क्या सचमुच ईश्वर/प्रभु/भगवान/अल्लाह की आराधना करने के लिए लाउडस्पीकर पर चिल्लाने की जरुरत होती हैं ??

मैं नास्तिक नही हूं लेकिन मेरा धर्म को लेकर किसी भी तरह की मॉब प्रैक्टिस (भीड़ में प्रार्थना) में भरोसा नहीं है।

सोनू निगम को ट्विटर पर ट्रेंड करते देख कर लगा कि शायद कोई नया म्यूजिक अलबम आया है। लेकिन जब चेक किया तो पता चला उन्होंने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। सोनू निगम ने उस मसले पर ट्वीट किया जिसे लेकर मैं बचपन से आजतक पशोपेश में पड़ा रहा हूं। घर के आसपास होने वाला भागवत पाठ हो या दिल्ली में रहने के बाद सुबह-सुबह कानों में पड़ने वाली गुरबानी, मेरे लिए यह सिर्फ डिस्टर्ब करने वाले ढकोसले ही रहे हैं। हालांकि इसकी वजह से मैं कई बार परेशानी में पड़ चुका हूं।धर्म के नाम शोर-शराबा किसी एक धर्म की बपौती नहीं है। सभी का इसमें बराबर का हिस्सा है। असल में यह खालिस धर्म की मार्केटिंग का मामला है। चूंकि इस मार्केटिंग के जरिए तैयार हुए क्लाइंट बेस का इस्तेमाल राजनेता भी करते हैं इसलिए सरकार चाहें जो भी हो इस पर किसी भी तरह का कार्रवाई होना तकरीबन नामुमकिन है। सुप्रीम कोर्ट की सख्त गाइडलाइंस के बाद भी इनका कोई बाल-बांका नहीं कर सकता।
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ऊपरवाला सभी को सलामत रखे। मैं मुसलमान नहीं हूं और सवेरे अज़ान की वजह से जागना पड़ता है, भारत में ये जबरन धार्मिकता कब थमेगी ??

वैसे जब मोहम्मद ने इस्लाम बनाया था तब बिजली नहीं थी.. तो फिर मुझे एडिसन के बाद ये शोर क्यों सुनना पड़ रहा है ??

मैं ऐसे किसी मंदिर या गुरुद्वारे में यक़ीन नहीं रखता जो लोगों को जगाने के लिए बिजली का इस्तेमाल करते हैं। जो धर्म में यक़ीन नहीं रखते।
फिर क्यों?
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आपको बता दें कि सोनू निगम ने लाउडस्पीकर पर मस्जिदों में होने वाली अजान पर आपत्ति जाहिर की थी। सोनू निगम ने ट्वीट के जरिए लाउडस्पीकर पर होने वाले अजान का विरोध किया था। सोनू निगम ने लिखा कि इससे उनकी नींद खराब होती है, ये गुंडागर्दी है।

सोनू के इस बयान से बवाल मच गया। एक नई बहस शुरू हो गई कि क्या मंदिर और मस्जिद में लाउडस्पीकर बंद होने चाहिए।
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ईमानदारी से बताइए? सच क्या है?

क्योंकि अगर आप भगवान की अराधना करना चाहते हैं तो आपको लाउडस्पीकर पर चिल्लाने की जरुरत नहीं है।इस तरह से सब परेशान होते हैं इसी तरह की चीजें बैन होनी चाहिए |लाउडस्पीकर को सभी धार्मिक स्थानों पर बैन कर देना चाहिए | किसी भी धर्म/समाज या वर्ग का कोई भी आयोजन हो/कायक्रम हो, अक्सर तेज आवाज में ही क्यों लाऊडस्पीकर बजाएं जाते हैं ?? क्या हमारा आराध्य काम सुनता हैं ?? आखिर हम क्या साबित करना चाहते हैं ??

कोई भी भजन संध्या हो, रामायण हो,भागवत हो,गुरुबाणी का पाठ हो कव्वाली/मुशायरा/कवी सम्मलेन हो,सुन्दरकाण्ड का पाठ होता हो या आरती अथवा अजान हो, हम लोग आखिर क्यों इतनी तेज आवाज में यह कार्य कर पड़ोसियों/स्थानीय निवासियों को/बीमार लोगों या छोटे बच्चों को परेशान करते रहेंगें और कब तक ???

जब ध्वनि प्रदूषण रोकने और जनसामान्य को होने वाली असुविधा को ध्यान में रखकर चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के संदर्भ में लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में हिदायतें दी हुयी हैं। चुनाव आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह छह बजे से रात को ग्यारह बजे तक और शहरी क्षेत्रों में सुबह छह बजे से रात दस बजे तक ही लाउडस्पीकर का उपयोग किया जा सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों से तात्पर्य उन क्षेत्रों से हैं जो नगर निगम अथवा नगरपालिका सीमा से बाहर हैं। राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने सभी कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारियों को इन निर्देशों का सख्ती से पालन करने को कहा है। इस निर्धारित समय सीमा से बाहर लाउडस्पीकर का किसी भी तरह से उपयोग वर्जित होगा, चाहे वह सामान्य प्रचार के लिए हो या आम सभा और जुलूस के लिए। वाहनों पर लगे लाउडस्पीकर का भी इस समयसीमा के भीतर ही उपयोग किया जा सकेगा। ये निर्देश चुनाव परिणाम घोषित होने तक लागू रहेंगे। समय सीमा के बाद उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर को सभी संबंधित उपकरणों के साथ जब्त कर लिया जाएगा ।
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कृपया अपने विचारों/टिपण्णी से अवश्य अवगत करवाएं—
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री।।

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