तुम आदमी हो इसलिए आदमी से प्यार नही करते

—विनय कुमार विनायक
तुम आदमी हो इसलिए आदमी से प्यार नहीं करते
तुम आदमी हो इसलिए आदमी से
आदमी जैसा सद् व्यवहार नही करते
तुम आदमी हो इसलिए
आदमी से घृणा और आदमी का संहार करते!

तुम आदमी हो इसलिए हो गए कायर
बेजुबान पशु पक्षी होते तो जटायु बनकर
सीता की बेटियों; निर्भया,प्रियंका,पूजा भारती
और तमाम श्रद्धा-हौआ-मरियम मां सदेही को
नवरावण से अपहृत/बलात्कृत/मृत होने से बचाते!

तुम आदमी हो सीधे मुंह सच बोलते नहीं,
इसलिए मंच पर ताली पिटवाने वाले शायर हो!

तुम सच बोलने वाले जीव-जंतु अगर होते तो,
कविता कहानी नाटक जैसी विधाएं नहीं होती!

लक्षणा,व्यंजना सी शब्द शक्ति से अलंकार चमत्कार
उत्पन्न कर कागजी मार करने की दरकार नहीं होती!

पुलिस थाने,कोर्ट-कचहरी,जज-वकील,तारीख-दलील,
हाजिरी-गवाही का लंबा इंतजार करना नहीं होता!

तुम आदमी होकर आदमी से प्यार नहीं करते,
इसलिए गोरे डायर होकर काले पर फायर करते!

तुम आदमी हो इसलिए रंग वर्ण जाति देखकर
घृणा-प्रेम,छल-छद्म,दुर्व्यवहार-बलात्कार करते हो!

पशु-पक्षी होते तो रंगहीन,वर्णहीन,छलरहित प्यार करते,
अपनी जाति से नहीं डरते, जर्सी-देशी में भेद नहीं करते!

सिंह चाहे हो गीर गुजराती अशोक स्तंभ वाला
या अफ्रीकी काला, या कि सफेद रायल टाइगर
भारतीय,बांग्लादेशी,श्रीलंकाई शेर-चीता चितकाबर
कभी नहीं लड़ते, भारत-पाकिस्तान-चीन की तरह
साम्प्रदायिक तुर्की-कुतर्की नापाक हरकत नहीं करते!

तुम आदमी हो इसलिए आदमी को संहारते!
भला किसी ने देखा है हाथी को हाथी मारते?

घोड़ा को घोड़ा फाड़ते? बंदर को बंदर चीरते?
फेकसियार को सियार का कचूमर निकालते?
किसने देखा कौआ को कौआ का मांस खाते?

फिर आदमी क्यों होते जा रहे हैं ऐसे-वैसे,
खुदा के बंदे/राम के बेटे/अनुयाई ईसा के?

तुम आदमी हो इसलिए पैसे के यार हो
रिश्तों में व्यापार करनेवाले बड़े होशियार हो!

आदमी के चेहरे पे अहं,पद का वहम,जातीय बड़प्पन,
ऐसा कि दबे-कुचले जन पे तनिक करते नही रहम!

तुम आदमी हो इसलिए हीरा-मोती बैलों की तरह,
एक बाड़े में रहन-सहन, भोजन-भजन नहीं करते!

एल. ओ. सी./एल. ए. सी. पर हमेशा पहरेदारी करते,
कहीं घुसपैठ ना हो जाए एक दूजे को मारने के लिए!

तुम आदमी हो इसलिए कोयल की कूक,पपीहे की हूक,
तोते की सीटी समझते,पर आदमी की पुकार नहीं सुनते!

तुम आदमी हो इसलिए बोली पसंद नहीं है आदमी की,
तुम आदमी हो इसलिए बोली पसंद नहीं निज देवता की!

तुम आदमी बोलते हो इसलिए तुम्हें चाहिए गूंगे-बहरे ईश्वर!
तुम आदमी वाकवीर इसलिए पूजते हो मूक-बधिर परमेश्वर!

जिस क्षण बोलने लगेंगे ईश्वर उस दिन यकीनन खून करोगे,
या अनाथालय के हवाले करोगे बोलते वृद्ध मां-पिता की तरह!
—विनय कुमार विनायक

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