-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा-
घोर आश्चर्य और दुःख की बात है कि एक ओर तो पुरुष द्वारा दृष्टि डालना भी स्त्रियों को अपराध नजर आता है और दूसरी ओर 21वीं सदी में भी महिलाएं इस कदर अन्धविश्वास में डूब हुई हैं कि उनको मनुवादियों के पैरों तले लेटने में भी धार्मिक गर्व की अनुभूति होती है। आत्मीय सुकून महसूस होता है। वैकुण्ठ का रास्ता नजर आता है! पापों और पाप यौनि से मुक्ति का मार्ग नजर आता है। आखिर यह कब तक चलता रहेगा?
अन्धविश्वास निर्मूलन क़ानून का निर्माण ही इस प्रकार की सभी समस्याओं का एक मात्र स्थायी संवैधानिक समाधान है! लेकिन आर्यों की मनुवाद पोषक सरकारें अपनी इच्छा से ऐसा कानून कभी नहीं बनाना चाहेंगी। संघ और संघ के सभी अनुसांगिक संगठन इस मांग का पुरजोर विरोध करते हैं जिसका स्पष्ट आशय यही है कि संघ नहीं चाहता कि देश के लोग अन्धविश्वास से बाहर निकलें! जिसका बड़ा कारण है, जिस दिन अन्धविश्वास निर्मूलन कानूनबन गया संघ की सारी चमत्कार और अन्धविश्वास आधारित सभी कथित धार्मिक दुकानें बंद हो जायेंगी!
इसलिए सोशल मीडिया के मार्फ़त अन्धविश्वास निर्मूलन कानून निर्माण की मांग का समर्थन किया जाए और लोगों को अन्धविश्वास निर्मूलन कानून के समर्थन में खड़ा किया जाये। जब जनता में माहौल बनेगा तो सतीप्रथा निरोधक कानून की भांति, सरकार को अन्धविश्वास निर्मूलन कानून भी बनाना पड़ेगा। जिस दिन ये कानून बन गया, समझो उसी दिन से संघ के षड्यंत्रों का और आर्यों के मनुवाद रूपी जहर का स्वत: निर्मूलन हो जायेगा। मनुवाद का विनाश और सत्यानाश करना है तो अन्धविश्वास निर्मूलन कानून बनाने का समर्थ किया जाए। हक रक्षक दल इस दिशा में पहल करता है। सभी आम-ओ-खास का समर्थन और सहयोग जरूरी है। अन्धविश्वास निर्मूलन कानून लागू होते ही बहुत सी मुसीबतों से अपने आप ही छुटकारा मिल जाएगा!
आदरणीय ,मैं आपके लेखों को पढता हुँ. ब्राह्मण होने के बाद भी जो चित्र आपने प्रस्तुत किया है वह मेरे लिए एक शर्म है. इतना ही नहीं उस चित्र को तथाकथित धर्म के भोंपुओं को बताने के लिए वह चित्र ”नई दुनिया दैनिक” में से काटकर मेरे पास कभी का रखा हुआ है. जब जब ये शेखीयाँ बघारते हैं और ”सर्व भवन्तु सुखिनः” का आलाप गेट हैं इन्हे वह चित्र बता देता हुँ. आपका यह कहना सही है की कारगर क़ानून ही इसको रोकेगा. किन्तु मीनाजी हमारा समाज इतना रूढ़िग्रस्त है की सहसा सुधरने को तैय्यर नहीं है. जो पढ़ालिखा वर्ग है उसे भी मैं शंका की दृष्टि से देखता हूँ,यह नव उन्नत तबका स्वयं अन्धविशवास करता है इसलिए की बाकि लोग इसे अपनाएं। गाओं में मृत्यु भोज एक ऐसी प्रथा है की गरीब लोगों के घर,जमीन ,गहने या तो गिरवी रखे जाते हैं या बिक जाते हैं /हम जो लोग पढ़ लिख गए हैं या साधन सम्प्पन हैं यदि इन प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठायें तो कुछ हो सकता है. संघ,सरकार,की और ताकने से जयदा कुछ हांसिल नहीं होगा.
डाक्टर श्री मीणा साहिब,
साम्यवाद, मार्क्स्वाद, अम्बेडकरवाद, सैक्यूलरवाद आदि आदि शब्द तो सुने थे; यह मनुवाद क्या हुआ और कहाँ वर्णित/ प्रतिपादित है? और यह “मनुवादियों के पैरों तले लेटना” भी क्या हुआ श्रीमन्? क्या यही है आपके “धर्म, जाति, वर्ण, समाज समाज, दाम्पत्य, अध्यात्म पर सतत चिन्तन” का उदाहरण?
मनुवाद के अन्धविश्वास अन्धविश्वासों की बात आपने की; परन्तु समूचे लेख में यह कहीं नहीं बतलाया कि आपका यह अन्धविश्वास/ अनन्धविश्वास होता क्या है तथा कहाँ और किस प्रकार, किन शब्दों में परिभाषित है? तथा च, यदि इन से “आत्मीय सुकून” महसूस नहीं होता, “वैकुण्ठ का रास्ता नजर” नहीं आता, “पापों और पाप यौनि से मुक्ति का मार्ग” नहीं होता; तो किस से होता है – और कैसे? क्या कृपया बतालाँयगे/ प्रकाश डालेंगे?
अति आदर सहित,
डा० रणजीत सिंह (यू०के०)