छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के खिलाफ फौज के इस्तेमाल की बात मैंने कल लिखी थी लेकिन राज्य सरकार के पुलिस विभाग को भी कसना उतना ही जरूरी है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और सुकमा में इतने जवान मारे गए लेकिन जिम्मेदारी किसने ली? किसी ने भी नहीं। क्या प्रदेश के गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया। नहीं! केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों ने अपनी जान दे दी लेकिन केंद्र या प्रदेश के किसी भी मंत्री ने अपने आप इस्तीफा तक नहीं दिया।
इसका अर्थ क्या लगाया जाए? यहीं न कि जवानों की हत्या पर जबानी जमा-खर्च किया गया। वह निरर्थक है। ये जवान 60-70 किलोमीटर लंबी सड़क की रखवाली कर रहे थे। बिल्कुल वैसे ही अफगानिस्तान में दो सौ किलोमीटर की जरंज-दिलाराम सड़क पर ऐसे हादसे होते रहते थे लेकिन अमेरिकी फौजों ने वहां इतना तगड़ा इंतजाम किया था कि तालिबान और बाहरी राष्ट्रों की दखलंदाजी पटकनी खा गई।
सरकार को इस बात का ठीक-ठाक पता होना चाहिए कि नक्सलियों की सफलता का रहस्य क्या है? छत्तीसगढ़ में नक्सली इसलिए सफल हो जाते हैं कि एक तो उन्हें स्थानीय आदिवासियों का समर्थन मिल जाता है और दूसरा, हर हमले के दौरान वे निहत्थे आदिवासियों को आगे करके कवच की तरह इस्तेमाल करते हैं। तीसरा, उनके पास जवानों से छीने हुए बेहतरीन हथियार होते हैं। चौथा, उन्होंने जोर-जबरदस्ती करके पैसों का जखीरा इकट्ठा किया हुआ होता है। नोटबंदी का उन पर कोई असर नहीं हुआ।
इन नक्सलियों से निपटने का तात्कालिक तरीका तो फौज को भिड़ाना है ही, उसके अलावा उनकी जड़ों में मट्ठा पिलाने के लिए यह जरूरी है कि आदिवासियों के प्रति होने वाली सरकारी उपेक्षा और ज्यादतियां बंद हों। उनकी ज़मीन पर खदानें खोदने, जंगल काटने, उनके रोजमर्रा के जीवन में दखलंदाजी आदि पर नियंत्रण हो। नक्सलियों को कोई मौका नहीं दिया जाए कि वे आदिवासियों के असंतोष को भुना सकें और उसे हिंसक रुप दे सकें। यदि बातचीत के द्वारा नक्सलियों को सत्यपथ पर लाया जा सके तो बेहतर है वरना लातों के भूतों को बातों से मनाने से कहीं बेहतर कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाए।