बिना पन्हैंयां-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

बिना पन्हैंयां तपी धूप में, कैसे चल पायें|

चलो नीम के नीचे बैठें ,थोड़ा सुस्तायें||

 

दौड़ भाग में टूटे जूते, कहीं छोड़ आये|

हार गये पापा से कहकर, नये नहीं लाये||

 

अम्मा ने की नहीं सिफारिश ,दादाजी चुपचाप|

जूते नहीं लायेंगे पापा ,बिना कहे ही आप||

 

चलो आज इसकी खातिर, दादी को उकसायें

चलो नीम के नीचे बैठें ,थोड़ा सुस्तायें||

 

जूतों के बिन एक कदम भी ,चला नहीं जाता|

इस पर भी मम्मी पापा को ,तरस नहीं आता||

 

बड़ी बहन ने मुझको ही ,पल पल में डांटा है|

मेरा हुआ गरीबी में ही, गीला आटा है||

 

माफी मांग मांग पापा से, उनको समझायें|

चलो नीम के नीचे बैठें, थोड़ा सुस्तायें||

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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