भाजपा के महासचिव राम माधव ने अखंड भारत की बात क्या कह दी, कबूतरों के दड़बे में बिल्ली छोड़ दी। राम माधव ने साफ़ शब्दों में कहा है कि वे डंडे के जोर पर अखंड भारत की स्थापना नहीं करना चाहते हैं। यदि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश स्वेच्छा से चाहें तो दुबारा एक हो जाएं। राम माधव के इस कथन के पीछे जो प्रेम और सहयोग की भावना है, हमें उसे समझना चाहिए लेकिन अनेक विरोधी नेता उन पर टूट पड़े हैं, वे भी एकदम गलत नहीं हैं, क्योंकि अखंड भारत का अर्थ पाकिस्तान में यह लिया जाता है कि भारत ने पाकिस्तान के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं किया है। अखंड भारत का अर्थ है- पाकिस्तान का खात्मा! विदेश नीति में पाकिस्तान का खात्मा और गृह-नीति में हिंदू राष्ट्र की स्थापना याने मुसलमानों को निपटाने की तैयारी! अखंड भारत की यह धारणा अब बिल्कुल असंगत और निरर्थक हो गई है। जो खंडित भारत आजकल हमारे पास है, वह ही हम ठीक से नहीं संभाल पा रहे हैं तो पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़कर कोई मूर्ख सरकार ही अपना सिरदर्द बढ़ाना चाहेगी। डंडे के जोर पर अमेरिका, क्यूबा को और चीन, लाओस जैसे छोटे-छोटे राष्ट्रों को ही हजम नहीं कर सकता तो पाकिस्तान और बांग्लादेश को हजम करने की बात करना तो शुद्ध पागलपन है। राम माधव ने ऐसी बात कही भी नहीं है। यह भाजपा का आज का सोच नहीं है।
वास्तव में बांग्लादेश बनने के पहले डाॅ. राममनोहर लोहिया ने भारत-पाक महासंघ का नारा दिया था और विनोबा भावे ने एबीसी (अफगानिस्तान, भारत और सीलोन) का प्रस्ताव रखा था लेकिन उन्हीं दिनों याने अब से लगभग 50 साल पहले मैंने संपूर्ण आर्यावर्त (दक्षिण एशिया) को जोड़ने की बात चलाई थी। यूरोपीय संघ से भी बेहतर संगठन की कल्पना मैंने की थी, क्योंकि ये लगभग दर्जन भर देश हजारों वर्षों से एक परिवार की तरह रहते रहे हैं। इनमें युद्ध होते रहे हैं तो एक छत्र राज्य भी रहा है। सांस्कृतिक एकता तो इनमें आज भी है, चाहे वे किसी भी भाषा या मजहब को मानते हो। इसी सांस्कृतिक एकता को अगर हम आर्थिक और राजनीतिक सहयोग में भी ढाल सकें तो अखंड भारत नहीं, वृहत भारत का निर्माण हो सकता है। अभी अखंड भारत नहीं, अखंड भावना की जरुरत है। इसी अखंड भावना के आधार पर भारत के सारे पड़ौसी और पांचों मध्य एशियाई देशों को मिलाकर एक ऐसा महासंघ बनाया जा सकता है, जिसकी संसद, जिसका रुपया, जिसका बाजार, जिसका पारपत्र और वीजा और जिसका महासंघपति एक ही हो।
भारत के राष्ट्रवादी संगठन के विचारक के रूप में राम माधव ने व्यापक जन सहमति के आधार पर अखण्ड भारत की बात की है, जिसका हिन्दू-मुस्लिम कौमी एकता की बात करने वाले लोगो द्वारा भरपूर स्वागत होना चाहिए था। लेकिन उनमे से अधिकाँश लोगो ने किसी न किसी बहाने इस विचार पर नाराजगी जताई है। इससे सिद्ध होता है की पूजा पद्धति से ऊपर उठ कर समुच्चय दक्षिण एशिया के लोगो को कोई अपना मानता है तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। लेकिन अंग्रेजो की विभाजन करने वाली निति का पोषण आज भी कुछ लोग कर रहे है। अगर किसी को अखण्ड भारत नाम से आपत्ति है तो वह इसे “दक्षिण एशिया महासंघ” कह ले या कोई अन्य नाम गढ़ ले, उसमे कोई हर्ज नही। गुलाब का नाम कुछ और होता तो उसकी सुंदरता नही घट जाती। बर्लिन की दीवार की तरह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच की दीवारे गिरा दी जानी चाहिए। अगर, वह सम्भव नही तो कमसे कम यूरोपीय यूनियन के तर्ज पर हम अपना आर्थिक एकीकरण की शुरुआत तो अवश्य कर सकते है। अगर ऐसा होता है तो उसका सीधा लाभ आम लोगो की आर्थिक स्थिति में सुधार के रूप में दिखेगा। लेकिन ऐसा सम्भव तभी होगा जब हम एक दूसरे के खिलाफ अलगाववाद, आतंकवाद, सीमा पर गोलीबारी और जाली नोट का काम बन्द कर आपसी विश्वास को बढ़ाने का पुख्ता सयंत्र निर्माण की राह पर आगे बढे।