तो क्या ऐसे बचेंगी बेटियां? 

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निर्मल रानी हमारे देश में नवरात्रि के दौरान व्रत तथा पूजा-पाठ आदि धर्म एवं भक्ति का ऐसा पावन दृश्य  देखने को मिलता है मानो इस देश से बड़े धर्मपरायण,सदाचारी तथा चरित्रवान लोग दुनिया के किसी दूसरे देश में रहते ही न हों। नेता,अभिनेता,अदालतें,सेना,पुलिस,मीडिया तथा धर्मगुरू आदि सभी महिलाओं के पक्ष में अपनी टिप्पणियां करते तथा महिलाओं के हितों व उनकी रक्षा की दुहाई देते सुनाई देते हैं। कन्या पूजन जैसी व्यवस्था तो हमारे देश ख़ासतौर पर हिंदू धर्म के अतिरिक्त और कहीं है ही नहीं। परंतु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि जिस प्रकार की घटनाएं हमारे ही देश में आए दिन होती रहती हैं और महिला अथवा कन्या को लेकर धरातल पर जो आचरण होता नज़र आता है उसे देखकर तो यही प्रतीत होता है कि भारतीय पुरुष समाज का एक बड़ा वर्ग कन्या पूजन अथवा देवी आराधना जैसी बातों की तो शायद फ़र्ज़ अदायगी ही करता है जबकि वास्तव में यह द्रोपती के चीर हरण की घटना से कहीं ज़्यादा प्रेरित व प्रभावित है। अन्यथा क्या कारण है कि नेता,अभिनेता,अदालतें,सेना,पुलिस,मीडिया,धर्मगुरू तथा खेल-कूद आदि लगभग सभी क्षेत्रों से महिलाओं के शोषण ख़ासतौर पर उनके शारीरिक शोषण की ख़बरें आती रहती हैं। उदाहरण के तौर पर ताज़ातरीन मामला उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से जुड़ा हुआ है। पिछले दिनों इस विधायक तथा इसके कुछ साथियों पर एक युवती ने सामूहिक बलात्कार करने का आरोप लगाया। युवती इस विधायक की शिकायत लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ स्थित निवास पर भी पहुंची। इस युवती ने वहां अपनी फ़रियाद सुनानी चाही तथा विधायक व उसके कथित बलात्कारी सहयोगियों की गिरफ्तारी  की मांग की। यहां तक कि युवती ने अपनी बेबसी दर्शाते हुए आत्मदाह करने तक का प्रयास किया। इस घटना के अगले ही दिन इसी युवती के पिता की जेल में रहस्यमयी ढंग से मौत हो गई। अपने पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी पीड़िता ने विधायक को ही आरोपी बताया है। उत्तर प्रदेश प्रशासन ने पीड़िता के पिता की कथित हत्या की साज़िश के आरोप में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के भाई अतुल सिंह व चार अन्य आरोपियों को गिर तार भी कर लिया है। केवल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर ही नहीं बल्कि अन्य राजनैतिक दलों के भी कई नेताओं पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं। गोया कानून के निर्माता तथा कानून के रखवाले तथा महिलाओं के हितों की बातें करने जैसा ढोंग रचने वाले लोग ही प्रायः महिलाओं के शारीरिक शोषण में शामिल पाए जाते हैं? 15 जुलाई 2004 की मणिपुर की उस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था जब राज्य की 12 महिलाओं ने नग्र होकर सेना के इंफ़ाल स्थित कांगला फ़ोर्ट के समक्ष पूर्ण नग्न  अवस्था में प्रदर्शन किया था। उन्होंने अपने हाथों में एक बैनर भी ले रखा था जिसपर लिखा था-‘इंडियन आर्मी रेप अस’। निश्चित रूप से भारतीय सेना देश की सीमाओं की सुरक्षा की बख़ूबी जिम्मेदारी निभाती है। यहां तक कि अनेक विकट परिस्थितियों में तथा प्राकृतिक विपदाओं के समय भी सेना देश के नागरिकों की जान व माल की हिफ़ाज़त के लिए हर समय तैयार रहती है। परंतु जब इसी समर्पित सेना का कोई सदस्य अथवा कुछ सदस्य महिलाओं के यौन शोषण अथवा बलात्कार जैसी घिनौनी हरकतों में संलिप्त पाए जाते हैं उस समय निश्चित रूप से पूरी सेना पर आक्षेप लगता है। ठीक उसी तरह जैसे राजनीति,मीडिया तथा न्यायपालिका जैसे जिम्मेदार  लोकतांत्रिक स्तंभों को चंद कुकर्मी,दुष्कर्मी तथा भ्रष्टाचारी लोगों ने बदनाम कर रखा है। बावजूद इसके कि हमारे देश की न्यायपालिका पर अभी तक महिलाओं के शारीरिक शोषण या बलात्कार जैसे विषय को लेकर कम से कम आरोप लगे हैं। परंतु यह भी कहना सच है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए के गांगूली पर उन्हीं की एक सहयोगी महिला द्वारा उनपर लगाए गए शारीरिक शोषण के आरोपों ने न्यायपालिका की साख पर भी धब्बा लगा दिया। पिछले दिनों हैदराबाद की एक घटना ने तो रोंगटे ही खड़े कर दिए। तेलगू फ़िल्म अभिनेत्री श्रीरेड्डी मल्लिडी ने तो हैदराबाद के फ़िल्म सिटी में मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन के समक्ष अपने पूरे कपड़े उतार कर स्वयं को पूर्ण नग्र खड़ा कर दिया। इस अभिनेत्री ने साफ़तौर पर यह आरोप लगाया कि फ़िल्मी दुनिया के लोग ही मुझसे मेरी नंगी तस्वीरें व नंगी वीडियो बनाकर भेजने के लिए कहते हैं। ऐसे में मैं सार्वजनिक तौर पर ही अपने कपड़े क्यों न उतार फेंकूं। इस अभिनेत्री ने फ़िल्म उद्योग में पुरुष समाज के यौन शोषण तथा इस व्यवस्था को संरक्षण दिए जाने से दुःखी होकर कहा कि अपनी लड़ाई में मैं बेसहारा हूं क्योंकि मेरा दर्द किसी को दिखाई नहीं दे रहा है जिसकी वजह से मुझे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा और मैंने सार्वजनिक तौर पर कपड़े उतारे। उसने कहा कि अपनी बात सुनाने व सरकार से अपनी मांगों पर जवाब लेने हेतु उसके पास यही एक रास्ता शेष बचा था। अभिनेत्री श्री रेड्डी फ़िल्म उद्योग में यौन शोषण का शिकार होने वाली अथवा इस व्यवस्था से तंग आने वाली कोई पहली महिला नहीं है। फ़िल्म जगत में अनेक महिलाएं प्रत्येक सकारातमक अथवा नकारात्मक परिस्थितियों से अपने ‘कैरियर’ के मद्देनज़र समझौता कर लेती हैं। बेशक अधिकांश अभिनेत्रियां अथवा युवतियां श्री रेड्डी की तरह अपना विरोध इस स्तर पर जाकर दर्ज नहीं करातीं। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि फ़िल्म उद्योग में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है। फ़िल्मों में काम करने या काम तलाशने वाली अनेक युवतियां यह कहते सुनाई देती हैं कि-‘फ़िल्म जगत में आमतौर पर अभिनेत्रियों से यह सवाल किया जाता है कि-‘यदि हम आपको फ़िल्मों में काम करने का अवसर देंगे तो इसके बदले में हमें क्या मिलेगा’?ज़ाहिर है जब हमारे देश के धर्मगुरू,राजनेता,फ़िल्म जगत,न्यायपालिका,मीडिया जैसे जिम्मेदार  व्यवस्था के लोग ही महिलाओं के  सम्मान  व रक्षा के लिए प्रतिबद्ध नहीं फिर आख़िर हमारे देश में कैसे बचेंगी बेटियां?

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