“मनुष्य को बुरा नहीं सोचना चाहिये तथा सभी बुराईयों की जड़ बुरे विचार ही हैं : वीरेन्द्र शास्त्री”

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मनमोहन कुमार आर्य,

आर्यसमाज लक्ष्मण चौक, देहरादून के तीन दिवसीय 52 वें विर्षकोत्सव के प्रथम दिन दिनांक 12-10-2018 को अपरान्ह सत्र 3.30 बजे से सायं 6.30 बजे तक हुआ। आरम्भ में ऋग्वेद आंशिक पारायण यज्ञ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा पं. वीरेन्द्र शास्त्री द्वय थे। यज्ञ में मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों श्री विनीत आर्य तथा श्री वेदप्रिय आर्य ने किया। यज्ञ के बाद युवा सम्मेलन हुआ जिसमें अमरेश आर्य जी के कई भजनों सहित अनेक विद्वानों के सम्बोधन हुए। हम विद्वानों के प्रवचन तथा भजनों का उल्लेख आपकी जानकारी एवं ज्ञानवर्धन के लिये कर रहे हैं। मुख्य सम्बोधन पं. वीरेन्द्र शास्त्री, सरसावा का हुआ। उन्होंने अपने वक्तव्य का आरम्भ करते हुए कहा कि मनुष्य को बुरा नहीं सोचना चाहिये। सभी बुराईयों की जड़ बुरे विचार ही हैं। मनुष्य के अपने भीतर जो बुरे विचार आते हैं वह उसमें तनाव उत्पन्न करते हैं। अच्छे विचारों के लिए अच्छा आहार प्रथम आवश्यकता है। हमारा आहार बिगड़ा हुआ है। आहार शुद्ध होगा तो विचार व काम शुद्ध होंगे। जिस मनुष्य का आहार सात्विक होता है उसका व्यवहार भी सात्विक होता है। वातावरण बदलने पर आहार में भी परिवर्तन आ जाता है। आचार्य जी ने आहार की विस्तार से चर्चा की। आजकल देश, समाज व युवा पीढ़ी में बरगर एवं चाउमीन जैसे विदेशी खाद्य पदार्थों का सेवन तेज गति से बढ़ रहा है। यह भोजन हमारे वातावरण के अनुसार हमारे लिये हितकर नहीं है। उन्होंने कहा कि घर पर माता, पत्नी या बहिन-बेटी आदि के हाथ से बनाये भोजन में जो बात व हितकारी गुण हैं वह किसी होटल व अन्यत्र किये जाने वाले भोजन में नहीं है।

 

आर्य विद्वान पं. वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि हमारे देश में बिगाड़ आहार के बिगड़ने से होता है। आहार बिगड़ने से रोग पैदा होते हैं। उन्होंने कहा कि तनाव वहां होता जहां योग, ध्यान व स्वाध्याय आदि नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि टैन्शन का कारण ऐडीटेशन न करना है। आदमी बोर तब होता है जब दिल व दिमाग पर जोर होता है। विद्वान वक्ता ने वैदिक ग्रन्थों का स्वाध्याय न करने की आलोचना की। पं. वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि युधिष्ठिर आदि कुछ ऐतिहासिक पुरुषों ने मर्यादा तोड़ी तो उनके जीवन में बड़ा संकट आया है। उन्होंने कहा कि रामचन्द्र जी के मृग के पीछे जाने तथा युधिष्ठिर के जुआ खेलने के कारण उनके जीवन व देश पर संकट आया था। शास्त्रों में विधान है कि राजाओं को आठ प्रकार के दोषों का त्याग करना चाहिये जिसमें शिकार करना व जुआ खेलना सम्मिलित है। वेद के एक आदेश का उल्लंघन करने से युधिष्ठिर व उनके परिवार में विपत्ति आई। युधिष्ठिर जी के जुआ खेलने के कारण मर्यादा का उल्लंघन हुआ। उन्होंने कहा कि वेद के आदेशों का पालन नहीं होगा तो आप बच नहीं सकते। परिवार के सभी सदस्यों के यदि विचार व भावनाओं में समानता नहीं होगी तो घर परिवार में शान्ति नहीं आ सकती। उन्होंने कहा कि आजकल स्थान-स्थान पर वृद्धाश्रम बन रहे हैं। हमारी परम्परा में वानप्रस्थ आश्रम का तो विधान है परन्तु वृद्धाश्रमों की हमारे यहां परम्परा नहीं है। वृद्धाश्रम का अर्थ है कि युवा दम्पत्तियों द्वारा अपने-अपने माता-पिता आदि वृद्धों का उचित आदर-सत्कार नहीं किया जाता। यदि आर्यसमाज वृद्धाश्रम खोलता है तो यह उचित नहीं है। हमें वानप्रस्थ आश्रम स्थापित करने चाहिये वृद्धाश्रम नहीं। वैदिक विद्वान वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि यदि आप परिवार सहित आर्यसमाज के सत्संगों व उत्सवों में नहीं जाओगे तो परिवार के सदस्यों के आपसी मधुर सम्बन्ध नहीं बनेंगे। जिस परिवार व समाज में एक विचार के व्यक्ति होते हैं वहां सुख व शान्ति होती है। आचार्य वीरेन्द्र जी ने लोगों को वेद मार्ग पर चलने की सलाह दी।

 

जिला सहारनपुर के ही दूसरे विद्वान पं. वीरेन्द्र शास्त्री जी ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में कहा कि देश व विश्व में जितनी भी समस्यायें हैं वह सब मनुष्यों ने उत्पन्न की हैं। अन्य प्राणियों ने कोई समस्या उत्पन्न नहीं की। उन्होंने पर्यावरण, आतंकवाद तथा चरित्रहीनता आदि प्रमुख समस्याओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि दुनियां के विद्वान इन समस्याओं की चर्चा करते हैं। सब अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार समाधान भी बताते हैं। मनीषियों ने भी इन समस्याओं का चिन्तन किया है। उन्होंने कहा कि समय के साथ समस्याओं के बढ़ने की सम्भावना है। इन समस्याओं से मनुष्य समाज त्रस्त हैं। श्री वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि संसार आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा चरित्रहीनता की समस्याओं से लड़ने के लिये खड़ा है। संसद में इन समस्याओं की चर्चा होती है। देश में आन्दोलन होते हैं। आतंकवाद को पालने वाले पाकिस्तान एवं अमेरिका आदि देश भी यदा-कदा इन समस्याओं से पीड़ित होते हैं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद से विश्व की अनेक सरकारें परेशान हैं।

 

विद्वान आचार्य ने कहा कि चरित्रहीनता का समाधान सरकारों के पास नहीं है। उन्होंने आकंड़ों से बताया कि सन् 2011 में देश में 32000 बलात्कार हुए। पिछले वर्ष इनकी संख्या में वृद्धि होकर यह संख्या 36000 पर पहुंच गई। बलात्कारों के बारे में जो तथ्य सामने आयें हैं उनसे ज्ञात होता है 50 प्रतिशत बलात्कारी पीड़िता के रिश्तेदार या पड़ोसी होते हैं। 1200 मामलों में परिवार के पिता व भाई दोषी पाये गये हैं। उन्होंने पूछा कि क्या इन अपराधियों के साथ पुलिस रखी जा सकती है? उन्होंने यह भी बताया कि सर्वाधिक दुष्ट कर्म करने वाले नशा करने वाले लोग हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि वेद में दिये गये समाधानों को लागू किये बिना इन समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता। श्री वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि विगत दिनों न्यायालय से दो कानून पास हुए हैं। अब समलैंगिकता को जायज माना गया है। इससे स्त्री व पुरुष बिना किसी भय के स्वतन्त्रतापूर्वक घूमेंगे और हमें आहत करेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने पाश्चात्य संस्कृति व जीवन शैली को भारत में लागू करने के लिये देश की आत्महत्या करने का प्रयत्न किया है। आचार्य जी ने वैदिक भारतीय संस्कृति की अनेक विशेषतायें बताईं। उन्होंने कहा कि आप वेद और भारतीय संस्कृति पर विचार कीजिये। हम अपनी श्रेष्ठतम संस्कृति को छोड़ते चले जा रहे हैं। हमारे संस्कार परिपक्व होंगे तो बच्चों का कल्याण होगा। उन्होंने कहा कि हमने चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर रहे युवाओं को सिगरेट पीते हुए देखा है। यह लोग कल डाक्टर बनेंगे तो किसे सिगरेट पीने से मना करेंगे। गावों में शराब के ठेके खुल गये हैं। उन्होंने पूछा कि गांव के बच्चे अब शराब के व्यस्न से कैंसे बच सकेंगे?

 

आचार्य जी ने मातृवत् परदारेषु की वैदिक परम्परा की चर्चा की। उन्होंने कहा कि यही सूत्र हमें चरित्रहीनता के पाप से बचा सकता है। इसी सूत्र को देश व समाज में लागू करके हम समाज से बलात्कार जैसी घृणित मानसिकता को दूर कर सकते हैं। यह सूत्र बताता है कि अपनी स्त्री के अतिरिक्त दूसरी सभी स्त्रियां हमारी बहिन व मातायें हैं। यही बलात्कार को रोकने का समाधान है। विद्वान् वक्ता ने कहा कि यदि सभी लोग दूसरी स्त्रियों को अपनी माता व बहिन मान लें, तो बलात्कार समाप्त हो सकता है। आचार्य जी ने कहा कि मर्यादाओं का पालन करने से राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाते हैं तथा मर्यादा तोड़ने के कारण रावण राक्षस कहलाता है। आचार्य जी ने लक्ष्मण का उदाहरण दिया और बताया कि राम लक्ष्मण सवांद में लक्ष्मण कहते हैं कि मैंने तो सीता माता के केवल पैर व उसमें पहली हुई पाजेब ही देखी है, अन्य आभूषणों की मुझे किंचित भी जानकारी नहीं है क्योंकि मैंने कभी उन पर दृष्टिपात नहीं किया।

 

श्री वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि जिस मनुष्य के जीवन में सत्यं वद् धर्म चर उतर जाता है वह उसी दिन वह शिक्षित हो जाता है। कई स्थितियों में निरक्षण मनुष्य भी शिक्षित होता है और साक्षर मनुष्य भी शिक्षित नहीं होता। विद्या मनुष्य को सांसारिक एवं पारलौकिक सुख देने वाली है। शिक्षा के आचरण में न आने के कारण ही देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। आचार्य जी ने कहा कि संस्कारों से जीवन पवित्र बनता है। उन्होंने शिवाजी व दुर्गादास के जीवन चरित्र पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जिस मनुष्य का चरित्र नष्ट हो जाता है उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है। विद्वान वक्ता ने आवश्यकता व इच्छा की चर्चा की। मनुष्य अपनी बढ़ी आवश्यकताओं और इच्छा पूर्ति के लिए पाप करता है। आवश्यकताओं को सीमित रखने की श्री वीरेन्द्र शास्त्री ने सलाह दी। इससे आपको सुख प्राप्त होगा। उन्होंने कहा की मकान के बड़े होने और दिल छोटा होने से मनुष्य की परेशानियां बढ़ी हैं। आचार्य जी ने यह सूत्र भी दिया कि पद की प्रतिष्ठा पद पर बैठने वाले के आचरण व कर्तव्य पालन से होती है। मनुष्य को संस्कार माता-पिता व अपने आचार्यों से ही प्राप्त होते हैं। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए श्री वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि ईश्वर करे हमारा देश मनु के श्लोक के अनुसार बने जिसमें उन्होंने कहा था कि संसार वा पृथिवी के सभी मनुष्य उच्च चरित्र की शिक्षा लेने के लिए भारत में ऋषियों के पास आते थे।

 

डा. नवदीप कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि पवित्रता के बिना यज्ञ का अन्य कोई अर्थ नहीं है। पवित्रता की आवश्यकता हमें हर पल अनुभव होती है। उन्होंने कहा कि अपवित्रता तब तक समाप्त नहीं होगी जब तक कि भारत की युवा पीढ़ी में पवित्र विचारों का बीजारोपण नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि अधिकांश युवा रात्रि 11 बजे से प्रातः 5 बजे तक इण्टरनैट पर व्यस्त रहते हैं। न्यायालय द्वारा अश्लीलता परोसने वाली 859 इण्टरनैट पतों को प्रतिबन्धित करने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे आचार्यों का कर्तव्य है कि वह बच्चों का निर्माण करें तथा उन्हें सदाचारी बनाये। वेद की ओर लौटने के नारे का उद्देश्य है कि हम बुराईयों से बचें व सत्य गुण, कर्म व स्वभाव को ग्रहण व धारण करें। उन्होंने कहा कि हम प्रतिदिन सन्ध्या करते हैं। सन्ध्या का एक मन्त्र है ओ३म् भूः पुनातु शिरसि जिसका अर्थ है कि मैं अपने सिर व विचारों को पवित्र करता हूं तथा ईश्वर इस कार्य में मेरा सहायक हो। हम अपनी अन्य इन्द्रियों को भी पवित्र करने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक सन्तान का निर्माण नहीं होगा राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। विद्वान् वक्ता ने कहा कि आजादी के बाद देश की सत्ता अच्छे लोगों के हाथों में आनी चाहिये थी। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका।

 

पं. वेदवसु शास्त्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि जिसका बचपन अच्छा उसकी जवानी अच्छी होती है। जिसकी जवानी अच्छी होती है उसका बुढ़ापा अच्छा होता है। जिसका बुढ़ापा अच्छा होता है उसकी मृत्यु अच्छी होती है और जिसकी मृत्यु अच्छी होती है उसका पुनर्जन्म अच्छा होता है। उन्होंने कहा कि मजबूत भवन के लिए मजबूत नींव की आवश्यकता होती है, इसी तरह अच्छे जीवन के लिय हमारी युवावस्था भी ब्रह्मचर्य के नियमों के पालन से युक्त होनी चाहिये। ब्रह्मचर्ययुक्त जीवन मनुष्य जीवन की सुदृण नींव के समान है। उन्होंने कहा कि समाज में विद्यालयों का निर्माण हमारे युवाओं को सुधारने के लिये किया जाना चाहिये। विद्यालय का उद्देश्य बच्चों को अच्छे संस्कार देना है। उन्होंने कहा कि वैदिक शिक्षा से ही हमारे देश के बच्चों का जीवन सुसज्जित हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि युवाओं के चरित्र निर्माण के लिये सभी आर्यों समाजों में आर्य वीर दल तथा आर्य कुमार सभाओं का गठन होना चाहिये। युवा सम्मेलन में स्थानीय मनमोहन कुमार आर्य ने भी अपने विचार रखे।

 

यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ प्रार्थना श्री अमरेश आर्य जी ने संगीतमय रुप में प्रस्तुत की। श्री अमरेश आर्य जी ने पहला भजन गाया जिसके बोल थे ‘सबके गुण और अपनी गलतियां हमेशा देखा करों।’ दूसरे भजन के बोल थे ‘डर है कि कहीं देश में बदनाम न हो जाये, ये भूमि, राम और श्याम कहीं बदनाम न हो जाये।’ अमरेश जी ने तीसरा भजन गाया ‘उठो दयानन्द के सिपाहियों समय पुकार रहा है देश द्रोह का विषधर फन फैला फुफ्कार रहा है।’ विद्वान आर्य भजनोपदेशक ने आज का अन्तिम भजन गाया उसके बोल थे ‘ये कैसा गजब है ये कैसा सितम है, आज बना ये इंसान ये कैसा बोले बोल पर चलती है गोली खिलती खून की होलियां।’ शान्ति पाठ से आज का सायंकालीन सत्संग समाप्त हुआ।

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