यह न्यायिक आपातकाल क्यों?

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सी.एस. कर्णन को छह माह की सजा देकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विश्व-रेकार्ड कायम कर दिया है। इसके पहले जस्टिस कर्णन ने सर्वोच्च न्यायालय के आठ जजों को पांच-पांच साल की सजा और जुर्माना भी कर दिया था। वह उससे भी बड़ा रेकार्ड था। सर्वोच्च न्यायालय ने कर्णन की दीमागी जांच के भी आदेश दे दिए थे।

कर्णन की गिरफ्तारी तो हो ही जाएगी लेकिन मेरी समझ में नहीं आता है कि भारत की न्यायपालिका ने ये सब नौटंकी रचाकर अपनी इज्जत कैसे बढ़ाई है? जज बनने से पहले कर्णन भी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के कार्यकर्ता रहे हैं। उन्हें यदि नेतागीरी ही करनी थी और अपने साथी जजों के भ्रष्टाचार की पोल ही खोलनी थी तो वे इस्तीफा देकर मैदान में खम ठोकते। यदि कर्णन अनाप-शनाप आरोप लगाकर अपनी मर्यादा भंग कर रहे थे और अपनी छवि चौपट कर रहे थे तो सर्वोच्च न्यायालय ने सबसे अच्छा तरीका यह अपनाया था कि उनको घर बिठा दिया था। उनसे अदालत का सब काम-काज छीन लिया था लेकिन उन्हें अपनी अदालत में दिल्ली में पेश करवाना, उनकी दिमागी जांच करवाना और अब जेल भिजवाना यह सिद्ध करता है कि सर्वोच्च न्यायालय भी उन्हीं के स्तर पर उतर आया है।

पता नहीं, वह उनसे इतना डरा हुआ क्यों है? एक माह बाद वे सेवा-निवृत्त होने वाले थे। वे हो जाते। मामला खत्म होता लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आप को दलदल में फंसा लिया है। उसका यह आदेश तो बिल्कुल भी मानने लायक नहीं है कि अखबार और टीवी चैनल कर्णन का कोई भी बयान प्रकाशित न करें। कर्णन का न करें और उनका करें, यह क्या मजाक है? क्या यह न्यायिक आपात्काल नहीं है?

सारे पत्रकारों को चाहिए कि वे सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का दृढ़तापूर्वक उल्लंघन करें। इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए वरना सर्वोच्च न्यायालय पर सत्याग्रह किया जाए। कर्णन का यह कहना जितना अविवेकपूर्ण है कि दलित होने के कारण उनके साथ यह सब कुछ हो रहा है, उतना ही तर्कहीन यह कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय हर अवमानना करने वाले को दंडित करेगा, चाहे जज हो या कोई साधारण नागरिक ! यदि ऐसा है तो इन सब सर्वोच्च जजों को कौन जेल भेजेगा, जिन्होंने एक जज की अवमानना की है? हम जजों और जजों में फर्क क्यों करें?

 

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