, अभी ईराक का उदाहरण हमारे सामने है, वहां मुसलमानों के तीन वर्ग आपस में ही मारकाट करने पर उतारू हैं। इसी प्रकार आज पाकिस्तान के हालात भी अच्छे नहीं कहे जा सकते, पाकिस्तान में भी आतंक फल फूल रहा है, रोज-रोज आतंकी हमलों की खबरें आ रही हैं। पाकिस्तान में महंगाई और भुखमरी से जनता परेशान है। वहां के शाषक केवल कट्टरवादिता को बढ़ावा देने वाले बयान देकर जनता को खुश रखने का प्रयास करते हैं, और जनता भी इसी प्रकार की भाषा सुनने की आदी हो चुकी है। पाकिस्तान के नेता ऐसा प्रचारित करते हैं कि भारत देश हमें खा जाएगा, इस प्रकार का डर पैदा करके ही पाकिस्तान में राजनीति की जा रही है, जबकि भारत देश हमेशा ही शांति का पक्षधर रहा है। इस बात को पाकिस्तान के नेता भी जानते हैं कि अगर भारत की वास्तविक छाया पाकिस्तान पर आ गई तो पाकिस्तान में शांति हो जाएगी और हमारी राजनीति बंद हो जाएगी।
हमारे यहां एक कहावत बहुत ही प्रचलित है, कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। वर्तमान में पाकिस्तान कुत्ते की दुम की तरह ही व्यवहार कर रहा है। लेकिन जब शेर सामने आता है तब कुत्ते की दुम या तो सीधी हो जाती है, या फिर कुत्ता दुम दबाकर भाग जाता है। आज अलकायदा की यह अपील और पाकिस्तान द्वारा युद्ध विराम का उल्लंघन दोनों ही एक दूसरे के पूरक दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि इन दोनों का ही यह सामूहिक अभियान है। कट्टरपंथी मुसलमानों को शायद इस बात का डर होगा कि भारत की नई सरकार कश्मीर से निकले गए हिंदुओं को पुन: बसाने की योजना बना रही है, जो प्रथम दृष्टया न्याय संगत भी है। कट्टरपंथी जानते हैं कि जब हिन्दू यहां रहने आ जाएंगे तब हम अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे, और फिर शायद कट्टरवादी मुसलमान भारत का विरोध भी न कर पाएं। इसी कारण से ही अलकायदा और पाकिस्तान ने इस प्रकार की कार्यवाहियां की हैं, लेकिन इस बार भी कट्टरता को हारना ही होगा, क्योंकि हम जानते हैं कि कट्टरता लोगों में तात्कालिक जुनून तो पैदा कर सकती है, परन्तु स्थायी सुख की कल्पना नहीं की जा सकती।
आज समस्त विश्व वैश्विक शांति के लिए प्रयास कर रहा है, वर्तमान समय में यह आवश्यक भी है और तथ्यपरक बात यह है कि विश्व शांति के जिस दर्शन की ओर दुनिया के लोग जाने का प्रयास कर रहे हैं, वह दर्शन भारतीयता में हैं। कहना तर्कसंगत ही होगा कि भारतीय दर्शन से ही शांति की स्थापना हो सकेगी।
mukhy kaaran hai kuraan ka ‘darul islam’ ka ahwaan jismein sare vishv ko talvaar ki nok par islamik parcham ke aadheen karna hai