दोस्तों 10 जून को प्रतिवर्ष विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है।हर व्यक्ति यह चाहता है कि ऐसा कुछ करे कि मृत्यु के बाद भी समाज उसे याद करे या फिर वह अमर हो जाये,लेकिन अमर होने के लिए कुछ असाधारण काम करने होते है। कौन कौन से है ये असाधारण काम??? ये है “नेत्रदान”, “रक्तदान”, “अंगदान”। ये असाधारण कार्य करके मृत्यु के बाद भी जीवित रहने का यह मौका हर व्यक्ति को मिलता है परन्तु कितने लोग इन असाधारण कार्यों को अंजाम दे पाते है बहुत कम लगभग न के बराबर। लेकिन अंतिम समय में व्यक्ति के मन में यह बात जरूर आती है कि काश, मैं भी कुछ असाधारण काम, कुछ अच्छे काम कर पाता/या कर पाती ताकि मेरा अगला जन्म सुधर जाता।
पलवल डोनर्स क्लब “ज्योतिपूंज” के मुख्य संयोजक आर्यवीर लायन विकास मित्तल का कहना है कि मृत्यु के पश्चात परिवार के लोग मृतक के शरीर को या तो अग्निदान या जमीनदान कर देते है परन्तु अग्निदान या जमीनदान से पहले अगर हम उस मृतक की आँखें उसकी इच्छा अनुसार किसी जीवित नेत्रहीन को दान करके उसके जीवन अंधकार दूर कर दे तो वह मृतक व्यक्ति की अपनी दान की हुई आँखो से इस दुनिया को देख सकता है। हम कह सकते कि वह व्यक्ति हमेशा के लिए हमारे बीच इस दुनिया मे जीवित रहेगा ।
मरने के बाद हमारी दोनों आंखें जो जलकर खाक हो जाती है वे ही आँखें यदि किसी व्यक्ति की जिंदगी में रोशनी भर सकती है तो यह दुनिया का सबसे फायदेमंद सौदा होगा। जीते जी तो हम लोगो अपने और अपने परिवार के लिए धन इकटठे करने मे लगे रहते है परन्तु मरने के बाद तो किसी के भी साथ कुछ भी नहीं जाता। ऐसे में जीतेजी नेत्रदान का संकल्प लेकर हम थोड़ा तो सुकून प्राप्त कर ही सकते है। क्या हुआ यदि हमारे पास मंदिरो में , मस्जिदो मे ,गुरुद्धारो मे, गिरजाघरो मे चढ़ाने के लिए धन दौलत नही है। लेकिन यदि हम मरणोपरांत नेत्रदान करते है तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हम ज्यादा पुण्य कमायेंगे।
भारतवर्ष में प्रति हजार शिशुओं मे 9 शिशु नेत्रहीन जन्मते है। और देश में प्रति वर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है। यदि इन 30 लाख लोगों में से सिर्फ एक प्रतिशत याने सिर्फ 30 हजार लोगों ने भी नेत्रदान किया तो हमें हमारे देश से अन्धता खत्म हो जायेगी।
वे कौन से कौन अन्धविश्वास है जो हमे नेत्रदान जैसा पुण्य काम करने से रोकते है। पहला अन्धविश्वास यह है कि ईश्वर ने हमें सम्पुर्ण अंगों के साथ पृथ्वी पर भेजा है तो हमें भी ईश्वर के पास सम्पुर्ण अंगों के साथ ही जाना चाहिए। मुझे एक बात समझ में नही आती कि क्या भगवान ने हमे सशरीर पृथ्वी पर भेजा था? क्या हम सशरीर भगवान के पास जा पाएंगे, नही न? तो फिर हम इस मिट्टी मोल शरीर का सदुपयोग क्यों नही करते? दुसरा अन्धविश्वास यह है कि यदि हमने इस जन्म में अपने नेत्रदान किये तो अगले जन्म में हम अन्धे पैदा होंगे। अब तो हद हो गई !! हमारे चारों वेद, सभी शास्त्र, बाइबल, कुरान यही कहते है कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है। तो फिर यह नियम यहां क्यों लागु नही होता? भगवान की अदालत में कोई भ्रष्टाचार नही है। वहां कोई अंधेर नही है। फिर नेत्रदान के बदले में ईश्वर हमें नेत्रहीन क्यों पैदा करेंगे ? यदि हम मानते है कि भगवान है तो हमें भगवान के न्याय पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए देर मत कीजिएगा। आज ही नेत्रदान का संकल्प लीजिए। श्री वैश्य अग्रवाल सभा पलवल की महिला अध्यक्षा अल्पना मित्तल का कहना है कि नेत्रदान का सिर्फ संकल्प लेने से काम नही बनेगा। क्योंकि आंकड़े बताते है कि जितने लोग नेत्रदान का संकल्प लेते है उनमेंसे वास्तव में बहुत ही कम लोगों की आंखे काम आ पाती है। क्योंकि उन्होंने इसकी जानकारी अपने परिवार को नहीं दी थी। आर्यवीर लायन विकास मित्तल और उनकी पत्नी वीरा अल्पना मित्तल पिछले तीन वर्षों में न केवल पलवल बल्कि एन सी आर से भी विभिन्न संस्थाओं की मदद सें 50 नेत्रदान करवा चुके है।
नेत्रदान की शपथ कौन ले सकता है??
किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति चाहे वह पुरुष है या स्त्री, गरीब है या अमीर, किसी भी धर्म या जाति का हो, नेत्रदान की शपथ ले सकता है। जो व्यक्ति :
*डायबिटीज ( सुगर) या हाई ब्लड प्रेशर से पीडित हो,
*चश्मे या कान्टेक्ट लैंस पहनते हो,
*जिन लोगों की कैरेक्ट की सर्जरी हो चुकी हो, वे भी अपने नेत्रदान करने की शपथ ले सकते है।
* अगर कोई व्यक्ति मृत्यु पूर्व एच आई वी पोजिटिव, हेपेटाइटस बी या सी, ब्लड कैंसर, सैप्टीसिमिया से पीडित हो या 48 से 72 घंटे वैन्टीलेटर पर हो तो उनकी आँखें दान नही की जस सकती है।
क्या नेत्रदान करने कोई खर्चा भी करना पडता है????
नेत्रदान करने वाले व्यक्ति के परिवार से कोई फीस नही ली जाती । नेत्रदाता की मृत्यु के पश्चात् नेत्रबैंक उसके घर एक डाक्टर भेजेगा। जनहित में यह एक निशुल्क सेवा है। दान की गई आँखें कभी भी खरीदी या बेची नही जातीं। दान की गई आँखों का उपयोग नेत्रबैंक के नेत्र सर्जन द्धारा उचित तरीके से नेत्रहीन मनुष्यों को नेत्रज्योति प्रदान करने के लिए किया जाता है।
क्या नेत्रदान घर पर हो सकता हैं????
घर या अस्पताल जहां भी मृतक का शरीर रखा हो, वही से नेत्रदान कराया जा सकता है।
मृत्यु के पश्चात् कब तक नेत्रदान हो जाना चाहिए ????
मृत्यु के पश्चात् जल्द से जल्द लगभग 4 से 6 घंटे के अन्दर नेत्रदान करवा देना चाहिए ।
अगर आप किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय वहाँ या आस पास मौजूद है तो परिवार के लोगों को नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित कीजिए । अगर आप मृतक के परिवार के सदस्यों को मनाने के लिए तैयार हो जाते है तो तुरन्त अपने नजदीक के नेत्र बैंक या नेत्रदान मे संलग्न किसी भी समाजिक संस्था को संपर्क करे।
नेत्रबैंक से संपर्क करने के बाद :-
*मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र तुरन्त प्राप्त करे।
* जिस कमरे मे मृतक का शरीर रखा हो उस कमरे के पंख को बन्द कर दें और अगर उस कमरे मे ए.सी. लगा हो उसको चालू कर दें।
* मृतक की बंद पलक पर भीगी हुई रूई या कपडा रख दें। यह नेत्र गोली को नम रखने मे मदद करेगा।
* मृतक के सर को तकिये के सहारे उठाएँ।
* नेत्र बैंक की टीम के आने के बाद कृपया इस बात का ध्यान रखे कि एड्स , हेपेटाइटिस आदि की जांच के लिए नेत्रदाता का रक्त नमूना ले लिया गया है।
नेत्रदान और रक्तदान के लिए सम्पर्क करे:-
आर्यवीर लायन विकास मित्तल
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