-अशोक गौतम-
मुहल्ले को ताजी सब्जी उधार- सुधार दे खुद पत्तों से रोटी खाने वाला रामदीन कमेटी के जमादार को रोज- रोज नाली के ऊपर सब्जी की दुकान लगाने के एवज में दो- दो किलो सब्जी दे तंग आ गया तो उसने यमराज से गुहार लगाई,‘ हे यमराज महाराज! या तो मुझे इस देस से उठा लो या इस कमेटी के भूखे को। अब मैं इसे और मुफ्त में नहीं खिला सकता। ये बंदा है कि रोज मुझे डरा धमका कर… इस रोज- रोज मरने से तो बेहतर है कि …. अब मुहल्ले वालों को किलो के बदले सात सौ ग्राम सब्जी तोल- तोलकर अपना नरक भी कब तक खराब करूं?’
मित्रो! इसे संयोग ही कहिए कि उस वक्त यमराज चित्रगुप्त के साथ वहां से मास्टर जी को लेने बाण मुहल्ले जा रहे थे। असल में उन्होंने क्लास में न पढ़ा घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने से पूरे पूरी क्लास के बच्चों के बापों को आतंकित कर रखा था। पर ज्यों ही उन्होंने रामदीन की आर्त आवाज सुनी तो वे मास्टर साहब के घर का रास्ता भूल गए और कमेटी के जमादार क्रीमदीन के घर की ओर लाल -पीले होते लपके। चित्रगुप्त को क्रीमदीन के घर के बाहर खड़ा कर दबे पांव वे क्रीमदीन के घर में घुसे ही कि तभी एक अनहोनी हो गई और क्रीमदीन के वफादार कुत्ते ने अजनबी को घर में घुसते देख यमराज की टांग काट खाई। बेचारे यमराज से कुत्ते के काट खाने पर न रोते बना ,न हंसते। रोएं तो क्रीमदीन को पता चल जाए और जो हंसे तो किस पर?
आखिर उन्होंने तय किया कि चुपचाप पहले तो कुत्ते के काटने के इंजैक्शन लगवाएं जाएं, बाकि बाद में देखा जाएगा। कहीं ऐसा न हो क्रीमदीन का कुत्ता सरकारी कर्मचारियों की तरह पालतू होने के बाद भी पागल निकले और….
उन्होंने चित्रगुप्त को साथ लिया और अपनी काट टांग दबाते -सहलाते पास के सरकारी अस्पताल में जा पहुंचे। बड़ी मुश्किल से जनता के बीच खड़े हो पर्ची बनी तो वे अपनी पर्ची लेकर ओपीडी के डॉक्टर के पास जा पहुंचे। डॉक्टर साहब उस वक्त नशे में लग रहे थे। यमराज को देखने के बाद भी बोले,’ कौन?’
‘ यमराज!’
‘बड़ा अजीब नाम है यार ! कहां से आए हो?’
‘यमलोक से ।’
‘ पहली बार दिल्ली मं किसी ऐसे लोक का नाम सुना। कहां बनी है ये सोसाइटी? क्या करते हो?’
‘ जीवों को कैरी करता हूं।’
‘अच्छा तो, ट्रांसपोर्टर हो। अच्छा बिजनेस है ये भी। फिर इस अस्पताल में क्यों? अपोलो- सपोलो में क्यों नहीं? चलो बैठो स्टूल पर और अपनी आंत आगे करो। क्या हो गया?’
‘साहब ,कुत्ते ने काट खाया,’ यमराज ने डॉक्टर साहब को कटी टांग की कटी पतलून ऊपर चढ़ा टांग बतानी चाही तो वे मुंह सा बनाते बोले,‘ परे करो ये टांग! बास आ रही है। कुत्ते ने काट खाया है? कोई बात नहीं। तकदीर वाले हो। यहां पर आजकल कुत्ते के खाने से नहीं, आदमी के खाने से मरने का खतरा ज्यादा है। सेफ्टी के लिए ये – ये टेस्ट करवा लो,’ कह डॉक्टर ने टेस्ट लिखे तो यमराज ने पूछा,‘ ये टेस्ट कहां होंगे?’
‘बाहर सामने पीके टेस्ट लैब है। मेरा नाम ले लेना कि डॉक्टर वर्मा ने भेजा है, नेक्सट रमेश कुमार..’ डॉक्टर साहब का आदेश पा यमराज अस्पताल से बाहर आ गए । बाहर चित्रगुप्त और वे दोनों पीके लैब ढूंढने लगे कि तभी चित्रगुप्त ने चिल्लाते कहा,‘ साहब! वो रही पीके लैब!’ यमराज ने वहां जाकर लैब वाले को डॉक्टर की लिखी पर्ची पकड़ाई तो वह उसे ले उछलता बोला,‘ तो आप हैं यमराज साहब?’
‘हां! साथ में ये चित्रगुप्त है।’
हमें कोई फर्क् नहीं पड़ता। पेशंेट के साथ कोई हो या ना , पर पेशेंट के साथ पैसे जरूर होने चाहिएं बस।’
‘ कितने लगेंगे?’
‘दस हजार!’
‘दस हजार!!’ यमराज का मुंह ख्ुाला का खुला रह गया तो चित्रगुप्त ने बंद कराया।
‘हां तो दस हजार। आपकी किडनी का, लीवर का, ब्लड का, हार्ट का , दिमाग का टेस्ट होना है।’
‘पर काटा तो कुत्ते ने है। वह भी टांग से!’
‘ लक्की हो यार! आदमी ने काटा होता तो…पूरी बॉडी तो स्कैन करनी ही पड़ती और भी न जाने क्या- क्या करना पड़ता।’
टेस्ट हुए तो यमराज ने चैन की सांस ली।
‘दो घंटे बाद आ जाना रिपोर्ट लेने।’
दो घंटे बाद रिपोर्ट ले यमराज डॉक्टर साहब के पास पहुंचे तो डॉक्टर ने रिपोर्ट देख गंभीर हो कहा,‘ ओह यमराज साहब! हद हो गई। आप इतने दिन तक थे कहां?’
‘क्या मतलब??’
‘मतलब ये कि… कटी टांग को मारो गोली। आपका तो हार्ट बढ़ गया है। देखो तो दाईं किडनी शरींक हो गई है। और ये लीवर…. पेट में पता नहीं फिट कैसे है? ये तो इतना बढ़ गया है कि…. और ये बीपी.. कुछ महसूस कर रहे हो? दारू – शारू तो नहीं लेते? लेते हो तो ….’
‘ अपने को बहुत असहाय फील कर रहा हूं । पर डॉक्टर साहब..’
‘पर वर कुछ नहीं… बची जिंदगी जीनी है तो अस्पताल में अभी भर्ती हो जाओ, नहीं हुए तो भी अब हम आपको अस्पताल से बाहर नहीं जाने देंगे। हम मरीज को जिंदा घर कैसे जाने दे सकते हैं? अब तो आप बस एक ही बार हमारे अस्पताल से बाहर जा सकेंगे , आई मीन…. जीव के भाग में जहां लिखी की होती है ,वह छोड़ने वहीं जाता है। वैसे भी यार अपने घर में मरने से बेहतर डॉक्टरों की देखरेख में यहां मरना अधिक सेफ होता है। पर कोई समझे तब ना! ’ डॉक्टर साहब ने कहा तो वे दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लगे।
‘कितने दिन तक ठीक हो जाऊंगा डॉक्टर साहब मैं….’
‘ देखिए जनाब! हमारे अस्पतालों में रोगी आता हमारी मर्जी से है और जाता भगवान की मर्जी से है,’ कह डॉक्टर साहब हंसे तो यमराज कुछ गंभीर हुए,‘ मतलब??’ डॉक्टर साहब ने उनके मतलब का उत्तर नहीं दिया तो नहीं दिया।
तब कोने जैसे में ले जाकर चित्रगुप्त ने यमराज को समझाते कहा ,‘ महाराज! हूं तो पद मैं आपसे बहुत छोटा पर जान है तो जहान है। रही बात डॉक्टर की, तो मुझे वह गप्पी ज्यादा लगता है। उसे गंभीरता से न लो महाराज.. डर के आगे ही तो जीत होती है। अगर कहीं सच्ची को ज्यादा बीमार हो गए तो… जब मृत्युलोक में आए ही हैं तो इलाज करवाते चलिए। काम तो मरने के बाद भी खत्म नहीं होते।’
और न चाहते हुए भी यमराज चित्रगुप्त के कहने पर अस्पताल में एडमिट हो गए। उन्हें चारपाई पर लिटा दिया गया। एक फटा हुआ कंबल ऊपर को … चारपाई में खटमल इतने कि…. एकाएक डॉक्टर देखने आया तो ढेर दवाइयां लिख गया। चित्रगुप्त डॉक्टर की लिखी दवाइयों से भरा झोला लेकर आए तो यमराज ने पूछा,‘ चित्रगुप्त! ये क्या झोले में सबजी लेकर आए?’
‘ नहीं हुजूर! आपको लिखी दवाइयां हैं,’ कह चित्रगुप्त यमराज का मंुह ताकने लगे तो यमराज ने चारपाई पर पड़े पड़े ही पूछा,‘ इतनी??’
दूसरा आया तो पहले की दवाइयां खारिज कर अपनी लिख गया तो फिर दवाइयों का एक झोला। रात को तीसरा डॉक्टर आया तो यमराज की चारपाई से लटके गत्ते के चिमटु से कागजों के दबे गले को मुक्त कर उसने चारपाई के पास स्टूल पर बैठे चित्रगुप्त से गुस्से में पूछा ,‘ किस गधे ने ये दवाइयां लिख दी इन्हें?’
‘डॉक्टर साहब! आपसे से पहले जो आए थे ।’
‘ सब बेकार।’
‘तो अब इन दवाइयों का क्या करें?’
‘मरना सॉरी ,जीना चाहते हो तो इन्हें तुरंत बंद कर नाले में फेंक दोे,’ कह वे फुर्ती से अगले रोगी के बेड के पास हो लिए, कमीशन ली कंपनी की दवाइयां लिखने।
सारी रात यमराज सो नहीं पाए। सोते तो तब जो उन्हें खटमल सोने देते। इस तरफ से अपने को खटमलों से बचाते तो उधर से खटमल वार कर देते। उस तरफ से बचाते तो इस तरफ से। वे चाह कर भी खटमलों को मार नहीं सकते थे क्योंकि अभी उनकी मृत्यु नहीं लिखी थी। और वे जानते थे कि जब तक जीव की मत्यु न आई हो वे तो वे, कोई भी जीव का बाल तक बांका नहीं कर सकता। उधर स्टूल पर बैठेे चित्रगुप्त अपने को कोस रहे थे। बेचारे ना सो पा रहे थे ,ना जागा जा रहा था।
जैसे -कैसे सुबह हुई तो दोनों ने चैन की संास ली। तभी मेस वाला चाय-चाय की हांक लगाता आया तो चित्रगुप्त ने देखा कि सभी रोगी के साथ वाले अपने- अपने रोगी के लिए कम ,अपने लिए अधिक बड़ा गिलास चाय का भर – भर ले रहे हैं तो एक रोगी के साथ वाले से चित्रगुप्त ने पूछा,‘ ये क्या है?
‘चाय! फ्री की है,’ चित्रगुप्त ने भी यमराज के सिरहाने रखा गिलास उठाया और उनके लिए चाय ले आया। जैसे लेटे -लेटे यमराज ने चाय का घूंट लिया तो उनको उल्टी आ गई, ‘क्या हो गया साहब?’
‘यार , ये चाय है या….. अपने यहां तो गटर का पानी भी इससे अच्छा होता है।’
‘फ्री में तो यही मिलेगी । जेब में पैसे हैं तो बाहर से ले आओ। बीस रूपए की है। है हिम्मत!’ चाय देने वाला बड़बड़ाया और वार्ड से बाहर हो लिया।
तभी एक डॉक्टर का मैला सा कोट पहने सुई लेकर आया और यमराज से कहा,‘ सीधे हो जाओ, आपका खून लेना है।’
‘अब किसलिए?’
‘ आपका एचबी चेक करना…,’ वाक्य पूरा कहने से पहले ही उसने यमराज के दांए कूल्हे में सुई दे मारी। पर हैरानी! सीरिंज में खून की बूंद तक नहीं। यह देख वह परेशान हुआ,‘ हद है यार। एक बूंद भी खून नहीं? सांसें कैसे ले रहे हो?’
‘खून था तो पर रात को खटमल सारा पी गए,’ यमराज ने बेदर्दी से चुभोई सुई के दर्द से कहराते कहा। पर वह नहीं सुना तो नहीं सुना और डॉक्टर के पास जा पुहंचा। डॉक्टर को सारा किस्सा बताया तो वह दौड़ा- दौड़ा आया और बिन कुछ कहे यमराज को आईसीयू में शिफ्ट करने के बाद चैन की सांस लेता बोला, ‘ किस्मत वाले हो यार जो आईसीयू खाली मिल गया मरने को, नहीं तो… बेड पर ही खटमलों के बीच पड़े- पड़े मर जाते। । यहां तो वीवीआईपी ही कब्जा किए रहते हैं,’ चित्रगुप्त द्वार पर खड़े- खड़े सारा सीन देखते रहे और डॉक्टर ने यमराज के मुंह पर सांस लेने को मास्क जबरदस्ती फंसा दिया। देखते ही देखते यमराज के बेड के चारों ओर मशीने घरघराने लगीं।
आईसीयू में यमराज को फिट करने के बाद बाहर आ डॉक्टर ने चित्रगुप्त को पास बुलाते पूछा,‘तुम कौन हो इसके?
‘मैं… मैं….’
‘देखो ! कंडीशन क्रिटिकल है। कुछ भी हो सकता है। मैंटली तैयार रहना। लगता है इलाज मरने के बाद भी लंबा चलेगा। हम कोशिश तो बंदे के मरने तक ही करते हैं पर…. सरकारी इम्प्लाइज है या.. पैसे का इंतजाम कर लो। बाकि यमराज की मर्जी! डरो मत! अब तुम सही जगह पहुंच गए हो,’ कह डॉक्टर आगे हो लिया। यमराज बेड पर जकड़े- जकड़े टुकुर- टुकुर डॉक्टर को मुस्कुराते बाहर जाते देखते रहे , वे डॉक्टर से कुछ कहना चाह रहे थे, पर असहाय कुछ कह नहीं पा रहे थे। आईसीयू के दरवाजे पर बुत हो खड़े चित्रगुप्त को काटो तो खून नहीं। सरकारी अस्पताल में पेशेंट और अटैंडेंट का ये कैसा दुर्लभ नजारा है प्रभु ?
बहुत सुंदर – ताज़ा हालात पर इतना बड़ा तंज़ – एक निरीह सब्जी वाले की बेबसी से लेकर नगर पालक तक होते हुए यमराज और चित्रगुप्त को भी आज के मेडिकल के जंजाल के लपेटे में ले लिया । बहुत खूब अशोक गौतम जी – इसी तरह लिखते रहो और गुदगुदाते रहो ।