तुम धृतराष्ट्र के सिवा कुछ और बन सकते थे

विनय कुमार विनायक
वैसे तुम समर्थवान थे धृतराष्ट्र के सिवा
कुछ भी बन सकते थे दशरथ भी
जिसने वचन निर्वाह के लिए ही नहीं
बल्कि प्रजा को राम सा सुशासक
स्वकर से समर्पित नहीं करने के गम में
अपनी इह लीला समाप्त कर ली थी!

एक लंबी परंपरा, विशाल इतिहास
और ढेर सारे आदर्श पात्र थे तुम्हारे सामने
किंतु तुमने एक भी पसंद नहीं किया सिवा धृतराष्ट्र के
लेकिन तुम सच्चे धृतराष्ट्र भी कहां बन पाए?

धृतराष्ट्र को गांधारी सी सती पत्नी थी,
दुर्योधन सा दृढ़,दुस्साहसी दिलेर पुत्र था,
पुत्र व पत्नी के सिवा भाई पांडु-विदूर से
स्नेह, बेटी से प्यार, मृत जमाता के लिए
अंधी आंखों में अश्रु धार भी था!

शहीद सैनिकों के लिए आह की भावना शेष थी
और शेष था दुश्मन तक के लिए सहकार,
पर क्या मिला तुम्हें ऐसा धृतराष्ट्र बनकर
जिससे तुम्हारी गांधारी तुम्हारी मौत के बाद के
उस दिन को यादगार मन ही सुख पा रही है
‘महीने के अंतिम दिन शहर जाऊंगी पेंशन उठाने’

तुमने अपने लाड़ले दुर्योधन को कैसी ऊंची शिक्षा दी
कि वह अवकाश पर बीबी सहित लौटता घर अवश्य
किन्तु सारी छुट्टी ससुराल में बिताकर!

क्या छुट्टी भर भी तुम्हारी बूढ़ी गांधारी
अपनी पुत्रवधू के हाथ की रोटी की अधिकारिणी नहीं?

तुम्हारा दूसरा लाड़ला दुर्योधन के
नक्शे कदम पर चलनेवाला दुशासन
अंगद के पांव के माफिक जहां का तहां
शहर में तो शहर में, गांव में तो गांव में जमा रहता है
बशर्ते आबाद रहे पाकशाला सुगंधित व्यंजनों से
क्या मजाल कि तुम्हारी बीमारी का
टेलीग्राम भी टसका सके उसे यहां से वहां!

किन्तु मास अगहन के आते ही
वह पंछी का पर लगाकर घर क्यों आ जाता?
क्या नहीं तुम्हारे वर्ष भर के पसीने की बूंद से निर्मित
धान्य बीजों को क्षण में बेचकर अपने एकाउंट में भरने!

तुमने क्या नहीं किया चोरी, बेईमानी, घूसखोरी, भ्रष्टाचार,
तब कही जाकर दो चार शानदार मनोनुकूल महल बनाए
दो गांव में दो शहर में,किन्तु जीवन के चौथेपन में
तुम युगल क्यों पड़े हो दूर देहात के सीलन भरे पुश्तैनी घर में !

जबकि तुम्हारे यौवन के सपनों को संजोकर
निर्मित शहरी वातानुकूलित मकान में रहते
कोई बैंक का बाबू अपनी बबूनी के साथ,
या तुम सा ही कोई प्रौढ़ भ्रष्ट अफसर रहते,
तेरे दुर्योधन या दुशासन को मकान भाड़ा देकर!

तुम जहां टिके हो क्या वह भी तुम्हारा है?
शायद नहीं,जैसे तुमने पुश्तैनी समझा
वैसे तुम्हारे लाड़ले उसे अपने पुश्तैनी समझने लगे!

बस इंतजार है तुम्हारे मरने भर की
वह भी किसी ग्रामीण बैंक
या डाकघर को भाड़े में दे दी जाएगी!
—विनय कुमार विनायक

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