विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रति वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाता है, जिसका उद्देश्य पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। इसी क्रम में सम्पूर्ण विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह (4-10 अक्टूबर) मना रहा है। पिछले कुछ दशकों से मानसिक स्वास्थ्य समाज के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। अभूतपूर्व वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के कारण लोग अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक आरामदायक और भोगविलासपूर्ण जीवन जी रहे हैं, लेकिन मानसिक शांति और संतुष्टि के बारे में भी ऐसा नहीं कहा जा सकता। दुनिया बंद आँखों के साथ शक्ति और संपत्ति के पीछे रात दिन अबाध गति से भाग रही है। विगठित परिवार, अपार्टमेंट संस्कृति, कमजोर धार्मिक आस्था और सामाजिक समर्थन प्रणाली, उपभोक्तावाद और भौतिकतावाद वर्तमान का यथार्थ है । परिणामस्वरूप, हम दुष्चिंता, कुंठा, तनाव, और अवसाद जैसे मानसिक विकारों के साथ जीने को विवश हैं। डब्ल्यूएचओ के एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में कुल रोग की स्थिति का लगभग 15 प्रतिशत मानसिक बीमार लोगों का है।
मानसिक स्वास्थ्य क्या है ?
सामान्यतः मानसिक बीमारी से मुक्त ब्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ समझा जाता है किन्तु मानसिक विशेषज्ञों के अनुसार ‘स्वस्थ’ होना केवल बीमारी की अनुपस्थिति मात्र ही नहीं है बल्कि उससे कुछ अधिक है। डब्ल्यूएचओ मानसिक स्वास्थ्य को ‘स्टेट आफ वेलबिइंग’ के रूप में परिभाषित करता है, जिसके अनुसार, स्वस्थ व्यक्ति को अपनी क्षमता का अहसास होता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक और फलदायी रूप से काम कर सकता है और अपने या अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम होता है । इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मानसिक कल्याण से संबंधित गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को संदर्भित करता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ्य ब्यक्ति उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही अपनी प्रेरणा, इच्छा, भाव, आकांक्षा आदि का भी पूर्ण ज्ञान रखता है। वह तटस्थ रूप से आत्म–मूल्यांकन कर सकता है । उसमें अपने तथा अपनों की सुरक्षा का भाव भी होता है । जहां उत्कृष्ट मानसिक स्वास्थ्य जीवन में समायोजन और संतुष्टि प्रदान करता है, वहीं मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर और जीवन को अस्त–ब्यस्त कर देती हैं। एक मानसिक बीमारी व्यक्ति के सोचने समझने और प्रतिक्रिया करने के तरीके को प्रभावित करती है । विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियों को सामान्य मानसिक बीमारी जैसे अवसाद, चिंता, भय, भोजन सम्बन्धित विकार, निद्रा विकृति, तनाव और गंभीर मानसिक बीमारी जैसे सिजोफ्रेनिया, डिल्यूजनल डिस्आर्डर में विभाजित किया जा सकता है । मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक विकारों के निर्धारकों में आनुवांशिकी, जैविक, और व्यक्तित्व कारकों के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय कारकों का भी योगदान होता है । मानसिक बीमारी के लक्षण उसके प्रकार और तीव्रता के अनुरूप भिन्न–भिन्न हो सकते हैं । मानसिक रोगों के कुछ सामान्य लक्षण निम्नवत हैं-
• अति नकारात्मक चिंतन
• ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
• निद्रा विकार
• ऊर्जा स्तर में गंभीर रूप से उतार-चढ़ाव
• अत्यधिक मात्रा में अकेले समय बिताना
• अनुचित और अनियंत्रित संवेदात्मक व्यवहार जैसे अत्यधिक क्रोध या उदासी
• विभ्रम
• गंभीर व्यामोह
• सामाजिक दूरी
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
उच्चस्तरीय दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन, योग और आयुर्वेद की धरा आज मानसिक रूप से अस्वस्थ ब्यक्तियों की संख्या के संदर्भ में भी अग्रणी है। कारण ढेरों हो सकते हैं किन्तु अपनी जडों से कटकर पाश्चात्य जीवन शैली का अंधानुकरण इसके प्रमुख कारणों मे से एक है। अन्यथा योग और आयुर्वेद द्वारा वर्णित दिनचर्या, जीवन शैली, खान–पान, आसन और ध्यान की विधियों में, उत्तम मानसिक स्वास्थ्य के सारे आवश्यक तत्व मौजूद हैं। अगर वर्तमान की बात करें तो हमारा देश मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एमएचपी, 1982) को अपनाने वाले विकासशील देशों में अग्रणी देश है, और हाल में ही भारत ने मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट – 2017 पास किया है जिसके तहत सभी सरकारी अस्पतालों में मानसिक तौर से बीमार लोगों को इलाज का अधिकार मिला है। इस एक्ट के अनुसार अब आत्महत्या की कोशिश को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
वास्तविकता में आज भी हम जागरूकता और पेशेवरों की कमी, मानसिक स्वास्थ्य मिथकों और वर्जनाओं से जूझ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में हल्के तनाव से लेकर गंभीर सिजोफ्रेनिया तक की मानसिक बीमारियों से प्रभावित सबसे बड़ी आबादी है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में कुल जनसंख्या का 7.5 प्रतिशत मानसिक रोगों से ग्रस्त है । मानसिक रोगियों की इतनी बडी सख्या के बावजूद भी भारत अपने स्वास्थ्य बजट का केवल .05 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य के लिए खर्च करता है जो कि आवश्कतानुरूप नहीं है ।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी प्रमुख समस्याएं

  1. अज्ञानताः- जागरूकता और ज्ञान की कमी भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा प्रमुख कारण है। अज्ञानतावश लोगों के मनोमस्तिष्क में तरह–तरह की भ्रान्तियां जडें जमाए हुए हैं। लोग मानसिक रोगियों के लिए ‘पागल‘ जैसे शब्दों का लापरवाही से इस्तेमाल करते हैं । मानसिक विकारों वाले व्यक्तियों पर अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणीयां की जाती हैं । अभी भी लोग इसे बीमारी के बजाय बुरे कर्म, दुर्भाग्य या किसी भूत–प्रेत के प्रभाव का परिणाम मानते हैं । ये बातें लोगों को खुलकर बोलने और चिकित्सा हेतु मदद मांगने के लिए हतोत्साहित करती हैं ।
  2. मानसिक कलंकः- मानसिक बीमारी से जुड़े स्व और सामाजिक भ्रांतियों के कारण लोग मानसिक समस्याओं के लिए मदद नहीं लेना चाहते हैं। लोग क्या कहेंगे’ की सोच भारतीय लोगों के मानस पर बहुत हावी है।
  3. प्रोफेशनल्स की कमीः- अगर मनोचिकित्सकों की संख्या की बात की जाय तो प्रति 100000 पर एक मनोचिकित्सक उपलब्ध है जो कि आवश्यकता से बहुत कम है । यही हाल मनोचिकित्सा से जुडे अन्य मनोवैज्ञानिकों और अन्य पेशेवरों की भी है ।
  4. फेक प्रोफेशनलः- मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की अनुपलब्धता के कारण इस क्षेत्र में नकली पेशेवर खूब फल फूल रहे हैं। अज्ञानतावश लोग उनसे मिलते हैं, उनकी सलाह लेते हैं, और परेशानियों के चंगुल में फंसते चले जाते हैं । ये फर्जी पेशेवर लोगों का आर्थिक, और मानसिक शोषण करते हैं और पीडित की स्थिति को बदतर बना देते हैं।
  5. मंहगा उपचारः- एक अच्छे अस्पताल में मानसिक बीमारी का उपचार, खर्चीला और समय लेने वाला होने के कारण आम लोगों की पहुंच से बाहर होता है।
    उपचारः- मानसिक बीमारी का उपचार दवा, मनोचिकित्सा, परामर्श और पर्याप्त पारिवारिक और सामाजिक समर्थन के मिश्रण से किया जा सकता है । इस तरह के विकारों की प्रारंभिक पहचान उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो न केवल मानसिक स्वास्थ्य विकारों के उपचार को बढ़ावा दें, बल्कि स्वास्थ्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न मुद्दों पर व्यापक दिशा निर्देश भी प्रदान करे।

डा. प्रदीप श्याम रंजन

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