मैं ख़ुद से ही रूठी रहती हूँ,
कोई मनाये मुझको आकर,
ये ज़रूरी तो नहीं,
मैं ख़ुद को ही मना लेती हूँ।
कुछ भी लिखूं या करूँ मैं जब
अपनी प्रशंसा भी कर लेती हूँ ,
कोई और भी मेरा प्रशंसक हो,
ये ज़रूरी तो नहीं…………
जो भी काम पूरा कर लेती हूँ,
मैं अपनी आलोचना भी करती हूँ,
कोई और मेरा आलोचक हो,
ये ज़रूरी तो नहीं…………..
मै आत्ममुग्ध तो नहीं हूँ शायद,
आत्मविश्वास मेरी शक्ति है,
कोई और मेरी शक्ति बने,
ये ज़रूरी तो नहीं…………
जो भी करती हूँ मन से करती हूँ,
घमंड नहीं ख़ुद पे गर्व करती हूँ,
किसी और को भी हो गर्व मुझपर,
ये ज़रूरी तो नहीं……………
मैं चिंतक, प्रशंसक और आलोचक ,
अपनी ही हूँ, तो ग़लत क्या है,
कोई और मेरे लियें कुछ सोचे,
ये ज़रूरी तो नहीं…………….