वो लड़की ,जो इतनी चुपचाप बैठी है
पर ना जानें कितनों में ,खुद को साथ लेकर बैठी है
उसके होने में एक अमिट छाप है
पर उसके होठों की हँसी
और आंखों की नमी की तरम्यता में कुछ हास् है
जैसे उसके लबों को आज भी हँसी की तलाश है
वो लड़की जो इतनी चुपचाप.………
उसके हाथ में एक कलम है
ना जानें वो कलम कैसी है
और ना जाने उस कलम का अलम कैसा है
शायद सूरज की उस रोशनी में वो
खुद का एक निगहबान रचना चाहती है
जैसे उन ठंडी हवाओं में
अपनी सांस को ढूंढना चाहती है
वो लड़की जो इतनी…….
पर ना जानें कितनों……..
सहसा एक सिकन सी उसके चहरे पर मंडराई है
मानो मन के भीतर ,फिर से कोई आफत आयी है
फेसबुक, ट्विटर ,सेल्फी ,व्हाट्सएप
ये कहाँ दर्शाते हैं उन स्थितियों को
जब बात भावनाओं की हो,तो
डी पी , की मुस्कुराहट भी कहाँ सुलझा पाती है ,उन संवेदनाओ को ।
अरे….. देखो कहाँ उठ चली है वो फिर से …
अंतर की लड़ाई में बाहर कदमों से भागे ।
हाँ शायद समझौता का तूफान लिए
अपने कदमों को नापे।
वो लड़की जो बैठी थी चुपचाप….
उठ चली है देखो फिर से आज ….
अनुप्रिया