अयोध्या : कांगे्रसी नेता का अडंगा क्यों?


सुरेश हिन्दुस्थानी
हमेशा विवादित प्रकरणों की पैरवी करने के लिए अग्रसर रहने वाले कांगे्रस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की भूमिका आज ऐसे नेता की होती जा रही है, जिसको न अपनी वरिष्ठता की चिंता है और न ही अपनी पार्टी की नैतिकता की। राम जन्म भूमि मामले में उनकी भूमिका को जहां सुन्नी वक्फ बोर्ड ने असंवैधानिक बताया है, वहीं स्वयं उनके राजनीतिक दल कांगे्रस ने भी उनसे किनारा कर लिया है। वैसे कांगे्रस राजनीति में ऐसे कई बार अवसर आए हैं, जब कांगे्रस ने उनके बयानों से असहमति जताई है। असहमति जताने का यह खेल वास्तव में जनता को गुमराह करने जैसा ही दिखाई देता है। कांगे्रस के कुछ काम ऐसे भी रहे हैं, जिस पर जनविरोध के चलते अपने कदम पीछे खींचे हैं।
अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मामले को कांगे्रस ने हमेशा से ही उलझाए रखने की भूमिका का प्रतिपादन किया है। जबकि देश का हर नागरिक अब राम जन्म भूमि पर मंदिर बनने का सपना देख रहा है। अब यह कोई नहीं चाहता कि अयोध्या का हल नहीं निकले। लेकिन कांगे्रस की भूमिका को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं। कांगे्रस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांगे्रसी मानसिकता को उजागर करते हुए अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर अब जुलाई 2019 के बाद सुनवाई हो, वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह तो वही जानें, लेकिन यह भी हो सकता है कि कांगे्रस राम मंदिर बनाए जाने के मामले को चुनाव में मुद्दा बनाए। क्योंकि यह भी हो सकता है कि कांगे्रस की ओर से लोकसभा के चुनाव प्रचार में यह कहा जाए कि केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के बाद भी अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन सका। यहां सिब्बल के बयान से यह आशय जरुर निकलता है कांगे्रस ने लम्बे समय से राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है। एक ऐसी राजनीति जिसने राम मंदिर मुद्दे को उलझाने का काम किया। हम सभी जानते हैं कि इस देश में सभी की भावनाएं हैं, लेकिन कांगे्रस ने हमेशा वोट बैंक की राजनीति करते हुए केवल तुष्टिकरण का ही सहारा लिया। वास्तव में तुष्टिकरण के कारण ही आज कांगे्रस वर्तमान हालत में पहुंची है। कांगे्रस भी इस सत्य को भली भांति समझ चुकी है, तभी तो गुजरात के विधानसभा चुनाव में उसके नेता मंदिरों की ओर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि कांगे्रस की काम करने की जैसी शैली रही है, उसके बारे में पूरा देश जानता है।
हम यह भी जानते हैं कि देश के कई हिन्दू घरों के पूजा घरों में विराजित भगवान श्रीराम के नाम पर कांगे्रस द्वारा राजनीति करना बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का सीधा अपमान ही कहा जाएगा। कांगे्रस ने एक शपथ पत्र के आधार पर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया था। इस शपथ पत्र में कांगे्रस की ओर से कहा गया था कि भगवान राम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, यह केवल कोरी कल्पना ही है। ऐसी भावना रखने वाली कांगे्रस भगवान राम के अस्तित्व को नकार कर क्या सिद्ध करना चाहती थी। ऐसे में सवाल यह भी है कि कांगे्रस नेता कपिल सिब्बल ऐसा किसके संकेत पर कर रहे हैं। कहीं यह संकेत कांगे्रस आलाकमान से तो नहीं मिल रहा। अगर मिल रहा है तो यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। यही नहीं कांगे्रस की भूमिका की बात की जाए तो यही सामने आता है कि उसने कई मुद्दों पर तुष्टिकरण की राजनीति की है। देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली कांगे्रस पार्टी ने केवल मुसलमानों को खुश करने का ही काम किया है। चाहे वह राम मंदिर का मामला हो या फिर आतंकवादियों की तरफदारी करने का मामला हो, हर जगह कांगे्रस की ओर से लचीला बयान ही आया है। अभी हाल ही में कांगे्रस नेता कपिल सिब्बल की ओर से मुसलमानों को खुश करने के लिए अयोध्या मामले में पैरवी की थी, लेकिन उनका पासा उस समय उलटा पड़ गया, जब मुसलमानों की ओर से कहा गया कि कपिल सिब्बल उनके पक्षकार नहीं हैं। फिर सवाल आता है कि कपिल सिब्बल जब मुसलमानों की ओर से वकील नहीं थे तो क्या कांगे्रस की ओर से थे, यहां सवाल यह भी है कि क्या कांगे्रस राम मंदिर के विरोध में है। अगर कांगे्रस भगवान राम के विरोध में है तो कांगे्रस नेता राहुल गांधी द्वारा मंदिरों में जाने का औचित्य क्या है। क्या यह केवल वोट की राजनीति है। ऐसी बातों से यही प्रमाणित होता है कि कांगे्रस नेताओं का मंदिर जाना महज एक दिखावा है। असल में तो वह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ही कर रही है। हालांकि कपिल सिब्बल के बयान को लेकर जब कांगे्रस का विरोध होने लगा तब कांगे्रस ने अपने आपको कपिल सिब्बल के बयान से दूरी बना ली। कांगे्रस का दूरी बनाना भी एक दिखावा ही है, क्योंकि वास्तव में कपिल सिब्बल ने अनुचित काम किया है तो उसे कांगे्रस से निकालने की कार्यवाही करना चाहिए नहीं तो यही समझा जाएगा कि कपिल सिब्बल जो कुछ भी कर रहे हैं, वह सब कांगे्रस के संकेत पर ही कर रहे हैं।
कपिल सिब्बल भले ही कांगे्रस के वकील न हों और न ही सुन्नी वक्फ बोर्ड के पैरवी कर रहे हों, लेकिन इतना तो स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि वे राम मंदिर के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही यह भी दिखाई देता है कि वह एक प्रकार से बाबर के कृत्यों का समर्थन भी कर रहे हैं। वर्तमान में यह पूरा देश जानता है कि बाबर एक विदेशी आक्रमणकारी था, जिसने अयोध्या के राम मंदिर को तोड़ा था। यहां यह भी बताना बहुत आवश्यक है कि राम मंदिर के लिए उस समय भी हिन्दू समाज ने संघर्ष किया था, आज भी जारी है। आज यह समझ में नहीं आ रहा कि जिस कांगे्रस ने राम जन्म भूमि का ताला खुलवाया, उसके नेता उसके विरोध में क्यों हैं। अगर ऐसा है तो राजीव गांधी का ताला खुलवाने का काम भी इनकी नजर में गलत ही है। हम जानते हैं कि आज मुस्लिम समाज भी इस मामले का शीघ्र हल चाहता है फिर कांगे्रस क्यों अडंगा डाल रही है।

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