माँ के बिना सब शून्य

डा. राधेश्याम द्विवेदी
जिसे कोई उपमा न दी जा सके उसका नाम है ‘माँ’। जिसकी कोई सीमा नहीं उसका नाम है ‘माँ’। जिसके प्रेम को कभी पतझड़ स्पर्श न करे उसका नाम है ‘माँ’। ऐसी तीन माँ हैं —1. परमात्मा , 2. महात्मा और 3. माँ। हे जीव, प्रभु को पाने की पहली सीढ़ी ‘माँ’ है। जो तलहटी की अवमानना करे वो शिखर को प्राप्त करे यह शक्य नहीं। ऐसी माँ की अवमानना कर दिल दुखाकर हम मोक्ष पा सकें यह शक्य नहीं । श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है । यही माँ शब्द की शक्ति को दशार्ता है, वह माँ ही होती है जो पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। जन्म देने के बाद भी माँ के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।
‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। गीता में कहा गया है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बड़ी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है। जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं।यदि तूने मां के प्रति सम्मान नहीं किया तो जिन्दगी में कभी भी सुखी नहीं रहेगा। यह शाश्वत सत्य है।
पहले आँसू आते थे, और तू याद आती थी।
आज तू याद आती है, और आँसू आते हैं।।
ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं
जहाँ में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं
तूने जब धरती पर, पहला श्वाँस लिया
तब तेरे माता—पिता तेरे पास थे,
माता—पिता अंतिम श्वाँस लें, तब तू उनके पास क्यों नहीं रहा .
जब छोटा था तब, माँ की शय्या गीली रखता था,
अब बड़ा हुआ तो,माँ की आँखे गीली रखता है।
माँ — बाप को सोने से न मढ़ो, चलेगा।
हीरे से न जड़ो, तो चलेगा।
पर, उसका जिगर जले
और अंतर आँसू बहाये, वो कैसे चलेगा ?
घुटघुट कर जीयेगा। तू घुटघुट कर जीयेगा।
आज तू जो कुछ भी है, वो ‘माँ- की बदौलत है
क्योंकि उसने तुझे जन्म दिया।
पत्नी पसंद से मिल सकती है,
माँ पुण्य से ही मिलती है।
पसंद से मिलने वाली के लिये,
पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकराना।
जिस माता ने जनम दिया है,
उस माता को भूल गया
जिस माता ने बड़ा किया है,
उस माता से रूठ गया
याद करो उस बचपन को,
उसने ही तुझको पाला था,
जिस माता ने गीले से
सूखे में तुझे सुलाया था,
जब जब था मलमूत्र में,
तब तब उस माता ने धोया था,
नफरत कभी भी उसने न की थी,
तेरी खुशी में वो हरदम हँसी थी,
फिर भी उनको भूल गया तू,
अपनी ही माँ से रूठ गया तू
उस माता की मेहनत को,
तू कभी भी भूल ना पायेगा,
जो माँ की ना सुनेगा, घुटघुट कर जीयेगा।.
कपूत जिसे माँ की परवाह नहीं है,
नरक में भी उसके लिये जगह नहीं है
माँ का अनादर न माफ करेगा,
माँ का आशीष जो पायेगा
वो सीधा स्वर्ग में जायेगा…
जो माँ की ना सुनेगा.. घुटघुट कर जीयेगा।
बेटे की शादी होते ही
माता को भूल जाता है,
घर वाली की बातें सुनकर
माँ से अलग हो जाता है
बहू सास को परेशान करेगी,
मगर बहू भी एक दिन सास बनेगी
जहर को घोला जो तो जहर ही मिलेगा,
कांटों को बोया तो कांटे ही पायेगा,
दुनिया में सब कुछ मिलेगा,
मिले न ममता मात की. जो माँ की ना सुनेगा. घुटघुट कर जीयेगा। तू घुटघुट कर जीयेगा।.
जो बबूल को बोयेगा,
वो आम कहां से खायेगा. जो माँ की ना सुनेगा, घुटघुट कर जीयेगा।.
तू घुटघुट कर जीयेगा। तू घुटघुट कर जीयेगा।.
एक बेटा अपने बेटे को भेंट में गाड़ी देता है
वो ही बेटा मात—पिता को थाली तक नहीं देता है
फिर भी वो माता कभी खफा नहीं होती,
जुबां से कभी बद्दुआ नहीं देती
माता तो तेरी ममता की ज्योति,
माता के आंसू हैं सच्चे मोती
उनके दिल को ठेस लगा के,
बेटा संभल न पायेगा. जो माँ की ना सुनेगा..
तू घुटघुट कर जीयेगा। तू घुटघुट कर जीयेगा।.
अपने ही स्वार्थों के खातिर
माता को क्यों भूल गया..
जो माँ की ना सुनेगा.
घुटघुट कर जीयेगा। घुटघुट कर जीयेगा।.
चाहे पूजा पाठ करो और
व्याख्यान सुन लो तुम भाई
चाहे कितना धरम करो
व्यर्थ है जो माँ की ममता ना पाई
माता ने बेटे को जनम दिया,
बाप ने बेटे का सब कुछ किया,
तूने उसका क्या बदला दिया,
किसके भरोसे छोड़ दिया।
माता—पिता को दु:ख देके,
कहां से तू सुख पायेगा, तू घुटघुट कर जीयेगा।

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