क्यों चौपट हो जाती है हमारे शहरों के वर्षा जल निकासी की व्यवस्था

राकेश कुमार आर्या

हमारे देश में मानसून के सक्रिय होते ही कई बड़े शहर पानी-पानी हो जाते हैं । आपको पता है ऐसा क्यों होता है ? यह हमारे आधुनिक इंजीनियरों, भवन निर्माताओं और शहरों को बसाने की योजना बनाने वाले अधिकारियों की गलत नीतियों के कारण होता है । आप जानते ही होंगे कि अब से 40 – 50 वर्ष पूर्व जितनी बारिश होती थी उतनी अब नहीं होती , पर तब हमारे शहरों में या कस्बों में इतना जलभराव नहीं होता था और ना ही लोगों को इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ता था । इसका कारण यह था कि हमारे पूर्वज अपने भवनों को ऊंचाई पर बस आते थे और यह सदा ध्यान रखते थे कि शहरों से निकलने वाली नालियां या नाले ऊंचाई से नीचे की ओर बहते रहें , क्योंकि ऊंचाई से ऊंचाई की ओर पानी का बहाव तेज होता है, उसे तेज प्रवाह से नालियों या नालो में जब पानी बहता था तो उनकी सफाई स्वयं ही हो जाती थी । उसके लिए आज कल की तरह नगरपालिकाएं अलग से नहीं होती थी और ना ही अपना बजट जारी करती थी । आजकल शहरों को बसाते समय भूमि के समतलीकरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है । सारे शहर को मेज की तरह समतल किया जाता है । सड़कें जमीन से ऊंची नहीं होती हैं । नालों को या नालियों को अंडर ग्राउंड बनाया जाता है, नालों का या नालियों का बहाव उस समतल भूमि पर बहुत कम ढलान वाला रखा जाता है , शहर की नगर पालिकाएं नालों में नालियों की सफाई के लिए धन आवंटित तो करती हैं , पर उसमें से अधिकांश धन भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी मिलकर चट कर जाते हैं । नाले व नालियों के समतल में बहने के कारण उसके उनके पानी का प्रवाह तेज नहीं होता । जिससे वह पानी को यथाशीघ्र बाहर नहीं ले जा पाते अंडर ग्राउंड होने से यह नाले-नालियां कई बार बंद भी हो जाते हैं या पानी अधिक होने से पानी को देर से बाहर निकालते हैं । अतः देर तक पानी नाले या नालियों में भरा रहता है या रुका हुआ दिखाई देता है । इसके अतिरिक्त आजकल शहरों की आबादी लाखों में या करोड़ों में है। जबकि पुराने समय में यह अवधि बहुत कम होती थी ।
अब आप अनुमान लगा ही गए होंगे कि हमारे पूर्वजों कि शहर या गांव बसाने की योजना आज के तथाकथित तकनीकी के युग की अपेक्षा कितनी अधिक सटीक , सार्थक , उपयोगी और प्रकृति के अनुकूल होती थी । वह नालियों को खुला रखते थे तो यह आवश्यक शर्त थी कि आप नालियों में थूकेंगे भी नहीं । मुस्लिम और ब्रिटिश काल में नालियों में थूकना तो छोड़िए मल मूत्र व पशुओं की कटान का खून भी बहने लगा तो मनुष्य की इस मूर्खता को सुधारने की वजह नालियों को सीवर सिस्टम में परिवर्तित करने की मूर्खतापूर्ण सोच के साथ जोड़ दिया गया और आज हम उसी सोच को आगे बढ़ाते बढ़ाते यहां तक आ गए हैं कि एक-दो बारिश में ही सारा शहर पानी पानी हो जाता है । वास्तव में यह शहर पानी-पानी नहीं होते , यह हमारी आधुनिक तकनीक मनुष्य का बदलता व्यवहार उसकी बदलती जीवनशैली और शासन प्रशासन की भ्रष्ट व्यवस्था सब मिलकर पानी पानी होते हैं ।
अपने अतीत को समझो और विश्व गुरु भारत के निर्माण के लिए अपने पूर्वजों के इस ज्ञान के प्रचारक बनो।

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