योग से खत्म होती है मनुष्य के अन्दर की नकारात्मकता

दीपक राजपूत

हर साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है। इस साल पूरे विश्व में चतुर्थ  अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। भारत देश में योगदिवस का एक अपना ही अलग महत्त्व है। योग भारतीय प्राचीन संस्कृति की परम्पराओं को समाहित करता है। भारत देश में योग का प्राचीन समय से हीअहम स्थान है। पतंजली योग दर्शन में कहा गया है कि– योगश्चित्तवृत्त निरोधः अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तोह्रदय की प्रकृति का संरक्षण ही योग है। जो मनुष्य को समरसता की और ले जाता है। योग मनुष्य की समता और ममता को मजबूती प्रदान करता है। यहएक प्रकार का शारारिक व्यायाम ही नहीं है बल्कि जीवात्मा का परमात्मा से पूर्णतया मिलन है। योग शरीर को तो स्वस्थ्य रखता है ही इसके साथसाथ मनऔर दिमाग को भी एकाग्र रखने में अपना योगदान देता है। योग मनुष्य में नयेनये सकारात्मक विचारों की उत्पत्ति करता है। जो कि मनुष्य को गलतप्रवृति में जाने से रोकते हैं। योग मन और दिमाग की अशुद्धता को बाहर निकालकर फेंक देता है। साथ-साथ योग से मनुष्य के अन्दर की नकारात्मकता खत्म होती है। योग व्यक्तिगत चेतना को मजबूती प्रदान करता है। योग मानसिक नियंत्रण का भी माध्यम है। हिन्दू  धर्मबौध्द धर्म औरजैन धर्म में योग को आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाता है। योग मन और दिमाग को तो एकाग्र रखता है ही साथ ही साथ योग हमारी आत्मा को भी शुध्दकरता है। योग मनुष्य को अनेक बीमारियों से बचाता है और योग से हम कई बीमारियों का इलाज भी कर सकते हैं। असल में कहा जाते तो योग जीवनजीने का माध्यम है।

श्रीमद्भागवत गीता में कई प्रकार के योगों का उल्लेख किया गया है। भगवद गीता का पूरा छठा अध्याय योग को समर्पित है। इस मे योग के तीन प्रमुखप्रकारों के बारे में बताया गया है। इसमें प्रमुख रूप से कर्म योगभक्ति योग और ज्ञान योग का उल्लेख किया गया है। कर्म योग– कार्य करने का योग है।इसमें व्यक्ति अपने स्थिति के उचित और कर्तव्यों के अनुसार कर्मों का श्रद्धापूर्वक निर्वाह करता है। भक्ति योग–  भक्ति का योग। भगवान् के प्रति भक्ति इसे भावनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है। और ज्ञान योग– ज्ञान का योग अर्थात ज्ञान अर्जित करने का योग। भगवत गीता के छठेअध्याय में बताये गए सभी योग जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। भगवद्गीता में योग के बारे में बताया गया है कि– सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते।  अर्थात् दुःखसुखलाभअलाभशत्रुमित्रशीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योगहै। दुसरे शब्दों में कहा जाए तो योग मनुष्य को सुखदुःखलाभअलाभशत्रुमित्रशीत और उष्ण आदि परिस्थितिओं में सामान आचरण की शक्ति प्रदानकरता है। भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में एक स्थल पर कहा है ‘योगः कर्मसु कौशलम’ अर्थात योग से कर्मो में कुशलता आती हैं। वास्तव में जो मनुष्य योगकरता है उसका शरीरमन और दिमाग तरोताजा रहता है। और मनुष्य प्रत्येक काम मन लगाकर करता है।

27 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले संबोधन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की जोरदार पैरवी की थी। इसप्रस्ताव में उन्होंने 21 जून को ‘‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ के रूप में मान्यता दिए जाने की बात कही थी। मोदी की इस पहल का 177 देशों ने समर्थनकिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में इस आशय के प्रस्ताव को लगभग सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। और 11 दिसम्बर 2014 को को संयुक्तराष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’’ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन केअंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गयाजो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून2015 को मनाया गया और पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। इस दिन करोड़ों लोगों ने विश्व में योग किया जो कि एक रिकॉर्ड था।

योग दिवस में ‘सूर्य नमस्कार’  ‘ओम’ उच्चारण का कुछ मुस्लिम संगठन विरोध करते रहे हैं। असल में कहा जाए तो ‘ओम’  शब्द योग के साथ जुड़ाहुआ है। इसे विवाद में तब्दील करना दुर्भागयपूर्ण है। लेकिन इसे हर किसी पर थोपा भी नहीं जा सकता। इसलिए योग करते समय लोगों को ‘ओम’ उच्चारण को अपनी धार्मिक मान्यता की आजादी के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। अगर किसी का धर्म ओम उच्चारण की आजादी नहीं देता तो उन्हें बिनाओम जाप के योग करना चाहिए। लेकिन योग को किसी एक धर्म से जोडकर विवाद पैदा नहीं करना चाहिए। आज के समय में योग को भारत के जनजनतक योग को पहुँचाने में योग गुरु बाबा रामदेवआध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर सहित अनेकों ऐसे महापुरुषों का अहम् योगदान है। इनके योग के क्षेत्र मेंयोगदान की वजह से ही आज भारत के घरघर में प्रतिदिन योग होता है।

भगवद्गीता के अनुसार – तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम। अर्थात् कर्त्व्य कर्म बन्धक  होइसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकरकर्त्तव्य करने का कौशल योग है। योग को सभी लोगों को सकारात्मक भाव से लेना चाहिए। कोई भी धर्मसम्प्रदाय योग की मनाही नहीं करता। इसलिएलोगों को योग को विवाद में नहीं घसीटना चाहिए। योग  बुध्दि कुशग्र बनाता है और संयम बरतने

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